Moral Stories in Hindi : अरे मम्मी , फ्लाइट में टिकट क्यों नहीं कराया.. ट्रेन में कितना समय लगेगा जानती भी हो..? कंजूस कहीं की..! ट्रेन का टिकट कंफर्म होते ही सुमेधा ने बेटी स्वर्णा को जानकारी दी थी , बेटी का जवाब सुनते ही सुमेधा बोली …..
अरे हमारे पास तेरे पापा के रिटायरमेंट के बाद समय ही समय है खर्च करने को …और फिर ट्रेन में ना मुझे ज्यादा अच्छा लगता है आसपास के लोगों से बातें करते-करते कुछ अपना बताना कुछ उनका सुनना , कब समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता …और फिर खाने के वक्त सबकी पोटली खुलना …अचार पराठे की खुशबू ….वाह ….ये सारी चीजें फ्लाइट में कहां ..? जानती है स्वर्णा मैं तो धीरे से नजर चुरा के बगल में भी झांक लेती हूं कि वो खाने में क्या लाए हैं …सुमेधा ने मजाक करते हुए कहा.. अरे मम्मी ये बुरी बात है स्वर्णा ने भी तुरंत जवाब दिया…! अच्छा चलो अब आने की तैयारी करो , हंसते हुए मां बेटी ने अपनी बातें खत्म की…।
जाने का समय भी आ गया , ट्रेन में साइड वाले बर्थ में सुमेधा बैठी थी । सामने के बर्थ में एक बुजुर्ग दंपति बैठे थे , जिनके पास काफी सामान था… और वो एक अटैची खोल कर रखे सारे सामान को देख रहे थे और देखने के बाद वैसे ही व्यवस्थित कर फिर से अटैची में रख रहे थे …! सुमेधा को बड़ा ताज्जुब हुआ , अपने ही रखे सामान को इतनी उत्सुकता से क्यों देख रहे हैं….लेकिन किसी अपरिचित से ये सब पूछना… अरे …नहीं नहीं मुझे क्या लेना देना ….सोच कर सुमेधा खिड़की की तरफ निहारने लगी
वो दंपति स्वभाव से थोड़े मिलनसार लगे महिला सुमेधा को देखकर मुस्कुराई… सुमेधा ने भी बदले में अपनी मुस्कुराहट बिखेरी… शायद वो समझ गई थी सुमेधा की उत्सुकता …..अटैची से सामान निकाल कर देखने वाली बात पर…! उन्होंने खुद ही कहा , दरअसल हम लोग अभी दिल्ली जा रहे हैं और दिल्ली से हमारी फ्लाइट है ..हमें यू.के. जाना है… ये सामान अभी रास्ते में हमारी समधन जी ने (बहू की मां ) दिया है वहां ले जाने के लिए …! अब क्या बताऊं इतना सामान ले जाने में दिक्कत तो होगी पर उन्हें कैसे मना करती , उनकी बेटी इतना दूर जो रहती है उन्हें भी कुछ भिजवाना था… फिर यदि मैं मना करती तो शायद बहू को अच्छा नहीं लगता , सब की खुशी का ध्यान रखना पड़ता है…। सुमेधा ने भी हां सही है कह कर स्वीकृति में सिर हिला दिया ।
फिर तो हम दोनों में काफी बातचीत होने लगी …आगे बात को बढ़ाते हुए उन्होंने कहा… एक तो मेरा सामान ही इतना ज्यादा हो जाता है , बेटे की पसंद की.. मठरी , सेव फिर बहू के पसंद की गुजिया …। अब सोचिए बेटे के पसंद की चीज ले जाऊंगी तो बहू को खराब नहीं लगेगा कि …सासू मां ने सिर्फ अपने बेटे के पसंद को ध्यान में रखा …इसीलिए मैं दोनों के पसंद को बराबर ध्यान रखती हूं ….सच में आप बहुत समझदार हैं सुमेधा के मुंह से अनायास ही उनके लिए प्रशंसा भरे ये वाक्य निकल गए…।
अरे… ये बात भी मेरे दिमाग में बहू द्वारा ही एहसास कराया गया था …एक बार उसने मजाक में बेटे से कहा …तुम्हारी मम्मी तुम्हारे पसंद का बहुत ख्याल रखती हैं ……
क्या है ना ” रिश्तो में के बीच कई बार छोटी-छोटी बात बड़ा रूप ले लेती है “
और मैं नहीं चाहती कि ये छोटी सी बात आगे चलकर कोई बड़ा रूप ले ले… इसलिए उसी समय से मेरे अंदर एक नई सोच… एक नया बदलाव… आया और वाकई में कभी-कभी बच्चों से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है… आखिर बहू ने सही ही तो कहा था ।
खैर… बातों का सिलसिला यूं ही चलता रहा …सुमेधा सोच रही थी मैं भी तो बिटिया के घर जा रही हूं… हालांकि मैं अपने ही देश में सिर्फ एक शहर से दूसरे शहर में जा रही हूं…. मैंने भी तो ध्यान रखा था कि…. बेटी को ठेकुआ बहुत पसंद है और मैंने बनाया भी है और ले भी जा रही हूं…।
पर शायद मुझे इतने अच्छे से पता नहीं है कि दामाद को भी ठेकुआ उतना ही पसंद है जितना बेटी को …मैंने बेटी से जाने से पहले पूछा भी था क्या-क्या बना कर ले आऊं बेटा ….पर बेटी का तो एक ही जवाब होता बस तू आ जा माँ ….. शायद बिटिया मां को तकलीफ देना नहीं चाहती….. फिर भी मैंने अपनी मर्जी से थोड़ा बहुत कुछ-कुछ बना ही लिया है ….सुमेधा के होठों पर एक बार फिर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई थी…
ये सोचकर कि बिटिया ने बताया तो था… पिछली दफे जब ठेकुआ खत्म हो रहे थे तो उसके टूटे हुए चूरे ( टुकड़े ) को खाते हुए दामाद जी ने बेटी से पूछा था ….अब फिर से मम्मी जी कब आएंगी..।
सुमेधा ने थैली में रखे ठेकुआ के डिब्बे को एक बार फिर से सीधा किया… ताकि वो टूट न जाए और इत्मीनान की सांस ली …सुकून भरे सफर में..।
( स्वरचित मौलिक अप्रकाशित और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
# वाक्य : रिश्तो के बीच कई बार छोटी-छोटी बात बड़ा रूप ले लेती है
श्रीमती संध्या त्रिपाठी
# बेटियाँ वाक्य कहानी प्रतियोगिता
#रिश्तों के बीच कई बार छोटी छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती है।