जलील: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “अब मैं नहीं रख सकता आप लोगों को। तंग आ गया हूं आप लोगों के खर्चों से। पैसे फलते हैं क्या यहां? नहीं है मेरे पास पैसे। आप लोग अपना कुछ सोचिए।”रवि ने झल्लाते हुए अपने बूढ़े मां-बाप से कहा।

“हां जी, ठीक कह रहे हो।एक तो इन्हें दिन भर कभी पानी, कभी चाय और कभी काढ़ा।अब मुझसे भी नहीं होगा इनकी खिदमत! मैं भी नहीं झेल पा रही। बजट गड़बड़ कर दिया इन लोगों ने। मेरे फेशियल का पैसा निगल जा रहे दोनों।”पति के सह पर बोल गई।

“अब हम कहां जाएंगे? मां बाप अपने बच्चों के पास नहीं रहेंगे तो कहां रहेंगे?”रवि के पापा कांपते हुए बोले।

“हां, रखा है न अब तक! एक घर था वह भी अपनी लाडली बेटी के कारण बेच दिए।” चिड़चिड़ाते हुए रवि ने कहा।

    ” ‌हां, बेच दिया मैंने। जब तुम लोग शादी में कुछ भी मदद करने को तैयार नहीं थे तो मैं क्या करता! मजबूरी थी घर बेचना पड़ा। तुम लोगों की परवरिश में मैंने क्या कमी की है। कम तनख्वाह की नौकरी थी। तुम दोनों को पढ़ाया और तुम लोग अच्छी नौकरी भी पा गए।

   तुम्हें तो पता ही है कि तुम्हारी बहन की शादी में लड़के वाले पहले बोले कि हमें कुछ नहीं चाहिए और शादी के दिन जब नजदीक आ गए तो पैसों की मांग करने लगे, पैसों के लिए मुझे जलील करने लगे। चुकी शादी की बात चारों तरफ फैल चुकी थी इसलिए अपनी इज्जत बचाने के लिए मैं घर को गिरवी रख दिया। मैंने यही सोच रखा था  कि मेरे दोनों बेटे घर का गिरवी का रकम देकर उसे छुड़ा लेंगे। जब तुम लोग नहीं कर पाए तब मजबूरन मुझे घर को गंवा देना पड़ा।”कह राजेंद्र बाबू रूंआसे हो गए।

तब भी बेटे का मन नहीं पसीजा और कहा,”आप अपने लाडले बेटे रंजन कके पास क्यों नहीं चले जाते? मैं फोन लगा कर दे रहा हूं कर लें बात।”फोन लगा उन्हें पकड़ा दिया। धड़कते दिल से उन्होंने फोन पर कहा,”बेटा रंजन, हम तेरे पास आना चाह रहे हैं। छुट्टी लेकर हमें यहां से ले जा।”

आप लोग हमारे पास? नहीं…. नहीं। मेरे घर में जगह ही कहां है। मैं तो स्वयं किराए के मकान में रहता हूं।”इतना कह उसने फोन काट दिया।

इधर बड़ा बेटा रवि भी उल्टी -सीधी बातें करने लगा जो उनके हृदय को भेंद रहे थे। अंत में वे इस निर्णय पर पहुंचे कि उन्हें वृद्धाश्रम की शरण लेनी चाहिए।

उसी रात जब सभी सो रहे थे ,भिंसारे (सूर्योदय के पहले) पुछते-पाछते आखिर वृद्धाश्रम तक पहुंच ही गए। वृद्धाश्रम के फाटक के बाहर बने चबूतरे पर बैठ गए। तभी आश्रम से आई हुई एक लड़की उन्हें चबूतरे पर देख, पास आ बैठ गई। बड़े प्यार से उसने पूछा,”आप लोग यहां क्यों बैठे हैं? किसी से मिलना है या……”

अभी इतना ही बोल पाई थी तब-तक बुजुर्ग पुरुष अपनी कपकपाती आवाज में बोले,”नहीं बिटिया,मुझे किसी से नहीं मिलना। बेटे -बहु ने मुझे यहां आने के लिए विवश किया। हम दोनों के खर्चे का वहन नहीं कर पा रहे। हमेशा हमें ताना देते रहते हैं और जलील करते रहते हैं।”संक्षेप में सारी वृतांत कह डाली।”

इस उम्र में हम क्या कर सकते हैं बिटिया!”कहते हुए उनकी आंखें छलक गईं और महिला बुजुर्ग सिसकने लगी। क्या हमें इस आश्रम में जगह मिल जाएगी बिटिया!”हां हां क्यों नहीं!”उस लड़की ने उनके हाथ अपने हाथ में ले लिया और बड़े प्यार से उन्हें आश्रम के अंदर ले गई और सबसे परिचय कराया और मिलवाया। सब कुछ व्यवस्थित कर वह लड़की चली गई। वह सुबह शाम यूं ही इन बुजुर्गों के साथ कुछ पल बिताया करती है।

लगभग चार-पांच दिनों के बाद अपने सामने मंजीत को देख वे दंपति सकुचा गए ।”अरे ,अंकल -आंटी आप यहां? रवि और रंजन आपके बेटे कहां है?आप यहां रहने …….. मैं ‌कुछ समझ नहीं पा रहा।”

“बताता हूं बेटा।”उन्होंने सारी बातें कह डाली। सुन मंजीत गुस्से से तमतमा गया। “खर्चे के कारण मां -बाप को छोड़ दिए।लानत है ऐसे औलाद पर। आज मैं मां -पापा के नहीं रहने से कितना अकेला हो गया हूं और वे लोग आपके साथ ऐसा व्यवहार!”मंजीत ने कहा।

“क्या मेरा दोस्त और भाभी जी नहीं रहीं!”

राजेन्द्र बाबू ने कहा।

“हां अंकल,उस समय मैं मुंबई में था। पापा के रिटायरमेंट के बाद वे हमारे साथ रह रहे थे।हम बहुत खुश थे लेकिन भगवान को हमारी खुशी रास नहीं आई और वे कोरोना से  काल के गाल में समा गए।”कुछ देर तक खामोशी बनी रही। खामोशी को तोड़ते हुए मंजीत ने कहा,”अभी मेरा ट्रांसफर यहीं हो गया है।अब यहीं रह रहा हूं। मैं अक्सर यहां आता हूं और इनका प्यार पाता हूं। मैं बहुत खुश हूं आपसे मिलकर।अब आपलोग यहां नहीं ,मेरे साथ रहेंगे अपने इस बेटे के साथ।”कह मंजीत उनके गले लग गया।

“मेरी पत्नी और बेटा ,दादा -दादी का सानिध्य पाकर बहुत खुश होगा।”वह फोन से बात कर ,वे कुछ कहते ,इसके पहले ही

झट उनके झोले और बैग अपने कंधे पर लटका, उन्हें सहारा दे अपनी गाड़ी से उन्हें घर ले आया।

जब वे लोग घर पहुंचे तो मंजीत का 2 साल का बेटा और पत्नी आरती की थाल और मिठाई लिए खड़ी थी। बेटा, दादा-दादी कहते हुए उनके गोद चढ़ गया।

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

स्वरचित, अप्रकाशित।

 

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