बदलाव – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : करवाचौथ बिलकुल नजदीक आ गया था,आयशा कितने दिनों से शॉपिंग कर रही थी उस शुभ दिन के लिए। साड़ी,मैचिंग ब्लाउज,चूड़ियां,नेकलेस,उसी तरह के सैंडल,पैरो के लिए बिछुए,पायजेब,हाथ में डायमंड रिंग, जिद करके ली थी इस बार उसने रीतेश से, हर बार  सोने की रिंग दे देता था,कुछ नया तो हो इस बार।

रीतेश ने दबी जुबान कहना चाहा था  आयशा से,यार! इतना कुछ नहीं जो पाएगा इस बार,मां  का फोन आया था वो पिताजी के इलाज के लिए कुछ पैसा मांग रही थीं।वहां भी तो भेजना जरूरी है पर आयशा के माथे पर बल पड़ गए थे।

साल में एक ही तो व्रत करती हूं मै और वो भी आपकी लंबी आयु के लिए,मुझे कोई शौक नहीं जो भूखी प्यासी रहकर घंटों ये कठिन व्रत करूं,ऐसा भी कोई आदमी होगा जो ऐसे काम के लिए पैसे देखेगा।

रीतेश अपना सा मुंह लिए रह गया,अच्छा बाबा!गुस्सा क्यों होती हो,बताओ,और क्या क्या करना है?ले लूंगा उधार कहीं से, चुकाता रहूंगा धीरे धीरे फिर,उसने मन में सोचा।

लेकिन फिर दीवाली आ जायेगी,भाई दूज,गंगा स्नान,क्रिसमस…हे भगवान!कितने त्योहार होते हैं हमारे देश में!त्योहार तो खुशियों के लि ए आते हैं या तनावग्रस्त करने के लिए।मेरा तो बी पी बढ़ने लगता है,क्या करूं?वो गहन सोच में था।

लाओ अपना कार्ड दो रीतेश!क्या सोच रहे हो?मुझे पेमेंट करना है,आयशा की आवाज़ से वो चौंका।

करवाचौथ था आज,आयशा,सुबह से ब्यूटी पार्लर में सज रही थी,आई लैशेस, अपर लोवर लिप,गोल्डन फेशियल, फुल बॉडी वैक्सिंग, नेल ब्यूटी,हेयर स्टाइल सब कुछ कराते थक गई थी,बस अब पूजा करके,रात को चांद का इंतजार ही करना बाकी रह गया था।

आज उसने सोच लिया था,रीतेश से गिफ्ट में कहीं बाहर का वन वीक ट्रिप ही लूंगी इस बार,लेकिन उसे छुट्टी मिलेंगी?उफ्फ..ले लेगा नहीं मिलेंगी तो…आखिर उसके लिए निर्जल उपवास भी तो मै ही कर रही हूं।

इठलाती सी कमरे से बाहर आई,पूछती हूं रीतेश से, कैसी लग रही हूं मैं?मुझे देखते ही सब भूल जायेगा,आखिर अप्सरा से खूबसूरत हूं मैं,गर्व से भरी वो कमरे में घुसने को हुई कि रीतेश की बातें सुनकर ठिठक गई।

फोन पर बात कर रहा था वो किसी से…

नहीं यार!अब सहन नहीं होता,कितना उधार लूं और मै?

“…”

बता दूं उसे,क्या उसे खुद समझ नहीं है?छोटी छोटी बात पर लड़ने लगती है,रूठ जाती है,मायके जाने की धमकी देती है…मेरे बस का कुछ नहीं अब…

“….”

नहीं,मुझे मत रोको यार!अगर ये ही सब चलता रहा तो इस बार अपनी इहलीला को समाप्त कर ही लूंगा मै,हर वक्त ये ताना तो नहीं सुनना पड़ेगा कि तुम्हारी लंबी उम्र के लिए ही तो व्रत रखती हूं…मैं थक गया हूं यार!

आयशा के पैरों तले जमीन सरक गई…तो उसकी कही ये बात,इतनी खतरनाक हो सकती है,जानती थी,रीतेश थोड़ा भावुक है तभी उसके पीछे पड़ी रहती थी।उसे अपनी गलती समझ आई,बेचारा रोज रोज के खर्चों से तंग आकर सुसाइड करने को तैयार हो गया,आत्म ग्लानि से आयशा का दिल भर आया।

रीतेश के पास आकर उसने कान पकड़े और माफी मांगी,प्लीज!मुझे माफ कर दो रीत! मै भूल गई थी,इन बाहरी चीजों का प्यार से कोई मतलब नहीं है,असली प्यार तो आपसी समझ और विश्वास से होता है जो तुमने मुझे भरपूर दिया है,आगे से ऐसा कभी नहीं करूंगी।

रीतेश ने प्यार से आयशा को बाहों में भर लिया, चलो!चांद देखते हैं,फिर तुम्हें व्रत भी तो खोलना है,सारे दिन से भूखी,प्यासी हो।क्या गिफ्ट लोगी इस बार मुझसे?

तुम खुद हमेशा मुझे यूं ही चाहते रहो,इससे बड़ा दूसरा गिफ्ट कोई हो सकता है क्या?आयशा बोली।

#रिश्तों के बीच कई बार छोटी छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती हैं।

संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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