खुद पर भरोसा कर के तो देखो – रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज रति बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी.. सोचा ही नहीं था ये बच्चे भी कभी अपनी माँ को यूँ शर्मिंदा कर सकते हैं।

“बहुत हो गया पति और बच्चों पर आत्मनिर्भरता अब खुद ही करना होगा…।” सोचते सोचते रति कुछ पल पहले की बात सोच कर परेशान हो उठी थी 

“ अरे वाऊ आँटी आपको कार चलानी भी आती है…मेरी मम्मा को तो कुछ भी करना नहीं आता…आजकल सब ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं पर मेरी मम्मी वो भी करना नहीं जानती…शॉप पर जाएँगी वो भी किसी को साथ लेकर …आप करती है ऑनलाइन शॉपिंग? “ अनिकेत ने एक महीने पहले पड़ोस में रहने आई काव्या को देख कर पूछ बैठा 

“ हा बिल्कुल मैं अपने सब काम खुद ही कर लेती हूँ… पति और बच्चों के चक्कर में तो कभी काम ही ना हो..इसलिए अब हम औरतों को खुद ही काम करना सीख लेना चाहिए।” गर्व से काव्या ने कहा और सब लिफ़्ट की ओर बढ़ गए 

रति को बेटे की बात सुन बहुत बुरा लग रहा था…आजकल के बच्चे जरा बड़े क्या हो जाते ये भी भूल जाते उन्हें बड़ा करने और सब कुछ सिखाने में इसी माँ का हाथ होता है।

घर आकर वो चुपचाप से अपना राशन का सामान समेटने लगी … बेटा जो माँ को स्कूटी पर लेकर बाज़ार गया था चाभी होल्डर पर लटका मोबाइल लेकर व्यस्त हो गया। बारहवीं की परीक्षा देकर वो कोचिंग जाने लगा था तो उसे स्कूटी चलाने की परमिशन दे दी कि आने जाने में आसानी होगी…. और रति भी अब उसके साथ पास के बाज़ार चली जाया करती थी……मोबाइल पहले से ही पढ़ाई की ज़रूरतों को ध्यान में रख कर दे दिया गया था ।

तभी रति से अनिकेत ने कहा ,” माँ मैं कुछ सामान ऑनलाइन आर्डर कर रहा हूँ… हज़ार रूपये चाहिए होंगे.. जब सामान घर पर आएगा तब दे कर ले लेना … प्लीज़ ।” 

रति ने हाँ में सिर हिला दिया ।

कुछ दिनों बाद अचानक रति ने देखा रसोई का कुछ सामान ख़त्म हो रहा है … जाकर लाने का मन नहीं कर रहा था…उसने अनिकेत के कोचिंग से आने के बाद कहा,” बेटा ये दो चार सामान आर्डर कर दे…तेरे पापा होते तो वो कर देते थे… बहुत जल्दी दे जाता है… कभी कभी मुझे भी बहुत आराम मिल जाता है ।”

“ ओहहहो माँ अभी तो आया हूँ कोचिंग से दो मिनट रेस्ट करने दो फिर करता हूँ आर्डर… वैसे आप ये सब क्यों नहीं सीख लेती हो … देखो काव्या आंटी सारा काम खुद ही करती है… ना कभी उन्हें अंकल के साथ आते जाते देखा ना उनके बच्चों के साथ… आपको तो आदत हो गई है जब तक दीदी हॉस्टल नहीं गई थी उससे सब करवा लेती थी अब मुझे बोलती हो… कल जब मैं भी चला जाऊँगा…. फिर क्या करोगी…..पापा ऑफिस होंगे ऐसे में क्या आप उनके आने का इंतज़ार करती रहोगी.. खुद भी करना सीखो ना।” कह अनिकेत दोस्त का कॉल आ गया तो उसमें व्यस्त हो गया 

रति को उस दिन की शर्मिंदगी याद आ गई और बेटे की कही गई बात कहीं ना कही उसे चोट तो कर ही रही थी वो अपना मोबाइल ली और एप डाउनलोड करने लगी जिससे उसके पति और बच्चे सामान आर्डर किया करते थे .. फिर सारी प्रक्रिया याद कर कर के वो अपना काम करने की कोशिश कर रही थी… तभी बेटे की एक बात याद आई कूपन भी होता है कभी कभी…उससे भी पैसे कम हो जाते … रति ने वो भी खोज कर सब अच्छी तरह चेक कर आर्डर कर दिया ।

जब सामान आया अनिकेत ने दरवाज़ा खोला।

डिलीवरी वाले ने सामान देते हुए पैसे बोले..

“ हाँ ला रही हूँ।” कहते हुए रति झट से पैसे देकर सामान ले ली 

अनिकेत आश्चर्य से देख रहा था… दरवाज़ा बंद कर बोला,” कर ही रहा था ना आर्डर पापा को बोलने की क्या ज़रूरत थी… बस आप डाँट खिलवाना अब मुझे?” 

“ पापा से नहीं कहा…खुद ही किया था… बहुत हो गया तुम लोगों पर आश्रित रहना …ऐसा तो नही है हमें कुछ आता नहीं है … बस जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तो हम सोच लेते हैं वो अब समझदार हो गए हैं…तो हमारा काम कर दिया करेंगे पर नहीं … वो हमें बता रहे खुद से करना सीखो .. लो भई सीख लिए …अब ज़रूरत नहीं पड़ेगी तुम्हारी….खुद कर लिया करूँगी।” रति की आवाज़ थोड़ी सख़्त हो गई थी 

दूसरे दिन अनिकेत की छुट्टी थी वो देर तक सो रहा था…. रति बहुत दिनों से सोच रही थी पास के मॉल में सेल लगी है एक बार जाकर देख आती हूँ….पर अकेले जाने से हमेशा बचती रहती थी…पर अब तो सब अकेले ही करना है ये सोच वो घर से निकल गई ।

कुछ समय बाद अनिकेत का कॉल आया,” कहाँ हो माँ … उठ कर पूरा घर छान मारा ?” 

“ मॉल आई हूँ… खाना रखा हुआ है गर्म करके खा लेना ।” रति ने कहा 

“ अरे पर किसके गई हो..  कैसे गई हो बताओ तो सही?” अनिकेत आश्चर्यचकित हो पूछा 

“ अकेली स्कूटी से आई हूँ … तुम खाना खा लेना आती हूँ कुछ देर में।” कह रति ने फोन काट दिया 

घर पहुँची तो अनिकेत चक्कर काट रहा था…

“ तुमने पापा को क्यों फ़ोन किया… वो परेशान हो पूछ रहे थे ठीक हो ना?” रति घर में घुसते हुए बोली 

“ अरे तुम स्कूटी से अकेली चली गई… वैसे तो तुम्हें डर लगता है चलाते हुए फिर कैसे गई मुझे फ़िक्र हो रही थी कही गिर विर ना गई हो..इसलिए पापा को बता दिया मम्मी अकेली स्कूटी से मॉल चली गई है ।” अनिकेत माँ के हाथ से पैकेट लेकर उसके पैर हाथ देखने लगा

“ कुछ नहीं हुआ है मुझे… धीरे-धीरे चला कर गई थी… वैसे भी अब मुझे खुद को शर्मिंदगी से बचा कर गर्व महसूस करना है ….क्या ही होता गिर जाती… बचपन में तुम लोगों को सब कुछ मैंने ही सिखाया… साइकिल चलाते वक्त गिर कर रोते तो फिर हिम्मत देकर चलाने को प्रेरित करती थी पर तुमने क्या किया… ठीक है मुझे नहीं आता था तो सीखा देते.. दूसरों के सामने बोल कर मुझे शर्मिंदा करने की क्या ज़रूरत थी.. अब तो हो गई हूँ ना तुम्हारी काव्या आंटी की तरह सेल्फ इंडिपेंडेंट ।” रति आज बेटे को सुनाते हुए बोली 

अनिकेत माँ की बात सुन सिर झुका लिया… सच ही तो कह रही है माँ जब भी वो गलती किया या निराश हुआ माँ पापा हमेशा सपोर्ट करते रहे और वो अपनी माँ को सपोर्ट करने के बजाए दूसरों के सामने शर्मिंदा कर रहा था..

“ सॉरी माँ मुझसे गलती हो गई मुझे उस दिन काव्या आंटी के सामने वैसे नहीं कहना चाहिए था ।” अनिकेत सिर झुकाए माँ के सामने खड़े हो कर बोला

“ कोई बात नहीं बेटा कभी-कभी कुछ कड़वी बातें भी ज़िन्दगी में सबक दे जाती है… मैं भी कुछ ज़्यादा तुम लोगों पर आश्रित होती जा रही थी अब जब खुद से करने लगी हूँ आत्मविश्वास आ रहा है….और अब शायद तुम्हें भी किसी के सामने शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं होगी ।” कह रति कमरे में चल दी

दोस्तों कई बार हम माएँ बच्चों और पति पर इतने आश्रित हो जाते हैं कि कुछ भी करने से पहले ये सोचते हैं कहीं गलती ना हो जाए और फिर उनसे करवाते चले जाते है और सीखना भूल जाते हैं… ये भी याद नहीं रहता जिन बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा हमने दी वो भी हमें सुना जाते ऐसे में कई बार शर्मिंदगी महसूस होती है… ऐसे में उन बातों को जेहन में बिठा कर कुंठाग्रस्त हो जाती या फिर रति की तरह खुद को सक्षम बता कर बच्चों को एहसास करवा देती कि हमें कम समझने की गलती ना करें ।

उम्मीद है मेरी रचना आपके पसंद आएगी…. आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# शर्मिंदा

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