hindi short story with moral : “आज ऑफिस से आने में आपको देर हो गई, मैंने कॉल भी किया था पर आपने उठाया नहीं “ऊषा ने शंकर जी के हाथ से उनका बैग लेते हुये बोली।
“आज मोहन जी ने पार्टी दी थी, मै बताना भूल गया था, पार्टी के शोर में मोबाइल की रिंग सुनाई नहीं दी होगी “थके और कुछ उदास स्वर में शंकर जी ने कहा।
“पार्टी किस बात की, क्या मोहन भाईसाहब का प्रमोशन हो गया, या उनके बेटे अनुज की शादी तय हो गई “ऊषा हैरानी और उत्सुकता से बोली।
“ना शादी, ना प्रमोशन, उनके बेटे अनुज को अमेरिका की एक कंपनी में नौकरी मिल गई, अगले हफ्ते जा रहा है, उसी उपलक्ष्य में उन्होंने पार्टी दी थी, हमारा कहाँ ये सौभाग्य की हम पार्टी दे, मोहन जी के यहाँ तो अब डॉलर की बरसात होगी “व्यंग से बेटे कुश को देखते शंकर जी बोले।
शंकर और ऊषा जी को एक बेटा और एक बेटी है, बेटा बड़ा है इंजीनियरिंग करके एक प्राइवेट कंपनी में जॉब कर रहा था, बेटी रिया इंजीनियरिंग के तीसरे साल में थी। शंकर जी, पिता की आकस्मिक मृत्यु से ज्यादा पढ़ नहीं पाये, इंटर के बाद उन्हें पिता के ऑफिस में अनुकम्पा के आधार पर नौकरी मिल गई थी,इंजीनियरिंग करने का उनका सपना अधूरा रह गया।घर में माँ के अलावा तीन भाई -बहनों की जिम्मेदारी उन पर आ गई।पहले भाई -बहन फिर अपने बच्चे…सबको सेटल करते -करते उनके बालों में सफेदी और चेहरे पर उम्र की लकीरें आ गई।जिम्मेदारियों की वज़ह से शंकर जी ने खुल कर कभी जीये ही नहीं । पत्नी ऊषा भी उन्ही की तरह सामान्य परिवार से थी उनकी भी कोई विशेष ख्वाब ना थे , जो मिल गया उसी में संतुष्ट थी।
शंकर जी का दोस्त इंजीनियरिंग करके विदेश चला गया। यहाँ माता -पिता को खूब पैसा भेजता था, उनके बगल वाला घर उसी का था, पहले दोनों घर एक जैसे दिखते थे पर जब से दोस्त हरी विदेश गया, बगल वाला घर तिनमंजिला हो गया, उस तिनमंजिले घर के बगल में उनका घर छोटा सा दिखता था।तबसे शंकर जी को बड़ा अरमान था बच्चों को इंजीनियरिंग जरूर कराएँगे जिससे वे भी विदेश जा डॉलर कमाएंगे, जिससे समाज में उनका मान तो बढ़ेगा और आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।शंकर जी का दोस्त ढेरों डॉलर कमा लौट आये पर उनके बच्चों ने यहाँ आने से इंकार कर दिया। वहाँ की सुख -सुविधा और डॉलर ने पहले दोस्त की आँखों पर पट्टी बाँधी थी अब उनके बच्चों ने अपने आँखों पर बांध लिया। माता -पिता की ममता भी उन्हें उनके फैसले से डिगा नहीं पाई.।जैसे संस्कार एक से दूसरे को विरासत में मिलता वैसे ही स्वार्थ भी विरासत में मिलता है।
जब बेटा इंजीनियरिंगी के एंट्रेंस में अच्छी रैंक ला, शहर के नामी कॉलेज में एडमिशन ले लिया तो शंकर जी फूले नहीं समाये, विदेश और डॉलर का उनका सपना उन्हें सच होते दिखा। अक्सर अपने घर को तिनमंजिला बना हुआ देखते।
बेटे ने विदेशी कंपनी में चयन होने के बावजूद,बाहर जाने से इंकार कर दिया और शहर के अच्छी कंपनी में नौकरी हासिल कर, उनके पास रह कर नौकरी करने लगा।ये बात शंकर जी को पसंद नहीं आई। पिता -पुत्र की लड़ाई में संवाद बंद हो गया। शंकर जी जब किसी के बच्चे को विदेश जाते देखते, कुश को व्यंग बाणो से त्रस्त कर देते। वो भी जाने किस मिट्टी का बना हुआ, कभी कोई जवाब नहीं देता।
यूँ शंकर जी का घर, अपने बगीचे की वज़ह से आसपास के लोगों में प्रसिद्ध है, ऊषा जी सिर्फ सीजनल फूल ही नहीं, फल और सब्जियां भी अपने बगीचे में उगाती है। पिता ने छोटा घर बनवाया था, आगे -पीछे जमीन छोड़ रखी थी कि बाद में विस्तार देंगे। ऊषा जी ने तो जरूरत के हिसाब से फल -सब्जी उगानी शुरु की जो अब उनका शौक बन गया, उनको अपनी इस छोटी बगिया से बहुत ममता थी।
सुबह की चाय परिवार के लोग बगीचे में ही पीते है।, दिवाली आने में कुछ ही दिन थे। एक सुबह बगल वाले घर से जोरो की रोने की आवाज आई। शंकर जी भाग कर हरी जो विदेश जा हैरी बन गये थे,के घर पहुंचे, हरी को हार्ट अटैक आया था, उसकी पत्नी रो -रो कर बेटे को फोन मिला रही थी। स्थिति की नजाकत समझ कुश ने तुरंत एम्बुलेंस बुला, पिता के दोस्त हरी जी को अस्पताल एडमिट कराया, कुछ दिन तो ठीक रहे पर शायद कुछ चोट दिल को लगी थी जिसके दर्द और टीस को डॉ. भी भर नहीं पा रहे थे,वे बच ना सके।
बगल वाले तिनमंजिला मकान में ख़ामोशी छा गई। हरी जी की पत्नी अकेले रह गई, बेटा पिता के एडमिट होने पर बोलता रहा -“मम्मी आप कहो तो मै आ जाऊँ , पर मुझे ऑफिस में बहुत दिक्कत है, हाँ कुछ डॉलर भेज दे रहा हूँ, आपके काम आयेंगे “बेटे की बात सुन हरी जी की पत्नी खामोश हो गई थी कर्म फल सामने था।कुछ समय बाद एक दिन पुलिस की गाड़ी आई तब पता चला हरी जी की पत्नी ने अकेलेपन से घबरा आत्महत्या कर ली -।खाने की टेबल पर बेटे का भेजा डॉलर वाला चेक पड़ा था।जो उसने अपनी अनुपस्थित के एवज में भेजा था।शायद डालर भेज वो अपने माता -पिता की ममता का कर्ज चुका दे रहा, सोच संतुष्ट हो जाता।
सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि मुहल्ले वाले, नाते -रिश्तेदार कुछ समझ नहीं पा रहे थे। शंकर जी को बहुत धक्का लगा, ऐसी भी कोई उम्र नहीं थी दोस्त के जाने की, ऊपर से कोई भी बच्चा विदेश से नहीं आया।
पिता को व्यथित देख एक दिन कुश शंकर जी के पास आया -“पापा मै जानता हूँ आप मुझसे नाराज रहते है क्योंकि मै आपका विदेश जाने का सपना पूरा नहीं कर पाया, पर पापा यकींन करिये मै आप से और माँ से बहुत प्यार करता हूँ इसलिये आप को छोड़ कर अलग नहीं रहना चाहता हूँ।आप दोनों की ममता की बेड़ियाँ बहुत मजबूत है, जो मुझे कहीं भटकने नहीं देता।हरी चाचा ने अपने माँ -बाप को छोड़ कर अपना सपना पूरा किया और डॉलर यहाँ भेज अपने कर्तव्य की इति श्री कर ली। वही उनके बच्चों ने देखा और किया। मैंने आपको अपने भाई -बहनों, दादी और हम सब के लिये करते देखा, मै भी आपके साथ रह कर अपने परिवार और रिश्तों को जीना चाहता हूँ। ना मै आपको अकेलापन देना चाहता हूँ, ना खुद को कृत्रिम दुनिया में जीने देना चाहता हूँ। हमारा घर छोटा जरूर है पर प्यार और ममता से भरा है।”
“तू सही कह रहा कुश, मै गलत था। मै सिक्के के एक ही पहलू को देख रहा था, शान- शौकत, पर उसके पीछे के सन्नाटे और अकेलेपन के दर्द को नहीं देख पाया जो सिक्के का दूसरा पहलू है “शंकर जी कुश को गले लगाते बोले।
दोस्तों, होड़ में हर माँ -बाप अपने बच्चों को विदेश भेजना चाहते है, वहाँ की चमक से प्रभावित वो दूसरा पहलू नहीं देख पाते कि समय तो अपनी रफ़्तार चल रहा और वे बच्चों का साथ खो रहे है।नाते -रिश्ते की परिभाषा खत्म हो रही है। परिवार के नाम पर एकल परिवार ही रह जा रहा, हर पीढ़ी में बुजुर्ग अकेलापन झेल रहे। पैसा तो आने -जाने वाली चीज है पर समय कभी लौट कर नहीं आता। निर्णय आप पर है, आप अपने बच्चों को अपने देश, घर -परिवार का महत्व बताये या विदेशी चमक -दमक से परिचय कराये।उनको सपने आप ही दिखाते है, संस्कार आप ही देते हो,फिर अकेलेपन के दर्द से क्यों कराहते है…।
—संगीता त्रिपाठी
#ममता