पापा जी – कविता झा’काव्य ‘अविका” : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : रसोई घर में रोटी बेलती सारिका की आंँखों से आंँसू लगातार बह रहे थे। संयुक्त परिवार में कहने के लिए सब साथ-साथ रहते थे पर वो तो सिर्फ़ इतना जानती थी कि सब बस हर बात पर उसे और उसके माता-पिता को ज़लील करने की फ़िराक में रहते थे।

आज भी तो घर में मेहमानों के बीच उसके रंग रूप और रहन सहन को लेकर मज़ाक उड़ाया था, उसकी ननदों ने। शांति देवी भी तो अपनी बेटियों के साथ हंँस रहीं थीं उस पर और उसके माता-पिता का भी मज़ाक उड़ा रहीं थीं।

“देखो! दिल्ली से पार्सल आया है।

 अपने नाती के जन्म और उसकी छठी पर तो आए नहीं और अब बच्चे के जन्म के तीन महीने बाद यह छठिहारी भेजी है। हमारे तो सारे मनोरथ पर पानी फेर दिया समधी जी ने तो। हम तो बड़ा खानदान समझ कर इनसे रिश्ता जोड़े थे पर हमको क्या पता था इतना कंगाल परिवार है इनका।”

शांति देवी ने इतना कहा ही था कि तभी सारिका की छोटी ननद बोली,

“इतना छोटा सा पैकेट है। सिर्फ अपनी बेटी और नाती के लिए भेजा होगा। माँ हमें आप बेकार में बुला रही हो, कौन सा हम दोनों बहनों के लिए कुछ होगा इसमें।”

सारिका को बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थी सासूमाँ और ननदों की यह बातें। एक तो शादी में इनकी सारी शर्तें मानी थी उसके पिता ने। दूसरे राज्य में आकर अपनी बेटी के ब्याह में कितनी परेशानी झेली थी क्या यह लोग नहीं समझ सकते।

 दो साल लगातार दिल्ली से बोकारो हर महीने छुट्टी लेकर आने के कारण उसके पिता को रिटायर मेंट के आठ साल पहले ही वी. आर. एस. लेना पड़ा।

उसकी माँ का अभी कुछ महीने पहले ही मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ जिस कारण छठी वाले दिन उसके मायके से कोई नहीं आ पाया।

सारिका का मन बेचैन था अपनी माँ को देखने के लिए पर पहले गर्भावस्था का अंतिम माह था इसलिए उसे ऐसे में किसी ने  जाने की इज़ाजत नहीं दी और फिर बच्चा छोटा है तो तू जाने का सोच भी कैसे सकती है। शांति देवी उससे कहती।

हफ्ते- महीने में एक फोन पर माँ पापा से बात होती थी सारिका की तब उसके पापा ने एक दिन उसे बताया था, “बिटिया रानी अब रिटायरमेंट के बाद तेरा पापा तो बूढ़ा हो गया है , अब इतनी दूर आ तो नहीं सकता फिर  तेरी मम्मी का भी अभी इलाज चल ही रहा है तो ज्यादा पैसा भी नहीं है तेरे बूढ़े पापा के पास… पर नाती को आशीर्वाद के रूप में जो जुड़ सका वो भेज रहे हैं। “

पार्सल खुला तो उसमें सिल्क की सात साड़ियां थी और बच्चे के कपड़े और उसके हाथ पैर के लिए चाँदी के गहने थे।

“ये क्या रुमाल भेजा है और ये कैसे गहने हैं, कितना हल्का लग रहा है ये कड़ा जैसे बाजार से नकली दस बीस रुपए वाला खरीदकर भेज दिया है। “शांति देवी ने कहा।

“नहीं माँ साड़ियां है , मम्मी ने आपके लिए, दोनों बेटियों और चारों बहुओं के लिए भेजी है और यह असली चांदी ही है।”

सारिका ने जब बताया तो उसके जेठजी जो वहीं बैठे थे बोले, ” सिर्फ घर की औरतों और  अपने  नाती के लिए  ही भेजा और हम आदमी लोग के लिए कुछ नहीं।”

एक पैकेट निकालते हुए सारिका के देवर सूरज ने कहा,” भाई इसके पापा ने पांच पांच सौ के चार नोट और  यह एक सौ एक भी तो भेजे हैं। हम चारों भाई का एक-एक अंडरवियर बनियान तो आ ही जाएगा।” इतना कहकर ठहाका मारकर सभी भाई बहन और शांति देवी हंसने लगीं।

“यह हंँसना बंद कीजिए आप लोग। उन लोगों की परेशानी में हम लोग उनकी कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं और ऐसे में भी पापा जी ने कितना कुछ भेजा है।” सारिका के पति संजीव ने कहा।

“पापा जी… वाह भाई तरक्की कर रहा है। अपने ससुर जी का भक्त बन गया है तू तो।” बड़े भाई ने कहा।

” मुझे इस संबंध में कोई बात नहीं करनी है। आप लोगों को सारिका और उसके परिवार को ज़लील करके पता नहीं क्या खुशी मिलती है। कभी सोचा है अगर हमारी दोनों बहनों के ससुराल वाले भी इसी तरह उन्हें और हमें हर छोटी-छोटी बात पर ज़लील करेंगे तो हम पर क्या बीतेगी।”

संजीव का साथ ही सारिका को उसके परिवार वालों से ज़लील होने के बाद भी उस घर में रहने पर मजबूर किए था।

आज इस रसोई घर में उसका अंतिम दिन ही है क्योंकि कल सुबह ही तो उसे संजीव के साथ अपने बेटे को लेकर उसकी कंपनी से मिले फ्लैट में सिफ्ट होना है।

संजीव ने साफ शब्दों में अपने परिवार वालों से कह दिया जहांँ मेरी पत्नी और उसके परिवार जो कि अब मेरा भी है… उनकी इज्जत नहीं होगी ,उनको ज़लील किया जाएगा उनका अपमान होगा वहांँ अब मैं अपने परिवार के साथ नहीं रह सकता।

#ज़लील

कविता झा’काव्य ‘अविका”

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