Moral Stories in Hindi :
गृहिणी ही परिवार का आत्मा हें l
पुरे परिवार की माला की सूत्रधार हें l
गृहिणी हैं तो संसार,हेंl
अपनी तकलीफों का ,
पेटारा एक कोने में रख कर पूरे परिवार का
ध्यान रखती. ,अलग अलग भूमिका में अपना कर्तव्य निभाती
है !कोई त्यौहार छुट्टियों में भी नही करती ,आराम , बिना एंक्रीमेट के ही करती है श्रम!
घड़ी की सुई जैसी चलती रहती है निरंतर…
रिटायरमेंट की कोई आयु नही.. काम की कोई सीमा नहीं l
गृहिणी हें तो संसार हें l
एक ऐसी ही कहानी हे। गृहलक्ष्मी की। जिसका नाम हे राधा मध्यमवर्गीय परिवार की सुलझी हुई,परिवार से ,आधुनिक विचार और नई शैली के साथ ,पुराने परंपरा का महत्व और विचारोका पालन करने वाले ।
राधा सुबह सेहि परेशान थीं। काम में मे मन नही लग रहा था । अभी कुछ ही दिन बात दिवाली हे ,और तयारी भी नही चालू कीई थी । अस्वथ थी l उधर…
दोनो बच्चें सुबह से ही परेशान कर रहे थे। बाजार जायेंगे नया कपड़ा और दिवाली की खरीदारी करेंगे। और कुछ नया समान खरीदेगे ।
मेरा मन तयार ही नही हो रहा था l शादी के 14 साल हो गए और …
शादी के बाद की ये पहली दिवाली हैl मुझे सासू मां की बहुत याद आ रही है l
ऐसे अचानक उनका जाना ,घर घर ही नही लगा रहा था ।
घर की रौनक जैसे गायब ही गई थी ।सासू मां का चेहरा बार बार सामने आ रहा था।
राधा को अपनी पहिली दिवाली की बीते हुऐ पल याद आ रहे थे ।कितनी खुश थी ।
सुबह घर के पूरे काम करके ,सासू मां और में दोनो ही शॉपिंग के लिए निकल जाते थे ।
सासू मां कितनी उत्साही थी ।
उनके चेहरे पर अलग ही खुशी दिख रही थी । सब के लिए कपड़े ,घर के लिए राशन , दिवाली का दिए और सब के लिए बहोत सारे तोहफे एक एक परख परख खरीद रही थी ।
लेकिन सब में एक बात मुझे खटक रही थी ।
दुकान में मुझे कुछ चीजे पसंद आता थी । जैसे साडी और कुछ ज्वेलरी तो में सासू मां ,मां ! इसे ले लूं।
नही? आगे चल कर लेलेंगे।मेरी पसंद को।नजर अंदाज कर थी थी ।मेरा।मन में उदास हो जाता था ।
और अपनी बेटी के लिए हर एक चीज खरीद ली। जो उनको पसंद था ।
फिर भी मैं यही सोचती थी । उन्होंने ठीक।ही सोचा होगा ।और बात को भूल जाती थी ।
तीन चार दिन में दिवाली की शॉपिंग खत्म हो गई । और
घर की तयारी मे ।व्यस्त हो गए।
सासू “मां” ने मिठाई और कुछ नए पक्कवान भी तयार कर लिए । मेरी ननद की भी पहिली दिवाली थी । इसलिए ,
उनकी पसंद का पूरा ध्यान रख रहीथी ।
दिवाली की लगभग सब तयारी पुरी हो गई।
लक्ष्मी पूजन दिन था । सुबह से सासू मां ननद और दामाद के स्वागत के लिए व्यस्त थी ।
दोपहर का खाना खाने का समय हो गया । सब तयारी हो गई।
और में सब के लिए थाली। लगा रही थी ।
उतने में किचन से सासू मां बाहर आई।
बहु तुम दोनो भी उन लोगो के साथ खाना खाने बैठ जाओ।
नही सासू मां,
में और ये बाद में खाना खायेंगे । नही बहु पहिलि दिवाली हे तुम्हारी इस घर में ।तुम दोनो साथ में बैठो।
आखिर हम दोनो भी साथ खाना खाने बैठ गए । सासू मां
एक एक कर खाना थाली में परोस रहीथी।
उधर सासू मां ननद की मन पसंद डिश रसोईसे लेकर आई।
तभी ननद बोली वा मां मेरी फेवरेट डिश । और वो भी आपकी हाथ की बनाई हुई ।
में कुछ बोलूं ..
सासू मां मेरे बाजू में खड़ी थी ।
बेटी ये तुम्हारे लिए।
सासू मां के हाथ से ,कटोरी ले ली ,मां!हा बेटा तुम्हारी पसंद की ।
आपको कैसे मालूम ? सासू मां मुस्कराकर रसोई में चली गई । और रसोई में से पूछ रही थी ।
बेटा कैसे बनी ।खीर ? तुम्हारी मां जैसे बना थी वैसे तो नही तो बनी न ? लेकिन मैने कौशिक की । सासू मां का
अलग रूप था !
और खाना खाने बाद सासू मां ने मेरे को और सब को दिवाली के गिफ्ट दिए।साथ में सुंदर सी साड़ी ।
आज घर की,गृहलक्ष्मी।का मान हे।
अपने घर की परंपरा ही हे।
सासू मां की सोच अलग थी ।
बाजार से झाड़ू ,और दिवाली का सामान खरीद कर लाते । उसकी पूजा करते ।लेकिन घर की गृहलक्ष्मी का स्नमान नही करते ।
जो।साड़ी मैने दिवाली की। समय पसंद किए थी ,वही साड़ी सासू मां ने खरीद ली थी ।
और मुझे पता ही नही चला था ।
कुछ ही दिन बाद दिवाली हे।इसलिए सासू मां को याद कर रही थी । उसका।मन अस्वथ था ।
लेकिन फिर भी ,दिवाली की तयारी में लग गई।
देखते देखते लक्ष्मी पूजन का दिन आगया।
पूजा खत्म होते ही । राधा अपने ससुरजी के पैर छुने गई।
दिवाली का आशीर्वाद देते हुए ।ससुरजी नि बहु के हाथ साड़ी दी ।और बोले ।
राधा बेटा सासू मां नही हे।तो क्या हुआ घर घर की। परंपरा हे ।
गृहलक्षमी का मान रखना ।ये परंपरा में निभा रहा हु ।
ये परंपरा ही हे जो हमेशा वो अपनोके पास होने का एहसास होता हे।
आगे ये परंपरा को बढ़ाना हे। सास और बहु का अंतर कम करना हे। बेटी और मां का रिश्ता बनाना हे।
गृहिणी का मान सन्मान , आदर,जिस घर में होता हे
उस घर में लक्ष्मी का वास होता हें।
में मराठी भाषिक हु । हिंदी में लिखने की कौशिश कर रही हु ।
कृपया गलती को माफ करना ।
त्रुपती देव