Moral Stories in Hindi : स्वप्निल पगफेरे में मायके पहुंची तो सहेलियों ने घेर लिया उसे।पूरा घर उसके आने की खुशी मनाने में लगा था।मां अपने दामाद को देख वारी जा रहीं थीं। स्वप्निल की सारी सहेलियां उसे सुंदर और सुयोग्य जीवनसाथी मिलने की बधाई दे रहीं थीं।तीन दिन मायके में रहकर जब विदाई का समय आया तो स्वप्निल मां से बोली”मां ,मुझे अभी ससुराल नहीं जाना।
कुछ दिन यहीं रहूंगी।”मां हंसकर बोली”अरे पगला गई है क्या बिटिया?अभी तो दामाद जी के साथ तुझे जाना ही पड़ेगा।तू मन खराब न कर।कुछ दिनों में तेरे पापा को भिजवाकर बुलवा लूंगी।अभी तेरा ससुराल ना जाना लोगों को अच्छा नहीं लगेगा।तरह -तरह की बातें बनाएंगे लोग बेवजह।मेरी गुड़िया रानी,जितनी जल्दी मायके का मोह छोड़ेगी,उतनी जल्दी अपने ससुराल वालों का दिल जीत पाएगी।दामाद जी को अपने पल्लू में बांधकर रखना।रोना बंद कर बिटिया, खुशी-खुशी जा ससुराल।”
स्वप्निल मां की बातें सुनकर चुपचाप ससुराल आ गई।पापा सरकारी स्कूल में शिक्षक थे। स्वप्निल ने भी एग्रिकल्चर में डिग्री ली थी।शादी से पहले एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी करती थी।शादी होने से पहले ही ससुराल वालों ने नौकरी छोड़ने के लिए मम्मी -पापा पर दवाब दिया था।
मम्मी ने ही स्वप्निल को समझाकर नौकरी छुड़वा दी।लगभग दो महीने बीत गए,पर पापा जी को नहीं भेजा मम्मी ने।जब भी स्वप्निल मम्मी से फोन पर कहती पापा को भेजने के लिए,वो कोई ना कोई बहाना कर देती।
अब स्वप्निल के लिए बर्दाश्त करना असंभव हो गया था।रात को सास के कमरे में जाकर बोली”मम्मी जी,मैं आपके बेटे के साथ नहीं रह सकती।आप भी एक औरत हैं,इसलिए आपसे कह सकती हूं मैं।”स्वप्निल ने अपने मन की सारी भड़ास आज सास के सामने निकाल दी।सास ने स्वप्निल को समझाया कि उसे गलतफहमी हुई है।
उनका बेटा ऐसा नहीं है।अभी नई-नई शादी हुई है,कुछ वक्त बीतने पर दोनों का रिश्ता सामान्य हो जाएगा।अब ऐसे में अगर वह मायके जाकर बैठ गई तो, दुनिया में उसी की जगहंसाई होगी।इतनी संपत्ति है,कौन खाने वाला है।इकलौते बेटे की बहू ही तो राज करेगी।
स्वप्निल के लिए एक -एक दिन भारी हो रहा था।घर में भाई या बहन भी तो नहीं थे,जिनसे अपने मन की बात कह पाती। घुट-घुट कर जी रही स्वप्निल के अंधेरे जीवन में, उस दिन रोशनी की एक हल्की सी किरण दिखाई दी।उसकी सबसे अच्छी सहेली वंदना परीक्षा देने उसी शहर आई थी।
मम्मी से पता पूछकर अपने पापा के साथ मिलने आई थी वंदना।वंदना को देखकर स्वप्निल उससे लिपट कर बहुत रोई।दो महीनों में ही स्वप्निल का रूप -रंग बिल्कुल बदल गया था।हमेशा हंसने-हंसाने वाली लड़की एकदम से निष्प्राण सी हो गई थी।वंदना को आया देखकर स्वप्निल की सास ने माहौल को सहज बनाने का प्रयास पूरी ईमानदारी से किया था ,पर वंदना को स्वप्निल की आंखों में अनकहा सच कुछ तो दिख रहा था।
उसके कमरे में जाकर जब वंदना ने अपनी कसम देकर पूछा ,तो स्वप्निल ने अपना दर्द अपनी सहेली को बताया।एक शिक्षित परिवार की शिक्षित बेटी की ऐसी दुर्दशा देखी नहीं गई वंदना से।उसने अपने पिता को जोर देकर स्वप्निल को उनके साथ ले चलने के लिए मना लिया। स्वप्निल की सास और ससुर ने पहले तो आपत्ति जताई पर वंदना के पिता के तर्कों के आगे हार गए।
कुछ घंटों में ही स्वप्निल अपने मायके में थी।वंदना के साथ अपनी बेटी को आया देखकर स्वप्निल के मम्मी पापा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।वंदना के पिता ने हांथ जोड़कर माफी मांगते हुए बताया कि स्वप्निल एक जिंदा लाश के जैसे दिखी अपनी ससुराल में।बेटी के आग्रह पर ही लेकर आए हैं,कुछ दिनों बाद वे उसे ससुराल पहुंचा सकतें हैं।
स्वप्निल की मां ने बेटी को समझाना -बुझाना शुरू किया ,तो स्वप्निल चिल्ला कर बोली”मम्मी,कुछ घंटे तो मुझे शांति से रहने दीजिए।मैं सब बताऊंगी आप लोगों को।मेरी बात का विश्वास करिए,मैंने बहुत कोशिश की वहां रहने की ,पर नहीं रह पाई।अब अगर मुझे आप लोग जबरदस्ती भेजेंगें तो मैं मर जाऊंगी।”,
बेटी की बात सुनकर पति-पत्नी दोनों चुप हो गए।ससुराल में फोन करके अपनी बेटी की गलती के लिए माफी मांग रही थी मम्मी। स्वप्निल हतप्रभ रह गई।शादी के बाद इतनी पराई हो जातीं हैं बेटियां,कि मायके में आने को भी पाप समझा जाता है।रात में पापा ने बहुत पूछा स्वप्निल से ,पर वह बोली ,”मैं आपसे नहीं कह पाऊंगी पापा। मम्मी को बताऊंगी मैं सारा सच।
“स्वप्निल ने रो-रोकर अपनी मम्मी को अपनी पीड़ा बताई।यह उतना भी सहज नहीं था।काफी मानसिक दवाब में होने के बावजूद स्वप्निल ने सामान्य रहने की कोशिश करते हुए ससुराल,ससुर और पति के बारे में जब मम्मी को बताया तो उन्होंने उसी के मुंह पर हांथ रखकर कहा”चुप हो जा बिटिया, बिल्कुल चुप।ये बातें खबरदार पापा के कानों में नहीं जाना चाहिए।
समाज में क्या मुंह दिखाएंगे हम?तुझे जरूर कोई गलतफहमी हुई है बिटिया।ऐसा थोड़े ही होता है।हम लोग मध्यमवर्गीय परिवार के हैं।कल को अगर उन्होंने कोर्ट-कचहरी करी तो तेरे पापा तो जीते जी मर ही जाएंगे।थोड़ा सबर कर बेटा, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।”
स्वप्निल अब शांत नहीं रह सकी, चिल्ला कर बोली”मम्मी,एक औरत होकर दूसरी औरत के दर्द को कैसे नहीं समझ सकती तुम?तुम तो मां हो ना मेरी,तुम मेरा दुख नहीं समझोगी तो दूसरों से क्या अपेक्षा रख पाएंगी मैं?ठीक है मम्मी,मैं पढ़ी लिखी लड़की हूं,अपने ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ मैं ही लड़ूंगीं “स्वप्निल उसी दिन जाकर वकील से मिली।
वकील का नोटिस पाकर ससुराल वाले बिलबिला उठे।सासू मां,ससुर और पति ने उल्टा उसी के चरित्र पर लांछन लगाना शुरू कर दिया। जब-तब आकर पति उसे जलील करने लगे “मैं सब समझता हूं।शादी से पहले तुम्हारा होगा अवैध संबंध किसी से,इसलिए नहीं रहना तुम्हें मेरे साथ।यहां तक कि तुम्हारे मां-बाप को कोई आपत्ति नहीं है मुझसे,पर तुम अपना कलंक छिपाने के लिए हम पर इल्ज़ाम लगा रही हो।”
मम्मी पापा ने भी अपने तरीके से बहुत समझाया पर, स्वप्निल इस बार हार नहीं मानने वाली थी। मम्मी ने बार-बार समझाया “बेटा,फिर से सोच ले।हमारे समाज में ब्याही बेटी मायके में नहीं रहती।तू थोड़ा समझौता कर ही ले।”
“नहीं मम्मी,अब मैं दुनिया और समाज के सामने सच्चाई लाकर ही रहूंगी।बहुत कोशिश की मैंने, कि ससुराल वालों को भरे अदालत में जलील ना होने दूं।मेरे ही स्वाभिमान को तिल-तिल कर मारा है आप लोगों ने।समाज यह देखे, कि बाहर से सुंदर और सुशील दिखने वाले पुरुष के अंदर एक कमजोर पुरुष भी है।
अगले दिन भरी अदालत में स्वप्निल के ससुराल पक्ष के वकील ने उसे जलील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।उसके चरित्र को भरे अदालत में तार-तार किया जा रहा था । आस-पड़ोस, रिश्तेदारों से अदालत पटा पड़ा था।एक कोने में वंदना और उसकी मां भी बैठी थी।वंदना और आंटी को देखकर स्वप्निल को बहुत हिम्मत मिली।
उसके वकील के माध्यम से पति पर जो इल्ज़ाम लगाया था,उसे सही साबित करने के लिए जज से पति का और अपना मेडिकल करवाने की गुज़ारिश की।पति और उनके मम्मी पापा बगले झांकने लगे।जज ने मेडिकल करवाने का आदेश दिया।अगले दिन जब रिपोर्ट पेश की गई अदालत में,जज ने उसके पक्ष में ही फैसला दिया।
जज ने स्वप्निल को बधाई देते हुए कहा”आपके द्वारा लगाया गया इल्ज़ाम प्रमाणित हुआ है।आपके पति वास्तव में अपूर्ण हैं।आपकी रिपोर्ट नार्मल है।एक ऐसे पुरुष के साथ रहने के लिए आपको कोई बाध्य नहीं कर सकता।आपके पति को यह आदेश दिया जाता है कि, आज ही उनसे आपका संबंध विच्छेद मान्य हो।आपने समाज में एक उदाहरण पेश किया है।समाज और रिवाजों के डर से लड़कियां अपने स्वाभिमान को चुपचाप मरते हुए देखतीं हैं,पर आपने इसका विरोध कर बहुत सारी लड़कियों को प्रेरणा दी है।शादी में दिया गया समस्त दहेज भी स्वप्निल को वापस किया जाए।”
स्वप्निल ने हांथ जोड़कर जज साहब का आभार किया,और बोली”महानुभाव, मुझे दहेज वापस नहीं लेना।मैं यह समझ लूंगी कि उस घर के लोगों को यह मेरी तरफ़ से उपहार होगा।मैं पति की कमियों को नज़र अंदाज़ कर भी देती, पर पहली ही रात मेरे ससुर जी की कुदृष्टि मैं कभी नहीं भूल सकती।सास से पति के बारे में बात करने पर उन्होंने मुझे समझाया, तो मैं भी शांत होकर बैठ ही जाती।उस रात अचानक सास-ससुर की बातें सुनकर मुझे घृणा होने लगी ख़ुद से।
बेटी समान बहू पर बुरी नजर रखने वाले ससुर ने और उनका मन बढ़ाने वाली सास ने मुझे बहुत जलील किया।मेरे स्वाभिमान की हत्या करते रहे दिन-रात ये सभी।पति ने अपनी कमी ना मानकर मुझपर ही लांछन लगाया।इस अपराध में मेरे मम्मी पापा भी सहभागी हैं।अपनी बेटी को जलील होते देखते रहे, पर कभी अपनी बेटी के मन का दर्द नहीं समझ सके।एक शिक्षक होकर भी मेरे पिता ने समाज के दकियानूसी रिवाज़ तोड़ने का प्रयास नहीं किया।
मेरी जन्मदात्री मां को समाज के तानों की चिंता थी,अपनी बेटी के लहूलुहान मन की परवाह नहीं थी।मेरी सहेली वंदना और उसकी मां ने मेरा मनोबल बढ़ाया।आज उन्हीं के कारण मैंने हिम्मत की अपनी जलालत का बदला लेने की।आज मेरी ससुराल वाले भी जानें कि,जलील होने में कैसा दुख होता है।?साहब मेरी विनती है आपसे कि मुझे अपने मायके और ससुराल वालों से मुक्ति दें।”
अदालत तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा।आज विजया दशमी पर पर अन्याय पर फिर से न्याय की जीत हुई।मां दुर्गा ने समाज में छिपे असुर को ढूंढ़ कर वध कर दिया।
शुभ्रा बैनर्जी