Moral stories in hindi : और किसी का नही तो कम से कम अपने परिवार की इज्जत का तो ख्याल रख ले,समझ नही आता समाज मे क्या कहे? ऐसा आवारा हमारे भाग्य में ही लिखा था।सुना है नशा भी करने लगे हो?
कुछ इसी प्रकार की बात लगभग रोज ही होती।पर दूसरी ओर से कोई उत्तर नही मिलता।सूर्य प्रकाश अपने कस्बे के अति प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे,पार्षद भी थे। सर्राफे का कार्य खूब चल रहा था,घर मे खूब संपन्नता थी,दो अन्य भाई भी थे,चंद्र प्रकाश और आनंद प्रकाश।चंद्र प्रकाश पिलानी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रॉफेसर थे।आनंद सूर्य प्रकाश जी के पास ही रहता था।माता पिता स्वर्ग सिधार चुके थे।आनंद का भार सूर्य प्रकाश जी पर ही था।
सब ठीक ही चल रहा था,पर आनंद की पढ़ाई में रुचि न होना परेशानी का प्रथम कारण था।घर से सही समय पर विद्यालय के लिये घर से निकलना सही समय पर वापस आना यह आनंद का नियम था।उस दिन सूर्य प्रकाश धक से रह गये जब पता चला कि प्रतिदिन सही समय पर स्कूल के लिये निकलने वाला आनंद तो स्कूल जा ही नही रहा था,
तीन माह से फीस भी जमा नही की थी।पहली बार सूर्य प्रकाश जी ने छोटे भाई पर हाथ उठाया।फिर समझाया, पढ़ेगा नही तो करेगा क्या,कम से कम बी ए तो कर ले।किसी प्रकार आनंद ने हाईस्कूल पास कर ली।हाईस्कूल करने के बाद उसकी आवारागर्दी और बढ़ गयी,
घर से गायब रहना देर सबेर आना, घर आता तो मुँह से सिगरेट की बदबू आना उसकी संगत को भी दर्शा रही थी और उसके संस्कार भी।आखिर सूर्य प्रकाश जी ने उसका जेब खर्च लगभग समाप्त कर दिया,उन्होंने सोचा कि जब में पैसा ही नही होगा तो ऐब कैसे पनपेंगे, कैसे सिगरेट पियेगा।दूसरा सबसे बड़ा झटका तो तब लगा जब उन्हें पता चला कि आनंद शराब पीने लगा है।
जहां आनंद इस प्रकार के संस्कार विहीन आचरण के दौर से गुजर रहा था,पढ़ाई भी नाम मात्र को कर रहा था,वही उसमे एक गुण भी उभर रहा था,उसकी ग्राफिक और ड्राईंग की तरफ गहरी रुचि।उसने अब अपने दुर्गुणों की पूर्ति के लिये ड्राइंग के गुण को माध्यम बना लिया।
साठ के दशक में सिनेमा आदि के बड़े बड़े पोस्टर बनते थे,ऐसे ही रामलीलाओं के स्टेज के लिये भी परदों पर पेंटिंग की जरूरत होती थी।आनंद को जब नशे की तलब होती तो उसकी पूर्ति के लिये बहुत ही कम मजदूरी में वह पर्दे पेंटिंग कर देता या सिनेमा के पोस्टर बना देता।
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इंटर भी किसी प्रकार हो गया,पर अब तक आनंद पूरी तरह नशेड़ी हो गया था,सुल्फा, शराब सेवन अब नित्य कर्म हो गये थे,कई कई दिन घर ना जाकर कस्बे में शमशान गृह के पास स्थित मंदिर में पड़ा रहता।
ऐसी दयनीय स्थिति सूर्य प्रकाश जी से देखी नही गयी आखिर था तो भाई ही।उन्होंने मझले भाई चंद्र प्रकाश को बुलाया,सारी स्थिति उसके सामने रखी।चंद्र प्रकाश ने सुझाव दिया कि आनंद को मैं अपने साथ पिलानी ले जाता हूँ,यहां की संगत से पीछा छूटेगा तो शायद सुधर जाये।
सूर्य प्रकाश जी को भी सुझाव पसंद आया।चंद्र प्रकाश उसे पिलानी ले आये।संयोगवश राजस्थान में पुलिस कॉन्स्टेबल की रिक्तियां निकली।आनंद को आवेदन करा दिया गया।ईश्वर की अनुकंपा से आनंद सिपाही बन गया।
जीवन चक्र चलता रहा,आनंद उसी प्रकार फक्कड़ जीवन जीता रहा।तभी पिलानी में एक अमेरिकन प्रोफेसर लेक्चर हेतु आये उनका 15-20 दिनों का प्रवास था।उनके कुछ ग्राफिक्स आदि को सिस्टेमेटिक करना था,उनके पास समय की कमी थी,वो चाहते थे कोई उस कार्य को कर दे।
चंद्र प्रकाश जी को अपने छोटे भाई के हुनर का पता था,उन्होंने उस कार्य के लिये आनंद की सिफारिश कर दी। आनंद ने उस अमेरिकन प्रोफेसर के कार्य को सही अंजाम दे दिया वरन कुछ ग्राफिक्स में उसने जो गलतियां लगी उन्हें भी ठीक कर दिया।
अमेरिकन प्रोफेसर को यकीन ही नही हो पा रहा था कि एक साधारण सा सिपाही कैसे उनके ग्राफिक्स में कमी निकाल गया,वो जीनियस है, वह यहां सिपाही होकर क्यूँ जिंदगी खराब कर रहा है।चंद्र प्रकाश जी से कहकर उन्होंने आनंद को बुलवाया।
समस्या भाषा की आयी, आनंद अंग्रेजी नही जानता था।उनकी बात चंद्रप्रकाश जी के माध्यम से हुई।आनंद ने सिपाही पद से त्यागपत्र दे दिया।ग्राफिक्स के काम देखने के लिये आनंद को अमेरिकन प्रोफेसर के कहने पर पिलानी के इंजीनियरिंग कॉलेज में रख लिया गया।अंग्रेजी सीखने की ट्रेनिंग की व्यवस्था कर दी गयी।
आनंद के जीवन का टर्निंग पॉइंट अभी भी बाकी था।हुआ ये कि कॉलेज के ग्राफिक्स के प्रोफेसर एकाएक लंबी छुट्टियों पर चले गये,नयी व्यवस्था एकदम सम्भव हो नही पा रही थी तो प्रिंसिपल साहब ने यूँ ही आनंद को बुला कर कहा,आनंद तुम तो ग्राफिक्स की काफी नॉलिज रखते हो क्या क्लास में जाकर स्टूडेंट्स को एक दो दिन पढ़ा सकते हो?
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आनंद पूरे आत्मविश्वास के साथ कक्षा में गया और सफलता पूर्वक कक्षा को लेकर आया।तमाम विद्यार्थी आनंद के मुरीद हो गये, वो अब इस विषय को आनंद से ही पढ़ना चाहते थे।मजबूरी में ही सही एक इंटर पास फक्कड़ नशेड़ी रह चुके आनंद को एक इंजीनियर अध्यापक बनने का अवसर प्राप्त हो गया।
अस्थायी रूप से नियुक्त आनंद ने जब सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये तो उसे नियमित प्रोफेसर बनाया गया।विदेशों तक से उसे लेक्चर्स लिये बुलाया जाने लगा।नियति अपना खेल खेल चुकी थी।इसी आनंद को सेवा निवृत्त के समय भी पिलानी इंजीनियरिंग कॉलेज ने उन्हें तीन तीन बार एक्सटेंशन दिया गया।
आज प्रो.आनन्द बंगलुरू में अपनी आलीशान कोठी में रहते हैं, उनका एक बेटा अमेरिका में तो दूसरा सिंगापुर में बहुत अच्छी पोजीशन में जॉब में है।
मैं ग्राफिक्स आदि के बारे में जानकारी नही रखता,इसलिये इस कहानी के तकनीकी पक्ष से कृपया न समझे,मेरे पास किसी तर्क का उत्तर भी नही है,बस इतना निश्चित है कि ऐसा हुआ है।आनंद जी का नाम सही लिखा गया है, बाकी नाम बदल दिये गये हैं,
यदि कोई पाठक पुष्टि करना चाहे तो प्रो आनंद के नाम से पिलानी में खोज कर सकते हैं।आनंद जी से मेरी एक बार ही मुलाकात हुई है,पर उनके भतीजे से जो आजकल जयपुर में रहते है उनसे मेरे पारिवारिक संबंध रहे है।
क्या आपको नही लगता नियति भी अपना करिश्मा दिखा सकती है?
बालेश्वर गुप्ता,पुणे
सत्य ,अप्रकाशित।
संस्कार हीन पर आधारित: