Moral Stories in Hindi : ‘पलाश बेटा! तुम खड़ी और गेरू लाए या नहीं, बहू की इस घर में पहली दीपावली है, उसे घर की देहरी सजाना है। वह घर की लक्ष्मी है और यह कार्य गृहलक्ष्मी का ही है।’ सुहासिनी जी ने अपने बेटे पलाश से कहा। सुहासिनी जी का स्वास्थ बहुत खराब हो गया था, और वे बिस्तर से उठ नहीं पा रही थी। कमजोरी बहुत आ गई थी और डॉक्टर ने उन्हें आराम करने के लिए कहा था।
पलाश ने कहा -‘माँ मैं खड़ी और गेरू लेकर आया हूँ, कैसे भूल सकता हूँ, तू हर साल कितने उत्साह से मांडने मांडती है, देहरी सजाती है। मगर पता नहीं दीपा को यह सब आता है या नहीं।’ ‘नहीं आता होगा तो सीख जाएगी। जब मैं शादी करके आई थी, तो मुझे कुछ नहीं आता था। तब तेरी दादी ने मुझे सिखाया था। जा अब दीपा को मेरे पास भेज दे।’दीपा दीपावली की सफाई और मिठाई बनाने में बहुत थक गई थी, सोच रही थी अब मम्मीजी पता नहीं कौनसा काम बताएगी।
दीपा ने आकर सुहासिनी जी के पैर छुए। उन्होंने आशीर्वाद दिया और कहा- ‘बेटा तुझे देहरी मांडते आता है या नहीं? बेटा हमारे यहाँ गृहलक्ष्मी दीपावली पर घर की देहरी सजाती है। ऐसी मान्यता है कि जब बहू घर की देहरी सजाती है, तो घर में श्री और सम्पदा का वास होता है।’ दीपा ने कहा ‘मम्मी जी मेरे मायके में भी भाभी देहरी सजाती है। मैं मांडने का प्रयास करती हूँ, अगर कुछ गलती हो तो आप ठीक करवा देना।
मैंने बस देखा है बनाया नहीं ।’ सुहासिनी जी ने पलाश से कहा बेटा मुझे देहरी के पास बिठा दे। वह आराम कुर्सी पर बैठे-बैठे दीपा को लगन से काम करते हुए देख रही थी, और दीपा की ऑंखों में वह दृष्य चलचित्र की तरह घूम रहा था, जब उसने इस देहरी पर रखे चांवल के कलश को पैर से धकेलते हुए घर में प्रवेश किया था। सुहासिनी जी ने उसके पैरो पर रोली लगा कर उसे घर मे प्रवेश कराया था,
उस समय कितने सुन्दर मांडने बने हुए थे। आज उसे लक्ष्मी जी के पगल्ये बनाना है और उस दिन उसने अपने पैरो के निशान उस देहरी पर बनाते हुए घर में प्रवेश किया था।उसे एहसास हो रहा था, परिवार में अपने महत्व का। उसके मन में अपार हर्ष था। उसने पहले खड़ू और गेरू को अलग – अलग कटोरी में गलाया उसमें गोंद गलाकर मिलाया ताकि जमीन पर पकड़ अच्छी हो।खड़िया में थोड़ी सी नील डाली ताकि सफेदी अच्छी लगे।
मकान पक्का था । दीपा ने डेली को पीली मिटी से लीपा एक छोटे से कपड़े की चिन्दी के सहारे खड़ू और गेरू की रेखाओं से पहले लक्ष्मी जी के पगल्ये बनाए फिर उसके आसपास स्वस्तिक बनाया। ऊपर की तरफ कलश और नारियल बनाए और चारो तरफ से रेखाएँ खीचकर सुन्दर भरावन भरी। आसपास कंगूरे लगाए। फिर सुहासिनी जी की तरफ देखकर पूछा मम्मीजी ठीक बनी या नहीं। कुछ और तो नहीं बनाना इसमें। बहुत ही सुन्दर बनाई हैं बेटा बस एक दीपक और बना दे।
सब शुभ लक्षणों के साथ गृहलक्ष्मी पूरा घर संवारती है और घर की रोशनी, रौनक सब गृहलक्ष्मी से ही होती है। उन्होंने दीपा के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो उसकी सारी थकान दूर हो गई, मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया। फिर सुहासिनी जी ने उसके हाथ पर एक चांदी का सिक्का रखा और कहा-‘ बेटा वैसे तो यह पूरा घर ही तेरा है। पर ये तेरी देहरी मांडने का नेग है और मेरा आशीर्वाद, इसे हमेशा सम्हाल कर रखना। उनकी ऑंखों में एक चमक आ गई थी, दीपा उनकी खुशी का अनुमान लगा रही थी, उनके चेहरे से उसकी नजर नहीं हट रही थी।
उसका ध्यान भंग हुआ जब सुहासिनी जी ने पलाश से कहा जा तू चाय बनाकर ला बहू थक गई है।’ फिर वे दीपा से बोली – ‘तनिक मेरे पास बैठ, मैं जानती हूँ तू बहुत थक गई है बेटा, मैं भी तेरी मदद नहीं कर पा रही हूँ।’उनकी ऑंखें छलछला गई थी। पलाश चाय बनाने के लिए गया, तब तक सुरेश जी भी बाजार से आ गए बोले – ‘दोनों गृहलक्ष्मी में कौन सी खिचड़ी पक रही है।’
सुहासिनी जी ने कहा कोई खिचड़ी नहीं पक रही, पलाश चाय बना रहा है, अगर आपको पीना हो तो उससे कह दो।’ ‘चाय तो पीना है।’ दीपा उठकर रसोई में जाने लगी तो वे बोले -‘ बैठ बेटा, मैं ही पलाश से बोल दूंगा। और अच्छी गरमागरम कचोरी लाया हूँ। हम चाय के साथ उसे भी लेकर आते हैं।’ सुहासिनी जी ने कहा- ‘ये हुई ना कोई बात। आप ही रसोई में जाइये।’ दीपा बोली मम्मीजी बहुत सारे काम करने हैं, मैं अभी आती हूँ।’ नहीं बेटा पहले कुछ खा लो अगर शरीर में शक्ति नहीं रहेगी तो काम कैसे करोगी?
बेटा मैं भी तुम्हारी ही तरह बावरी थी, खाने का होश ही नहीं रहता था। आज पछताती हूँ, अगर अपने शरीर का कुछ ध्यान रखती, तो आज तेरे साथ काम करती। मेरी लापरवाही का ही नतीजा है कि मुझमें असमय बुढ़ापा आ गया है। पलाश और सुरेश जी नाश्ता चाय लेकर आ गए थे। सबने चाय नाश्ता किया। परिवार के लोगों के प्यार और विश्वास से दीपा में नई ऊर्जा का संचार हो गया।
उसने सोचा परिवार के सभी लोग मेरा इतना ध्यान रखते हैं, मान देते हैं तो क्या मैं सबकी खुशी के लिए घर का सारा काम प्रेम से नहीं कर सकती? उसने दुगने उत्साह से सारे काम निपटाए। अच्छे मोहरत में द्वार पर तौरण लगाया, स्वस्तिक, कलश और लाभ शुभ के स्टीकर लगाए। रंगोली बनाई। पलाश ने हर कार्य में उसकी मदद की। गोधुली बेला में घर का आंगन दीपमालिका की रोशनी से जगमगा उठा। सबके मन में खुशियों के दीप जगमगा रहै थे । सबने मिलकर लक्ष्मी मैया की पूजन की। सर्वत्र रोशनी का साम्राज्य था और सबके मन प्रफुल्लित।
साथियों त्यौहार पर गृहलक्ष्मी का कार्य कुछ बड़ जाता है, ऐसे में थोड़ा सा सहयोग, प्यार और विश्वास उसमें नवीन ऊर्जा का संचार कर देता है और घर में खुशियाँ बिखरती है।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
कहानी अच्छी लगी। इसी प्रकार लिखते रहिए।
Keep it up sister