शर्मिंदा – के कामेश्वरी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अमेरिका में रहने वाला राजीव अपने दोस्तों से मिलने के लिए प्रशांत के बुलाने पर उनके घर पहुँचा । सब राजीव को देखते ही हँसते हुए उसकीटाँग खींचने लगे कि स्वागत है राजीव जी आज बीबी ने परमिशन देदिया है वाह क्या बात है । राजीव अकेला ही है जो बुलाते ही हाँ नहीं कहता है शिल्पा से एक बार पूछ कर बताता हूँ कि कोई प्रोग्राम तो नहीं है । यह उसका हमेशा का डायलॉग रहता था ।अब सब मिलकरबातें करने लगे ।

ये सब पाँच दोस्त हैं जो इंडिया में एक साथ इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते थे । सबने मिलकर जी आर ई टोफल की परीक्षा लिखकर एक साथ एम एस करने के लिए अमेरिका आ गए थे । यहाँ पर भी सब एक साथ ही रहते थे । सबने अच्छे से पढ़कर नौकरियों को भी पा लिया था । 

अब तो सारे दोस्त अपने अपने परिवार के साथ एक ही जगह रहते थे और हर हफ़्ते किसी न किसी के घर पर मिलते थे । आज वीकेंड में सबने प्रशांत के घर पर मिलने का प्लान बनाया था । 

राजीव ने बातों बातों में कहा कि प्रशांत अंकल अभी भी पत्र लिखाकरते हैं क्या? कॉलेज के समय में वह बताया करता था कि उसके पिता रिश्तेदारों को बिना किसी रुकावट के पत्र लिखा करते थे चाहे वे लोग लिखें या ना लिखें । माँ हमेशा टोकतीं थीं कि फिकर सिर्फ़ आपको रहती है उनकी तरफ़ से तो कोई पहल नहीं होती है बेकार में दस पंद्रह रुपयों का खर्चा है और कुछ भी नहीं । 

पिताजी हँसते हुए कहा करते थे कि मेरी जीवन सँगिनी जब अपने और अपने आसपास के लोग खुश हैं तो हम भी खुश रहते हैं यह जीवन का मूल मंत्र है । प्रशांत ने  हँसते हुए कहा कि अरे नहीं यार मैंनेउनके लिए एक फ़ोन ख़रीद कर दे दिया है तो आजकल मेसेज भेजनेका काम कर रहे हैं । राजीव ने देखा कि जब प्रशांत यह बता रहा था तो उसका चेहरा पर ख़ुशी से चमक रहा था और ज़ोर शोर से बताने लगा कि राजीव तुम्हें मालूम है ना मैं बताता था कि  वे हमें पत्रों को पढ़कर सुनाया करते थे ठीक वैसे ही आजकल  मुझे मेसेज पढ़करसुनाया करते हैं और इतना खुश होते हैं कि बस मैं बातों में उसे नहीं बता सकता हूँ । 

जब वह अपने पिता के बारे में बता रहा था उस समय उसकी आँखें भी नम हो गईं थीं । 

मैं मन ही मन शर्मिंदगी महसूस कर रहा था क्योंकि मेरी माँ भी मुझे पत्र लिखा करती है पर मैं बिना पढ़े ही उनके पत्रों को रेक में रख देता था । एक दिन मेरी पत्नी ने कहा भी था कि आपकी माँ इतने प्यार से आपको पत्र लिखा करती हैं और आप हो कि उसे बिना पढ़े ही अंदर रख देते हैं । 

पहली बार जब उन्होंने मुझे पत्र लिखा तो मैंने उसे खोलकर पढ़ा तो उन्होंने पत्र के शुरुआत में लिखा था कि हम सब यहाँ कुशल मंगल हैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वहाँ तुम सब कुशल मंगल हो ।  मैं यह पत्र तुम्हें इसलिए लिख रही हूँ कि तुम्हें याद है ना राजीव हमारे पड़ोस में रहने वाले चाचा जी जिनके घर में ही तुम रहते थे उनके बच्चे नहीं थे तो तुम्हें अपने बेटे से बढ़कर मानते थे । उनकी तबियत बहुत ख़राब हो गई है बेटा वे तुम्हें याद कर रहे थे एक बार फोन पर उनका हाल-चाल पूछ लेता तो उन्हें ख़ुशी होगी । 

मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता था कि कभी बचपन में उनके घर पर गया था तो आज बात कर लो हुँह माँ भी!!!

 मैं माता पिता को ही कभी पत्र नहीं लिखता हूँ सिर्फ़ फोन पर पंद्रह बीस दिन में एक बार बातें करके हाल-चाल पूछ लेता हूँ । माँ की चिट्ठी महीने में एक तो ज़रूर आ जाती है कभी कुछ कभी कुछ पुरानी यादें ताजा करती हैं मुझे वह सब बेकार लगता था । 

आज प्रशांत को देखते ही मुझे लगा कि मैं कितना ग़लत था । हम दोस्त भी तो मिलते ही पुरानी बातें ही करते हैं इसलिए शिल्पा नहीं आती है कि मैं बोर हो जाती हूँ तुम लोग जब देखो तब फस्ट इयर में क्या हुआ था फ़ाइनल इयर में क्या हुआ था बस यही बोरिंग बातें करते हो । 

प्रशांत के पिताजी अंदर से आकर सबको हेलो कह रहे थे तब मैं इस दुनिया में पहुँच गया था । वे कह रहे थे कि राजीव अपने माता-पिता को भी बुला लो इनफेक्ट आप सभी अपने माता-पिता को बुला लोगे तो हमारी भी महफ़िल जम जाएगी और आप लोगों को भी नहीं लगेगा कि उन्हें वहाँ अकेले छोड़ आए हैं । उनकी बातों में दम था हम सबको बहुत पसंद आया हमने सोचा कि सही है हम प्लान करके सबको यहीं बुला लेते हैं ।

हम सब उनसे बिदा लेकर घर जाने के लिए उठे । राजीव रास्ते भर यही सोच रहा था कि पहुँचते ही सबसे पहले माँ की चिट्ठियों को पढ़ूँगा । 

राजीव ने देखा माँ ने हर चिट्ठी में ऐसे ही शुरू किया था कि हम सब यहाँ खुश हैं तुम सब वहाँ खुश होगे पत्र की एक एक बात दिल को अंदर से झकझोर रही थी । माँ ने लिखा था जब तुम स्कूल से आते थे और मुझे सामने नहीं पाते थे तो माँ-माँ पुकारते हुए पूरे घर को सर पर उठा लिया करते थे ।  अपने आसपास की सारी बातें लिखा हुई थी ऐसे लग रहा था जैसे मैं अपने बचपन को फिर जी रहा हूँ । मैं शर्मिंदा हो रहा था कि आज तक इन पत्रों को ना पढ़कर मैंने बहुत ही खूबसूरत पलों को खो दिया है। 

दोस्तों सिर्फ़ एक पत्र या एक मेसेज से बहुत कुछ मिल जाता है । अपनों को याद करना या अपनों से मिलने को समय की बर्बादी मत समझिए बल्कि उसकी अहमियत को समझिए । 

के कामेश्वरी 

 साप्ताहिक विषय- शर्मिंदा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!