सोच – संध्या त्रिपाठी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : बस का इंतजार करते लगभग एक घंटा बीत गया.. कोई भी बस गंतव्य की ओर जाने को तैयार ही नहीं , शायद समय ही गलत निर्धारित हो गया था घर लौटने का, …रात बढ़ती जा रही थी मन में भय , अकेले होने का एहसास और सबसे बड़ी बात महिला होना, न जाने क्यों कुछ अनहोनी होने का डर, मन में हज़ारों आशंकाएँ…….

आज कुछ विवश सी लग रही थी मन में अनेक विचारों के बीच एक मधुर सी आवाज सुनाई दी “मैडम कहा जायेंगी ” तीन महिला आटो चालक एक नए आटो रिक्शा लेकर रात्रि 9 बजे मेरे ही गन्तव्य की दिशा में जाने को तैयार थी मेरे मन में अचानक फिर वही सैकड़ों सवाल ! क्या आटो रिक्शा में इतनी दूर जाना चाहिए वो भी अकेले सिर्फ महिलाओं के साथ फिर उन महिलाओं पर विश्वास कैसे करूँ ! पर कहते हैं ना मरता क्या न करता , हाँ में सिर हिलाकर उस नये आटो रिक्शा में बैठ गई I

एक मिश्रित अनुभव ” कभी डर कभी गर्व ” धीरे-धीरे हम आगे बढ़ते गये उनकी आपस की बातें बड़े ध्यान से सुन रहीं थी , ताकि बातों से स्पष्ट हो सके कि मैंने इस ऑटो रिक्शा में बैठकर कोई गलती तो नहीं की है… उनकी बातों से ये तो तय हो चुका था कि….

अशिक्षित होने के बावज़ूद वो मुझसे कहीं ज्यादा निडर, स्वावलंबी, खुद्दार किस्म की महिलाये थीं , जो किसी भी परिस्थिति मैं जिंदगी के थप्पड़ों से हारने की बजाए डटकर मुकाबला करने को तैयार थी…..

हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे अब तो ऐसा लग रहा था सफर और लंबा हो जाए ताकि मैं एक ऐसे वर्ग विशेष की महिलाओं का विचार और गहराई से समझ सकूं, जो समाज की विषम परिस्थितियों में भी कितने उत्साह पूर्वक अपने कार्य से आनंदित हो रहीं थीं किसी से कोई शिकायत नहीं, उन्हें अपनी किस्मत और हमारे सिस्टम से भी पूर्ण संतुष्टि थी I संतुष्टि ही नहीं वो तो हमारे तंत्र की शुक्रगुजार भी थी और उनके एहसान को भलीभांति समझ रहीं थीं I

बातों ही बातों में मैंने एक महिला से पूछ लिया… आपकी शादी नहीं हुई.. मुस्कुरा कर बड़े धैपूर्वक जवाब मिला… हुई थी मेमसाहब ..मेरा एक बेटा भी है जो 12वीं में पढ़ रहा है आगे मैं

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उसको कोचिंग भी करवाऊंगी बेटे को डॉक्टर जो बनाना है । किस्मत खराब थी पति शराबी निकला लाख कोशिश की.. सुधर जाए …..पर….. आगे वह कुछ कहती मैं फिर पूछ लिया घर में और कोई नहीं है क्या ?

व्यंगात्मक हंसी के साथ उसने कहा ” सासू मां ने मेरी कदर नहीं जानी ” शादी के बाद घर की नींव मजबूत करने में सासू मां का बहुत बड़ा योगदान होता है । पति के आवारा , गैर जिम्मेदाराना हरकत ने ससुराल में मेरी इज्जत ही खत्म कर दी…. इज्जत तो क्या इन परिस्थितियों का दोष भी मुझ पर मढ़ने लगे , दोनों वक्त गाली गलौज …..कहते कहते उसकी आँखे भर आई ।

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया , अब समझते देर न लगी तीनों महिलाओं का कुछ ना कुछ दुखद आपबीती है जो ये आपस में मिलकर जिंदगी के विभिन्न परिस्थितियों को चुनौती देते हुए आगे बढ़ने में सक्षम रही हैं ।

अब तो स्पष्ट हो चुका था डिग्रियों से ही अपने को शिक्षित मानना बड़ी मूर्खता है वो शिक्षा ही किस काम की जो अपनी स्वंय की भी रक्षा ना कर सके I वो हौसला पूर्वक मेहनत से आगे बढ़ना सीख चुकीं थी ना उन्हें किसी प्रकार की आरक्षण की जरूरत महसूस हो रही थी और ना ही महिला होने की लाभ का लालच….I

उन्हें तो अपने मजबूत कंधों पर पूरा विश्वास है सैल्यूट है ऐसे कर्तव्यनिष्ठ बहनों का जिनसे सही मायने में देश में नई सोच की क्रांति आना सम्भावित है…I

( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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