घर की रानी या नौकरानी – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अशोक जी की पत्नी को गुजरे हुए 3 साल हो चुके थे। उनके दोनों बच्चे बेटा और बेटी का विवाह हो चुका था। अशोक जी स्वयं को एक बहुत ही सुलझा हुआ व्यक्ति और बहुत अच्छा पति मानते थे। 

आज कोई जरूरी फाइल ढूंढते समय उन्हें अचानक इतने सालों बाद अपनी पत्नी के हाथों से लिखी डायरी बरामद हुई। उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि उनकी पत्नी डायरी भी लिखती है। 

वह उस जरूरी फाइल को ढूंढना तो भूल ही गए और पत्नी द्वारा लिखी डायरी को पढ़ने में खो गए। उनकी पत्नी नीमा ने लिखा था-मुझे पता है कि आपको कभी ना कभी यह डायरी जरूर मिलेगी लेकिन सच मानो मैंने कभी भी आपके पढ़ने के लिए यह नहीं छोड़ी। मेरी तो डायरी लिखने की आदत थी इसीलिए मैं रोज लिखती रही और मेरे मरने के बाद तो आपके ही हाथ लगने वाली है यह तो नेचुरल बात है। शुरू से लेकर आपने कभी मेरी परवाह नहीं की तब ऐसी हालत में आपको कैसे पता होता कि मैं डायरी भी लिखती हूं। 

शादी के बाद आप अपने कामों में व्यस्त हो गए और मैं घर के कामों में। आपकी माताजी और बड़ी भाभी ने मुझे कभी भी घर की बहू नहीं समझा। शुरू से लेकर मुझे नौकरानी की तरह महसूस करवाया गया। मेरे माता-पिता गरीब है तो क्या हुआ। इसका मतलब यह है तो नहीं कि उन्होंने लेनदेन में कोई कमी रखी हो या फिर उन्होंने मुझे संस्कार ना दिए हो। उनके संस्कारों की बदौलत ही मैं चुपचाप सब कुछ सहन करती रही और आपसे कभी शिकायत नहीं की। 

मुझ पर हर त्यौहार आने पर नौकरों की तरह काम करवाया जाता था। सासू मां और जेठानी जी महारानियों की तरह बैठकर हुकुम चलाती थीं या फिर घूमने फिरने निकल जाती थी। जेठ जी हर तरह से अपनी पत्नी का साथ देते थे। मैंने कभी अपनी तरफ ध्यान नहीं दिया हर वक्त सिर्फ काम काम और काम। धीरे-धीरे मेरा शरीर बेकार होता गया और खूबसूरती खत्म हो गई। 

आपने कभी मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया सिर्फ हर समय ताने मारते थे कि इस उम्र में ही बुडढी हो गई है या फिर कहते कि मोटी हो गई है। कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया कि सारा दिन काम के चक्कर में अपनी तरफ ध्यान नहीं दे पाती। 

जब जेठ जी जेठानी को पिक्चर दिखाने ले जाते या फिर उसके लिए कभी साड़ी या गजरा लेकर आते तब मेरा भी बहुत दिल करता था कि आप भी मेरे लिए कुछ खरीद कर लाओ। लेकिन फिर सोचती थी कि अगर मैंने कोई भी वस्तु आपसे कह कर प्राप्त की तो उसका क्या फायदा। आप अपने मन से ,अपने दिल से खरीद कर लाओ, तभी तो खुशी की बात है। मांग कर लिया, तो क्या लिया। 

गरीब घर की बेटी समझ कर आपकी माताजी और जेठानी जी मुझे सारे काम करवाती रहती थी। 

मुझे आराम करने का भी हक नहीं था। बच्चों के बारे में भी मुझे कोई फैसला लेने नहीं दिया जाता था। जब भी मैं कुछ बोलने की कोशिश करती या आवाज उठाने की कोशिश करती तो आप मुझे डांट कर या फिर जोर-जोर से चिल्ला कर चुप करवा देते थे। 

मुझे बच्चों को सिर्फ खाना देने का अधिकार था। धीरे-धीरे मेरा अपने जीवन से मन उबने लगा और मुझे बीमारियां घेरने लगी। इंसान अगर मन से खुश हो तो दवाइयां उसे ठीक कर देती हैं लेकिन अगर वह उदास हो और ठीक होना ही ना चाहे तो उसे कोई ठीक नहीं कर सकता। इसलिए मैं हर समय बीमार रहने लगी क्योंकि मैं कभी ठीक होना नहीं चाहती थी। 

मैं यही सोचती थी कि जब नई-नई शादी हुई थी,तब आपका सारा ध्यान काम में था और मुझ पर ध्यान नहीं देते थे तो अब पूरा जीवन बीत जाने पर शिकायत करने का क्या फायदा। 

कभी-कभी तो दिल करता था कि आपके ऊपर खूब चिल्लाऊं, आपको खूब खरी खोटी सुनाऊं, लेकिन मेरे संस्कारों ने मुझे हमेशा रोके रखा। एक डायरी ही थी जो मेरी सहेली थी। 

क्योंकि मेरे पास घर के कामों के कारण इतना टाइम नहीं था कि घर से बाहर में कोई सहेली बना सकूं। मैं अंदर ही अंदर घुटती   जा रही थी। ऐसी हालत में डायरी मेरी ऐसी सहेली थी जो सब कुछ मेरी बात सुनने के बाद किसी से कुछ नहीं बताती थी। 

एक न एक दिन तो मैं यह दुनिया छोड़कर चली जाऊंगी और उसके बाद आप को यह डायरी मिलेगी इसीलिए मैं आपको एक सच बताना चाहती हूं क्योंकि अब आप मेरे ऊपर चिल्ला नहीं सकते। और चिल्लाकर करोगे भी क्या। 

आप कभी भी अच्छे पति नहीं बन सके। मैं जानती हूं कि आप खुद को एक बहुत अच्छा पति मानते हो, इसीलिए मैं आपकी गलतफहमी दूर कर रही हूं। बेशक आप एक अच्छे भाई और एक अच्छे बेटे हो लेकिन एक अच्छे पति बिल्कुल नहीं हो। सिर्फ शादी कर लेना ही काफी नहीं होता। जिस लड़की को आप अपनी जिम्मेदारी पर अपने घर लेकर आए हो उसका हर तरह से ध्यान रखना और उसके सम्मान और उसके आत्म सम्मान का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है। सच कहूं तो फिल्मों में ,आस पड़ोस में और मेरी सहेलियों की शादीशुदा जिंदगी देखकर मुझे जलन होने लगती थी। उन विवाहित जोड़ों को देखकर लगता ही नहीं था कि वे पति-पत्नी है ऐसा लगता था मानो दो दोस्त आपस में खुशी-खुशी बैठे हैं और बातें कर रहे हैं। मुझे तो कभी ऐसा फील ही नहीं हुआ। 

 लोग अपने घर में अपने बेटों की शादी के बाद गृह लक्ष्मी को लेकर आते हैं और पति उन्हें घर की रानी बनाकर रखता है, लेकिन मुझे पूरी जिंदगी ऐसा ही लगता रहा की मैं घर की रानी नहीं बल्कि नौकरानी हूं। अब मैं कुछ ही दिनों में यहां से हमेशा के लिए आजाद हो जाऊंगी। गुड बाय सदा के लिए। नीमा

डायरी के कुछ पन्ने पढ़ने के बाद अशोक जी की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे। अभी तो पूरी डायरी पढ़ना बाकी था। उन्हें लग रहा था कि नीमा की एक एक बात सच है पर अब पछताने से क्या फायदा। थोड़ी देर बाद वह अपनी पत्नी की तस्वीर से क्षमा मांग रहे थे। तस्वीर में नीमा ऐसे मुस्कुरा रही थी मानो कह रही हो, अब आंसू बहाने का क्या फायदा। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

(S Plus S)

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