ज़िंदगी जरूरी है या स्पीड – प्राची अग्रवाल   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अनिल शहर के एक बड़े बिजनेसमैन हैं। भगवान की कृपा से उनके घर में लक्ष्मी साक्षात विराजमान है। जिस किसी चीज में भी हाथ डालते वहीं सोना बन जाती।

कहते हैं ना जैसे-जैसे धन बढ़ता है वैसे वैसे व्यक्ति का दंभ बढ़ता जाता है। रहीसाई बढ़ने के साथ-साथ शौक भी बड़े-बड़े होने लगे।

नई-नई गाड़ियां खरीदते। जो भी मॉडल लांच होता वैसी गाड़ी उनके पोर्चे में होनी चाहिए। चापलूस लोग उनके मुंँह पर उनकी तारीफ करते। और पीठ पीछे उनकी बुराई। समय बढ़ता गया और सेठ जी का घमंड भी। 

घर पर उनकी पत्नी रेनू बहुत सुशील महिला है। दो बच्चे हैं। बेटी नौवीं में आई है और बेटे ने इस बार दसवीं की परीक्षा पास की है।

बच्चों को देखकर अनिल बड़ा खुश होते हैं। बेटे पर तो उन्हें बड़ा ही गर्व है। वह चाहते हैं जल्दी से पढ़ाई पूरी करके उनका काम संभाल ले। दसवीं की परीक्षा पास करते ही बेटे ने बाइक की फरमाइश की तो उन्होंने बहुत महंगी बाइक उसे दिला दी। पत्नी रेनू ने बहुत मना किया कि अभी यह बालिग नहीं है। इसके हाथ में वाहन नहीं देना चाहिए। लेकिन पिता पुत्र ने रेनू को छोटी सोच का कहकर चुप करा दिया। रेनू छोटे कस्बे से थी इसलिए घर के लोग उसे गंवार ही समझते थे।

बच्चों के पास महंगे मोबाइल पर्सनल हो गए। लड़की एक्टिवा चलाती और बेटा तो बाइक को फर्राटेदार चलाता। यार दोस्तों की तादाद बढ़ती जा रही थी। दोस्तों के कहने पर बाइक में और अधिक रफ्तार भरता। रेनू बहुत मना करती पर उसकी सुनता ही कौन था?

अब तो कभी-कभी बेटा रोहित चुपके-चुपके गाड़ी भी निकाल कर ले जाता। उसे स्पीड का बहुत शौक था। रोहित सोचता की जिंदगी का नाम ही स्पीड हैं।

अनिल व्यस्त थे व्यापार में। धन कुबेर बनने की होड़ में।

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बच्चे अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी रहे थे।

एक दिन रात के 11:00 बजे अनिल के फोन पर पुलिस स्टेशन से कॉल आता है। अनिल को तुरंत बुलाया जाता है। वह एकदम घबरा जाते हैं कि पता नहीं क्या बात हो गई?

पुलिस के बताए हुए पते पर पहुंचते हैं। देखते हैं उनके बेटे रोहित की गाड़ी से दूसरी गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है। रोहित पार्टी करके दोस्तों के साथ लौट रहा था। दोनों गाड़ियाँ क्षतिग्रस्त थी। सब को अस्पताल ले जाया जाता है। आज अनिल के हाथ पैर फुले हुए हैं। रोहित को खुद भी बहुत चोट आई है। उसके दोस्तों के भी काफी लग गई। और सामने वाली गाड़ी को भी काफी नुकसान पहुंचा।

रोहित के दोस्तों के परिवार जन भी अस्पताल पहुंच गए। सब के सब अनिल को खरी-खोटी सुनाते हैं। नाबालिग लड़के को आपने गाड़ी चलाने को कैसे दी। कैसे पिता है आप? लोग अनिल को खरी खोटी सुना रहे हैं। अनिल का दिमाग एकदम सुन्न हो जाता है। आज वह बिल्कुल शून्य हैं। उसके बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करें?

जो गर्दन हर वक्त उठी रहती थी आज सबके सामने झुकी हुई है।

उनकी पत्नी रेनू ने कितना समझाया कि,”बच्चों को समय से पहले बड़ा मत बनाओ।

बाइक और गाड़ी तो सब चला ही लेंगे। हर चीज का एक वक्त होता है। सब चीज समय के साथ ही अच्छी लगती हैं।”

वाहन खरीदना एक अलग बात है लेकिन सड़कों पर उनको चलाना बहुत जिम्मेदारी का काम है। कभी-कभी एक व्यक्ति की लापरवाही के कारण दूसरे व्यक्ति की जान पर भी जोखिम बन जाता है। दिखावे के चक्कर में अपनी व दूसरों की जान को जोखिम में ना डालें।

सभी माता-पिता की #ममता अपने बच्चों के लिए हिलोरें ले रही थी। सभी भगवान से यह दुआ कर रहे थे कि उनका बच्चा सही हो।

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जो भी कोई अस्पताल कर्मी गुजरता सभी उससे मरीजों की कुशल क्षेम पूछ रहे थे। सबकी सांसें अटक रही थी कि किसी बच्चे को कुछ हो ना जाए। थोड़ी देर में ऑपरेशन थिएटर से डॉक्टर साहब बाहर निकाल कर आते हैं। डॉक्टर साहब बताते हैं कि हाथ पैरों में काफी चोट है लेकिन जान बच गई है।

सब ने राहत की सांस ली कि बच्चे मुश्किल से बच गए। अब अनिल ने ठान लिया कि वह अब यह गलती दोबारा नहीं करेगा। नाबालिक बच्चों को वाहन देना कोई समझदारी नहीं है। माता-पिता का कर्तव्य है की बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देने चाहिए। माता-पिता के लिए उससे भी ज्यादा जरूरी है बच्चों को दिया जाने वाला वक्त। जो उनके व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकता है।

#ममता

प्राची अग्रवाल 

खुर्जा उत्तर प्रदेश

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