लड़के वाले सीजन -3 (भाग – 9) : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि उमेश और शुभ्रा की झिझक धीरे धीरे खुल रही हैँ… विवाह निकट आ गया हैँ… घर में उमेश का छोटा भाई अपने भाई भाभी के लिए सुन्दर कमरा तैयार  करने में लगा हुआ हैँ…. पर ये विवाह होना  इतना आसान कहां…. उधर शुभ्रा के घर दो आदमी कोई लिफाफा फेंक कर भाग गए हैँ…. ताई सभी को बुला लिफाफा दिखाती हैँ… एक एक कर सब पढ़ रहे हैँ… दादा नारायण जी कागज में कुछ पढ़ते हैँ… अपना माथा पकड़ लेते हैँ… जे का हैँ गयो…. ताई बोलती हैँ…. बाऊ जी… मैं पहले ही कह रही कि जे छोरा वारे मोये कछु ठीक ना लाग रहे… जे छोरा उमेश….

अब आगे….

जे छोरा उमेश पहली बात तो उनको सगो बेटा नाये हैँ…. फिर भी हमने कछु ना कही… पर अब तो जे कागज में जो लिखो हैँ वाके बाद तो ब्याह हैं ही ना सकत अब…

ताई की जोर आवाज सुन अंदर से शुभ्रा भी दौड़ी हुई आती हैँ…

ऐसो का लिखो हैँ या कागज में… मोये भी बताओ….शुभ्रा की माँ बबिता जी शुभ्रा को पकड़ कर बोली….

का बताऊँ तोये… छोरा पहले से ब्याहता हैँ… शादी हैँ चुकी हैँ याकी…. याके दो बालक भी है ….

यह सुन बबिता जी जमीन पर बैठ ज़ाती हैँ…

शुभ्रा जल्दी से अपने पापा के हाथ से वो कागज छीनती हैँ…आँखों में आंसू भरे  पढ़ती हैँ… कागज में लिखा था…

कहते हुए अच्छा तो नहीं  लग रहा… पर हम आपका भला चाहते हैँ… किसी की लड़की गलत घर ना पहुँच जायें बस इसलिये बता रहे हैँ… जिस लड़के उमेश से आप अपनी बेटी का विवाह कर रहे हैँ वो पहले से शादीशुदा हैँ… इसके दो बच्चे हैँ… इसकी शादी को 6 साल हो  गए हैँ…. छुपाकर रखता हैँ ये लड़का अपने पत्नी बच्चों को…. सभी को पता हैँ… आप लोग भले और मासूम  लोग हो इसलिये आपको धोखा दे रहे हैँ… अब ज्यादा छानबीन करने की ज़रूरत नहीं आपको… शादी पास हैँ… अगर लड़की का भला चाहते हैँ तो ठंडे दिमाग से सोचकर शादी तोड़ दीजिये … इसी में आप सबकी भलाई हैँ….

अंत में लिखा था… आपका शुभचिंतक ….

शुभ्रा यह पढ़ अपने आंसू पोंछती हैँ… अपने दादा जी के पास ज़ाती हैँ…. उनके हाथों को अपने हाथ में रख   कहती हैँ…

दादा जी… एक कागज के टुकड़े पर इतना विश्वास हैँ क्या आप लोगों को… ज़िसका ये भी नहीं पता किसने भेजा हैँ… मुझे बिल्कुल यकीन नहीं है कि उमेश जी ऐसे हैँ… ज़ितना समझा हैँ उन्हे इतना तो विश्वास से कह सकती हूँ…

हां… तुझसे तो वो मीठी मीठी प्यार भरी बातें करें हैँ ना … तोये तो विश्वास ही होगो… ये उमर ही  ऐसी हैँ लाली कि लड़का लड़की बहक जावें हैँ कछु ना सोचे हैँ….  चार दिना भये ना बात करें तोये इतनो विश्वास हैँ गयो….काऊँ ने भेजो हैँ लिखके तो कछु तो सच्चाई होगी इसमें…बाऊ जी… मेई मानो तो अभी अबेर ना भ्ई … ब्याह तोड़ देओ …. ताई सुमित्रा जी घूंघट की ओट से पटर पटर  बोलती जा रही थी….

बेचारे शुभ्रा के पिता तो कुछ कह ही नहीं पा रहे… बस आँखों में आंसू भरे लाठी लिए खड़े हुए हैँ…

घर के सभी बच्चे बोले… हमें भी नहीं लगता कि हमारे उमेश जीजा जी ऐसे हैँ… वो दीदी से बहुत प्यार करते हैँ….

दादा नारायण जी सबकि सुनने के बाद बोले…. का बोली सुमित्रा तू … ब्याह तोड़ देओ … बिना जांच पड़ताल करें ब्याह तोड़ दूँ…. फिर तो तेरो , सुमन जीजी को, तेरे भईया को और भी रिश्तेदारी में लोग जन  हैँ उनको ऊँ ब्याह ना होतो …

बाऊ जी के मुंह से यह सुन कुछ याद कर ताई के चेहरे की हवाईय़ां उड़ गयी…

जब तेरो और बबलू को ब्याह होने वारों तब वो तार वारे फ़ोन में जग्गु के यहां फ़ोन आयो … मोते कोई बात करनो चाह रहो…

मैं गयो… वा आदमी ने कही कि वो तोते प्यार करतो हैँ और तू वाते …. अगर जे ब्याह करोगे तो तुम् सबन कूँ  कट्टा ते उड़ाये दूँगो… जबकि जे बात सही भी ही वा आदमी कि तुम दोनों की प्रीत हती …. सही कही ना सुमित्रा. … पर तेरे पिता ने बोली… ऐसो कछु ना हैँ… छोरी की गारंटी हम लै रहे कि हमारी लाली तुमाये घर में कभी ऊँच नीच ना होने देगी… बालकपन में नादानी कर गयी… अगर हम विश्वास ना करते तो का आज तू हमाये घर आती …. और देख कैसे तूने घर कूँ सवारो …. तोते अच्छी बहू हमें मिलती भी नाये…. और वो सुमन जीजी के ब्याह के टाइम काऊँ ने कागज पत्र भेजो कि छोरा कूँ दिल की बिमारी हैँ.. ब्याह मत करियो…. आज ब्याह के 40 साल  हैँ गए जीजी के… जीजा जी अभी  भी खटिया में बैठे हुकुम दै रहे हैँ.. ऐसे ही कई बार भयो…. तो मैं ज़े कहने चाहूँ हूँ…. कि कई बार जलन ईश्रया में भी कई जन ऐसे करे हैँ… कि अच्छे घर में ब्याह ना होवे….

दादा जी कि यह बात सुन शुभ्रा के मन को कुछ तसल्ली मिली फिर भी वो बहुत परेशान थी ….

पर बाऊ जी… यहां तो बात ही कछु और हैँ… छोरा पहले से शादी शुदा बताये जा रहो हैँ… का करो जाये फिर … ताऊ बबलू जी बोले…

ताऊ , दादा जी ऐसा करते हैँ वो सामने प्रशांत  अंकल के यहां सीसीटीवी  कैमरा लगा हैँ… उसमें से फुटेज देखते हैँ कि ये लेटर किसने फेंका हैँ… शायद कुछ पता चल जायें … हम पहचान जायें उन  आदमियों को…. शुभ्रा का भाई विक्की चहकता हुआ बोला…

जे सही कही तूने छोरा… नेक जइयो प्रशांत के घरे तू और बबलू … अपये फ़ोन पर ले अईयो …. देखत हैँ को हैँ… दादा नारायण जी कहते हैँ…

ठीक हैँ दादा जी…

शुभ्रा के फ़ोन पर उसकी सास और उमेश के अनगिनत कॉल आ रही हैँ……

अंदर से बबली शुभ्रा का बजता हुआ फ़ोन लेकर आती हैँ… दीदी कबसे फ़ोन बज रहा हैँ आपका… लीजिये ….

दादा नारायण जी बोलते हैँ… छोरी बात कर लै … इतये फ़ोन आयें हैँ तो… काऊँ के फ़ोन पर छोरा वारे फ़ोन करें तो कोई कछु ना बतईयो चिठ्ठी वाई बात … जब तक सच को पतो ना चल जायें… पहले हम देख लेवे बात सच हैं भी य़ा नाये … तब उनसे पूछियो …. परेशान हैँ जावेंगे वो सब जन ….

जी दादा जी…. सभी लोगों ने हामी भरी …

दुबारा उमेश का फ़ोन आने पर शुभ्रा आँखों में आंसू भरे अंदर कमरे में ज़ाती हैँ…

शुभ्रा फ़ोन उठाती हैँ…

हेलो शुभ्रा… तुम ठीक तो हो… और तुम्हारे घर में सब ठीक हैँ ना.. .

हां जी सब ठीक हैँ… शुभ्रा खुद को संभालते हुए बोलती हैँ…

तुम्हारी आवाज इतनी धीरे कैसे हैँ…. कोई दिक्कत हैँ क्या … माँ कब से फ़ोन कर रही हैँ …..

शुभ्रा मन ही मन सोची कि जिस लड़के से अभी विवाह के बंधन में बंधी भी नहीं हूँ… वो मेरी आवाज सुन दूर से ही जान जाता हैँ कि मैं उदास हूँ…. वो उमेश जी जो मुझे टूटकर चाहते हैँ… लोग कह रहे कि वो मुझे धोखा दे रहे… धोखा तो वो अपनी शुभ्रा को दे ही नहीं सकते….

अचानक से उमेश की आवाज से शुभ्रा सोच से बाहर आयी… फिर बोली…

जी मैने देखा नहीं… थोड़ा काम कर रही थी….. माँजी  को कोई ज़रूरी बात करनी हैँ क्या ….

हां… वो कल धनतेरस हैँ ना तो तुम्हारे दादा जी के फ़ोन पर , तुम्हारे घर में जितने फ़ोन हैँ सब पर माँ ने फ़ोन किया… पर किसी ने उठाया नहीं…. फिर तुम्हारे फ़ोन पर भी किया… वो कल तुम्हारा गोल्ड का सामान लेने जा रही हैँ… तो सोच रही थी कि तुम्हे भी ले चले… तुम अपनी पसंद से ले लो…. इसलिये ही कह रही थी कि तुम्हारे घर से तुम्हे लेकर कोई आ जायें वहां….

जी माँ जी जो भी लेंगी वो मुझे भी पसंद होगा… और ज्यादा ना ले गोल्ड … मुझे पहनने का शौक नहीं हैँ ज्यादा…

पर  मुझे तो अपनी शुभ्रा को सजी हुई सुन्दर सी दुल्हन के जोड़े में देखना हैँ….. मेरे लिए तो हमेशा सजी हुई रहना तुम …. जब भी आऊँ घर … उमेश प्यार से बोला….

जी…. आप मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे ना …. शुभ्रा बोली…

हां शुभ्रा एक बहुत ज़रूरी मेरे जीवन की घटना बताना मैं तुम्हे भूल गया हूँ….

ये सुन शुभ्रा को धक्का स लगता हैँ.. जी क्या ??

तभी बबली दौड़ती हुई आती हैँ… हांफते हुए बोलती हैँ…..

शुभ्रा दीदी… सीसीटीवीं फुटेज मिल गयी हैँ.. जल्दी चलिये बाहर.. जीजा जी तो सच में….

मामला अब हाथ से बाहर होता जा रहा हैँ….

आगे के कहानी कल … तब तक के लिए धनतेरस की तैय़ारी करें … ज़ितना बजट हो उतना खर्चा करें … लोगों की देखा देखी होड़ करने की ज़रूरत नहीं… झाड़ू दोनों तरह की लायें …. बरतन में भले ही एक चम्मच  लायें पर लायें ज़रूर… शुभ होता हैँ…

जय माँ लक्ष्मी

मीनाक्षी  सिंह की कलम से

आगरा

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