Moral Stories in Hindi : रंग-बिरगी बल्बों की लड़ियों से पूरा ‘जानकी निवास’ जगमगा रहा था।मनोहर बाबू लाॅन के बीचोंबीच अपनी आरामकुर्सी डालकर बड़े प्यार-से अपने घर की शोभा निहार रहें थें।बरसों बाद दीवाली के दिन उनके घर में इतनी चहल-पहल हो रही थी।बच्चे छोटे थे तब यहाँ की रौनक देखते बनती थी,उनकी पत्नी जानकी सारा दिन बच्चों के पीछे भागा करतीं थीं।फिर बच्चे बड़े हो गये,बेटी विवाह करके अपने ससुराल चली गई और बेटा शिखर पढ़ाई करने कनाडा गया तो वहीं का होकर रह गया।बस फ़ोन पर ही सारे त्योहार मना लेता था।
डेढ़ साल पहले जब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हुआ था, तब शिखर सपरिवार आया था, पिता से साथ चलने को बोला तो उन्होंने मना कर दिया।फिर एक दिन अचानक ही शिखर ने फ़ोन करके कहा,” पापा…मैं इंडिया वापस आ रहा हूँ…आपके साथ रहने…आ जाऊँ..।कहते हुए वह मुस्कुराया तो मनोहर बाबू की आँखें खुशी से छलछला उठी थी।काश!..आज जानकी होती…।
” सुनिये….।” भीतर से सुनिधि ने अपने पति को आवाज़ दी।पटाखों के शोर में शिखर ने नहीं सुना।उसने फिर से पुकारा,” शिखर, सुनिये….ज़रा देखिये…ये बल्ब..।”
” आया…गृहलक्ष्मी-2 ” शिखर के कहते ही पटाखे छोड़ते श्रेया और अंश हा-हा करके ज़ोर-से हँसने लगे।दोनों मनोहर बाबू के पास आकर एक स्वर में पूछे, ” दादू…ये गृहलक्ष्मी 2 क्या है?।”
” कनाडा में भी कभी-कभी पापा मम्मी को गृहलक्ष्मी-2 कहते थें, ऐसा क्यों? गृहलक्ष्मी-1भी कोई है, कौन है?बताइये ना..।” श्रेया अपने दादू से ज़िद करने लगी।
” हाँ दादू…आज तो हम जानकर ही रहेंगे।” अंश ने श्रेया का समर्थन किया।
मनोहर बाबू मुस्कुराये, फिर कुछ सोचकर एकाएक गंभीर होकर अपने अतीत के पृष्ठों को पलटते हुए बोले, ” बीए की फाइनल परीक्षा के बीच में ही तुम्हारी दादी के साथ मेरा ब्याह हो गया।ब्याह के दो दिन बाद मैंने अंतिम पेपर दिया।मैं अपने मित्रों के साथ हो-हल्ला मचाना चाहता था लेकिन बाबूजी ने मुझे अपने साथ दुकान पर बैठा दिया और अम्मा यानि तुम्हारी परदादी ने….।”
” यू मीन..द ग्रेट ग्रैंडमदर..।” अंश बोला।
” हाँ डफ़र…चुपचाप सुन ना…।हाँ दादू…फिर..।” श्रेया ने पूछा।
मनोहर बाबू बोले,” हाँ बेटा…उन्होंने मुझे तुम्हारी दादी को उनके मायके से लाने भेज दिया।अम्मा जानकी को बहुत पसंद करतीं थीं।जानकी भी अपने सास-ससुर की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी।लेकिन मैं जानकी को पसंद नहीं करता था।”
” क्यों दादू…दादी अच्छी नहीं थी?” अंश ने आश्चर्य-से पूछा।
मनोहर बाबू बोले,” वो बहुत अच्छी थी लेकिन मैं अपने दोस्तों के साथ समय नहीं बिता पाया, उसका ज़िम्मेदार जानकी को मानकर उसपर गुस्सा करता रहता था।जानकी मेरे खाने-पीने, पसंद-नापसंद का बहुत ख्याल रखती थी।यहाँ तक कि मैं काम से जब तक नहीं लौटता, वो दरवाज़े पर खड़ी होकर मेरा राह तकती परन्तु मैं उसकी तरफ़ देखता ही नहीं था तो वो उदास रहने लगी।अम्मा की अनुभवी आँखों ने मेरे बदले हुए व्यवहार को समझ लिया था।उन्होंने मुझसे कहा, ” बेटा…बहू घर की लक्ष्मी होवे है..जे दुखी रहे तो घर में बरकत कभी नाहीं होवे।”
एक दिन अम्मा मंदिर में कीर्तन करने गई थी, बाबूजी की अचानक तबीयत खराब हो गई।उस वक्त जानकी ने ही डाॅक्टर को बुलाया, सुई-दवा लाने के लिये दुकान पर दौड़ी।मैं जब काम से लौटा तब अम्मा ने बताया कि आज बहू ने ही तुम्हारे बाबूजी की जान बचाई है।फिर मेरा कान पकड़कर बोली, ” सुन मनु…, जानकी इस घर की गृहलक्ष्मी है। जे का दिल कभी मत दुखइयो।”और उसी दिन से अम्मा जानकी को गृहलक्ष्मी कहकर पुकारने लगी।
बाबूजी के डेथ होने के बाद दुकान की पूरी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी।स्नेहा और शिखर भी बड़े हो रहें थें, इसी बीच मुझे टायफ़ॉइड हो गया।तब जानकी ने घर-बाहर.., सब हँसते-हँसते संभाल लिया था।तब यहाँ पर गौ माता भी रहती थीं।तुम्हारी बुआ को दूध-दही बहुत पसंद था ना “
” सच दादू…।” आश्चर्य-से दोनों की आँखें बड़ी हो गई।
” हाँ..,अम्मा अपने घुटने के दर्द से परेशान रहती थी,तब जानकी मेरे लिये सादा खाना पकाती, समय पर मुझे दवा देती, अम्मा के घुटनों की मालिश करती और गौ माता को भी चारा खिलाना नहीं भूलती थी।बच्चों को स्कूल भेजकर एकाध बार दुकान पर भी चली जाती थी।ऐसा लगता था जैसे उसके दो नहीं, दस हाथ हों।तब मैंने जाना कि अम्मा उसे गृहलक्ष्मी क्यों कहती थी।स्नेहा की शादी के समय जब घर की मरम्मत करवाकर उसे नया कर दिया तब अम्मा ने कहा कि घर का नाम तो हमारी गृहलक्ष्मी के नाम पर होना चाहिए।बस फिर…यह घर जानकी निवास’ के नाम से जाना जाने लगा।”
” लेकिन दादू…आपने ये तो बताया ही नहीं कि मम्मी गृहलक्ष्मी-2 कैसे बन गई।” श्रेया की जिज्ञासा अभी भी बनी हुई थी।
” हाँ-हाँ.., वो किस्सा भी बताता हूँ।” कहते हुए मनोहर बाबू ने एक लंबी साँस ली और बोले,” तुम्हारी स्नेहा बुआ की शादी के बाद तुम्हारी दादी शिखर की शादी कराके घर में बहू लाने के लिये लड़की तलाश कर रही थी।एक दिन शिखर ने कह दिया कि वह सुनिधि से शादी करना चाहता है।सुनिधि इंग्लिश में एमए है, सुनकर तो जानकी भड़क गई…ये क्या घर संभालेगी।देवकी भाभी की बहू भी तो इतनी ही पढ़ी-लिखी थी…पूरा घर तितर-बितर कर दिया ना उसने।ये भी…।उस वक्त उसका गुस्सा देखने लायक था।मैंने और शिखर ने उसे बहुत समझाया कि सभी वैसी नहीं होती।अम्मा ने भी कहा कि बेटे की बात मान ले.., पढ़ी-लिखी सुशील लड़की है।तब जाकर वह मानी।कनाडा जाने से पहले सुनिधि दो महीने हमारे पास रही थी।
न जाने कैसे एक दिन जानकी बाथरूम में फिसल कर गिर गई।दर्द से वह चिल्लाई तो सुनिधि दौड़कर गई।सास को सहारा देकर कमरे में लाई।फिर शिखर को फ़ोन करके डाॅक्टर का नंबर लिया, डाॅक्टर से अपाॅइंटमेंट लिया और मुझे फ़ोन करके बोली कि मम्मी को लेकर सिटी हाॅस्पीटल जा रही हूँ, आप वहीं आ जाइये।अम्मा तो घबरा गई थी लेकिन सुनिधि ने उन्हें शांत किया और अपनी सास को लेकर हाॅस्पीटल चली गई।डाॅक्टर ने उनका चेकअप किया। मैं पहुँचा तो देखा कि जानकी से डाॅक्टर कह रहें थें,” जानकी जी, बस..दो-तीन दिन फुल रेस्ट करना है।उसके बाद आप चल-फिर सकती हैं।आपकी बहू ने बहुत समझदारी दिखाई जो आपको तुरन्त यहाँ ले आई।आप बहुत नसीबवाली हैं जो इतनी अच्छी बहू मिली है, वरना तो…।” और वे मुस्कुराती हुई चली गई।
घर आकर सुनिधि ने जानकी को बिस्तर से हिलने नहीं दिया और डाॅक्टर के निर्देशानुसार सभी दवायें समय पर देती रहती।उसके खाने का भी वह विशेष ध्यान रखती थी।ठीक होने पर जानकी अम्मा से बोली,” अम्मा जी…मैं कितनी गलत थी।आपने सही कहा था कि शिखर के लिये सुनिधि सही लड़की है।इस समय तो उसने मुझे नया जीवन दिया है।मेरा, आपका और घर का कितने अच्छे से ख्याल रखा है इसने।यह तो सचमुच की गृहलक्ष्मी है।”
” गृहलक्ष्मी टू..।” अम्मा तपाक-से बोली।
” टू…, क्या मतलब?
अम्मा बोलीं, ” देख पहले तू बहू थी लेकिन अब तेरी भी बहू आ गई तो सुनिधि गृहलक्ष्मी- टू हो गई ना।इस तरह से बच्चों, तुम्हारी मम्मी गृहलक्ष्मी-2 कहलाने लगी।”
” श्रेया…अंश…,कहाँ हो…पूजा का समय हो रहा है..।” सुनिधि ने आवाज़ लगाई।
” आ रहें हैं गृहलक्ष्मी-2..।” दोनों ने एक साथ कहा तो मनोहर बाबू हँसने लगे।अपने कमरे में जाकर पत्नी की तस्वीर के आगे दीपक जलाते हुए उसे निहारने लगे जैसे कह रहें हों…देखो जानकी…तुम्हारी गृहलक्ष्मी अपने घर आ गई है।
” दादू चलिये…पापा पूजा करने के लिये आपको बुला रहें हैं।” अंश उनका हाथ पकड़कर पूजाघर की तरफ़ ले जाने लगा।
विभा गुप्ता
# गृहलक्ष्मी स्वरचित
किसी ने सही कहा है कि गृहलक्ष्मी बिना घर सूना होता है।एक स्त्री बेटी,पत्नी, माँ, सास, बहू,ननद आदि सभी रूपों में घर की लक्ष्मी होती है।इनके सम्मान से ही घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।मनोहर बाबू का घर पत्नी के निधन के बाद वीरान-सा हो गया था जो सुनिधि और बच्चों के आने से फिर से गुलजार हो गया।