ममता – के कामेश्वरी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुशीला जब छोटी थी तभी उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी । इस छोटी सी उम्र में ही उसने अपने से छोटे भाई बहन को सँभालने की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली । 

पिताजी ने एक साल के अंदर ही दूसरी शादी कर ली थी । अब नई माँ ने घर को सँभाल लिया था ,लेकिन सुशीला को घर की बड़ी बेटी होने के कारण अपने मन को मारकर इच्छाओं को दबाकर जीना पड़ता था। सुशीला ने बचपन में मामी को कांजीवरम की साड़ी पहने हुए देखा था वह भी नीले रंग पर लाल बार्डर वाली जो उसे बहुत पसंद आ गई थी । मामी ने बताया था कि बिट्टो यह छह हज़ार रुपये की साड़ी है । उसने सोचा बहुत महँगी है परंतु मैं भी कभी पहनूँगी । उसने मन में तब से ही कांचीपुरम की साड़ी पहनने का शौक़ पाल लिया था ।

 पिताजी की आमदनी में इतने सारे बच्चों का खाना पीना ही मुश्किल से हो पाता था साड़ी तो उसके लिए आसमान में तारे पाने के समान था । उसने सोचा पिताजी से कहकर शादी के समय इस ख्वाहिश को पूरा करा लूँगी । 

जब वह अठारह साल की हुई तो सरकारी ऑफिस में नौकरी करने वाले अजय के साथ उसकी शादी करा दी गई थी । जब साड़ी के लिए पूछा तो पिताजी ने कहा कि बेटा मैं इतनी महँगी साड़ी ख़रीद कर नहीं दे सकता हूँ मेरे लिए शादी कराना ही बहुत बड़ी बात है । अपने पति से ख़रीदवा लेना। 

 अजय अपने माता-पिता का इकलौता बेटा तो था परंतु उसकी चार बहनें थी। सासु माँ ने सुशीला की साड़ियों को अपनी बेटियों को पहनने के लिए दे दिया यह कहकर कि बिन ब्याही लड़कियाँ हैं तो अच्छी साड़ियाँ पहनेंगी तो सुंदर दिखेंगी । खैर! उन सबकी शादियाँ कराते कराते उसके खुद के तीन बच्चे हो गए थे ।

बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार थे तो सुशीला और अजय ने उन्हें अच्छे से पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया था कि वे अपने पैरों पर खड़े हो सके । इस बीच अजय की मृत्यु हो गई थी तो उसकी नौकरी बेटे को मिल गई । अब सुशीला कुछ ख़रीदूँगी सोचती भी है या बच्चे ख़रीद कर ला भी देते हैं तो दादी अपनी बेटियों को दिलवा देती थी । इस तरह सुशीला ने अपनी सास की सेवा करते हुए अपनी दोनों बेटियों और बेटे की शादी करा दी । ईश्वर की कृपा से बहू और सुशीला में अच्छा तालमेल बैठ गया और दोनों अच्छे से मिल-जुलकर रहने लगीं । 

सुशीला की बहू प्रतिमा भी आज के ज़माने की लड़की थी नौकरी करती थी। सास बहू दोनों आपस में बातचीत करते हुए काम कर लेते थे । ऐसे ही बातों बातों में सुशीला ने बहू को अपनी इच्छा के बारे में बताया था। बात आई गई हो गई थी ।

सुशीला के साठ साल पूरे होने वाले थे तो प्रतिमा ने सास के साठ साल के जन्मदिन को अच्छे से मनाने की सोची। यही बात उसने अपने पति को भी बताया था दोनों ने सुशीला को बिना बताए उसके जन्मदिन की तैयारियाँ शुरू कर दिया था । 

उस दिन सुशीला का जन्मदिन था। उसका जन्मदिन किसी को याद भी नहीं रहता था । उसने कभी किसी को बताया भी नहीं था कि मेरा जन्मदिन है। इसलिए वह खुद उठकर नहा धोकर मंदिर जाकर आ जाती थी । आज भी उसने सोचा जल्दी से नहा धोकर मंदिर हो आती हूँ । 

सुशीला नहाकर बाथरूम से बाहर आई और अलमारी खोलकर पहनने के लिए एक अच्छी सी साड़ी निकालने गई । वहाँ कपड़ों के बीच उसे एक नया पेकेट दिखाई दिया क्या है सोच कर उसे लाकर पलंग पर बैठती है कि वहाँ कुछ चुभा तो देखा एक डिब्बा रखा हुआ था । सुशीला ने डिब्बे को हाथ में लेकर खोल कर देखा तो उसकी आँखें चौंधिया गईं थीं । उसमें चार सोने की चूड़ियाँ चमक रही थी । उसने दूसरे डिब्बे को खोल कर देखा तो उसमें उसकी ही पसंद की कांजीवरम की नीला रंग लाल बार्डर की साड़ी थी। उन्हें देख कर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा था । 

सपने में भी नहीं सोचा था कि वह कांजीवरम की साड़ी पहनेगी । बहुत ही प्यार से साड़ी को सहलाते हुए कुछ देर खड़ी हुई।  सुशीला फिर तैयार हो कर कमरे से बाहर आई आते ही वह अपनी बहू को गले लगा लेती है क्योंकि उसे मालूम था कि प्रतिमा ही उसके दिल को पढ़ सकती है। तुमने मेरी कही हुई बात को याद रखा था ना कि मुझे यह रंग बहुत पसंद है । प्रतिमा ने कहा – माँ आपने आज तक सबके लिए सब कुछ किया है । आज आपकी बारी है। 

माँ को खुश देख अजय को याद आया उस दिन बारिश हो रही थी और प्रतिमा को लेने उसके ऑफिस गया हुआ था । प्रतिमा ने उसे साड़ी दिखाकर पूछा कैसी है ? उसने कहा बहुत अच्छी है लेकिन यह बड़ों के पहनने के जैसा रंग है । 

प्रतिमा— माँ के लिए खरीदा है । 

अजय- माँ ने कभी इतनी महँगी साड़ी नहीं पहना है उन्हें सादगी पसंद है । 

प्रतिमा- उन्हें सादगी पसंद है क्योंकि वे अपने लिए नहीं दूसरों के लिए सोचतीं थीं । उन्हें बचपन से कांजीवरम की साड़ी पहनने की इच्छा थी जो कभी पूरी नहीं हुई तो मैंने सोचा हम दोनों कमा रहे हैं माँ की एक छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते हैं क्या?

अब तो मौक़ा भी है कहते हुए वह हँसी । 

अजय ने सोचा हम बच्चों ने उनकी इच्छाओं पर ध्यान नहीं दिया है पर बहू जिसे हम दूसरे घर से आई है सोचते हैं उसने माँ के दिल को समझ लिया है । अजय दूसरे दिन माँ के लिए चार सोने की चूड़ियाँ लेकर आता है और प्रतिमा से कहता है कि माँ ने हमेशा रोल्ड गोल्ड की चूड़ियाँ पहनीं हैं इन्हें भी माँ को तोहफ़े में देंगे । इस तरह दोनों ने प्लान बनाकर माँ के जन्मदिन को यादगार बनाया । 

सुशीला और प्रतिमा के प्यार और ममता को देखते हुए सबकी आँखें भर आईं । दोस्तों अपनापन प्यार ममता माँ ही नहीं सास से भी मिल सकती हैं बस नज़रिया बदल कर देखिए। 

के कामेश्वरी 

 साप्ताहिक विषय- ममता

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