Moral Stories in Hindi : जल्दी जल्दी नींद में बिस्तर पर छूट गयी पेशाब को मनोहर जी साफ करने में लगे थे कि कहीं बहू बेटा ना देख ले…. कल ही तो बहू काजल ने दूसरी चादर बिछायी थी…. कितना सुना रही थी उनके बेटे रवि मतलब अपने पति को कि अगर अबकि बार पापा जी ने चादर पर पेशाब किय़ा तो मैं नहीं साफ करूँगी…
भले ही घर छोड़कर जाना पड़े…. इसी वजह से बहू बेटे ने कल से ज्यादा पानी भी पीने को नहीं दिया कि कहीं फिर से मनोहर जी ऐसा न कर दें … 85 वर्षीय मनोहर जी को जबसे किडनी की समस्या हुई हैँ तबसे कभी कभी ऐसा हो जाता हैँ…. बेचारे मनोहर जी को अफसोस भी बहुत होता हैँ….
जल्दी से चादर हटा कर मनोहर जी उसे बाथरूम में ले जाकर धुलने लगे ये सोचकर कि बहू आज बेटे के साथ अपने भाई की शादी के कपड़े लेने गयी हैँ तो देर से ही लौटेंगे …. भूख भी लग रही थी उन्हे पर मन का डर उनके हाथ जल्दी जल्दी चलाने को बोल रहा था… उन पर चादर भीगने के बाद उठायी भी नहीं जा रही थी…मनोहर जी की सांसे फूलने लगी…तभी उन्होने सामने अचानक बेटे बहू को खड़ा पाया…. वो बस इतना बोले…. बहू…. अब नहीं होगा…मैने साफ कर दी हैँ….
बेटे रवि ने अपने पिता मनोहर जी को सहारा देकर कुरसी पर बैठाया…
देख लो फिर तुम्हारे पिता ने बिस्तर खराब कर दिया..कितनी बदबू आ रही हैँ….इनको अस्पताल में भर्ती करवाओ…
.बहू कुछ और बोलती उस से पहले रवि बोला…
तुम अपने मायके जा सकती हो….उस बाप को कैसे छोड़ सकता हूँ.. जिसने मेरी पैंट तक साफ की थी जब मैं पोटी कर लेता था कच्छे में…. उस बाप का पेशाब नहीं साफ होगा ज़िसकी यूनीफोर्म पर मैने उस दिन टोयलेट कर दी थी जब पिता जी अपने सम्मान समारोह में जा रहे थे… इन्होने चू तक नहीं की…. ख़ुशी ख़ुशी पानी से थोड़ा स साफ कर चले गए…
चलिये पापा.. कितने गीले हो गए हैँ आप.. ठंड लग जायेगी…. आपके लिए चाय बनाता हूँ…. बेटे ने दीवान से नयी चादर निकालकर मनोहर जी के बिस्तर पर बिछायी…. उन्हे बैठाया… उनके कपड़े बदले ….. अपने हाथों से चाय पिलाने लगा… मनोहर जी के कंपकपाते हाथ बेटे को आशीर्वाद देने के लिए उसके सर पर आ गए…
आँखों से भी नीर बह निकले थे ज़िसे धोती के कोरों से मनोहर जी पोंछते जा रहे थे… सामने लगी पत्नी की तस्वीर को देख मन ही मन बोले… देख ले विमला तू कहती थी मैं चली जाऊंगी तो कौन ख्याल रखेगा मेरा…. हमारा रवि देख कैसे तेरे बुढ़ऊँ की सेवा कर रहा हैँ…. बहू भी दरवाजे पर खड़ी पश्चाताप के आंसू बहा रही थी….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा