एक बार तो सोचती…. : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : रत्ना के हाथ रखने से पहले ही उसका ननदोई श्रीधर ने अपना हाथ पुस्तक पर से हटा लिया तो वह तिलमिला गई।अपनी इच्छा पर पानी फिरते देख उसने श्रीधर को नीचा दिखाने का ठान लिया।

आठ साल पहले रत्ना की छोटी ननद दीपाली के साथ श्रीधर का विवाह हुआ था।श्रीधर शहर के नामी काॅलेज़ में इतिहास के प्रोफ़ेसर थें।देखने में हैंडसम, स्वभाव के सरल श्रीधर का काॅलेज़ में बहुत सम्मान था।उनके बारे में कहा जाता था कि एक बार चाँद में दाग हो सकता है लेकिन श्रीधर के चरित्र पर नहीं।उनके चरित्र पर ऊँगली उठाना तो चाँद पर थूकने के समान है।

शादी के बाद श्रीधर जब भी अपने ससुराल आते तो रत्ना उनकी खूब खातिरदारी करती।शुरु-शुरु में उन्होंने सोचा कि बड़ी सलहज है तो…लेकिन फिर उन्हें रत्ना की नीयत में खोट नज़र आने लगा।इस बारे में उन्होंने दीपाली से कहा तो उसने हँसकर टाल दिया।

श्रीधर का बेटा जब पाँच बरस का था तो एक असाध्य बीमारी के कारण दीपाली की मृत्यु हो गई।घर में माँ और छोटी बहन थी, इसलिये उन्होंने दूसरे विवाह के बारे में सोचा नहीं।जब भी समय मिलता तो वे अपने बेटे को लेकर ससुराल आ जाते ताकि वह अपने ननिहाल वालों के साथ समय बिता सके।उस समय रत्ना श्रीधर के स्पर्श का कोई न कोई बहाना ढ़ूँढ लेती।रिश्तों का लिहाज़ करके श्रीधर चुप रह जाते जिससे रत्ना के हौंसले बुलंद थें।आज फिर से जब श्रीधर ने उसे हताश कर दिया तो उसने अपने पति से कहा कि आपके बहनोई की नीयत ठीक नहीं है।वे जब भी यहाँ आते हैं तो गाहे-बेगाहे मुझे छूने का…।

” बस भी करो रत्ना…अपनी नहीं, तो उनकी प्रतिष्ठा का तो ख्याल करो।वे एक सम्मानित प्रोफ़ेसर ही नहीं, इस घर के दामाद भी हैं।शर्म आनी चाहिये तुम्हें।” पति की डाँट का उस पर कोई ख़ास असर नहीं हुआ।कुछ दिनों बाद यही बात उसने अपनी सास से भी कही।लेकिन सास ने भी उसकी बात अनसुनी कर दी क्योंकि उन्हें अपने दामाद पर पूरा भरोसा था।

एक दिन दसवीं में पढ़ने वाली रत्ना की बेटी काजल शाम तक स्कूल से नहीं लौटी।स्कूल में फ़ोन करने पर पता चला कि अपनी सहेलियों के साथ वह स्कूल से जा चुकी है।अब तो रत्ना बहुत घबराई…पति को बोली कि पुलिस को फ़ोन कीजिये…कहीं कुछ गलत…।तभी काजल श्रीधर के साथ घर आई।सबने दोनों पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी…कहाँ रह गई थी….क्या हुआ…।

तब काजल ने रत्ना को बताया कि मम्मी…रास्ते में दो लड़कों ने मेरा रास्ता रोक लिया था।वे मेरे साथ बत्तमीज़ी करने लगे थें तभी फूफ़ाजी आ गये और मुझे उन बदमाशों के चंगुल से बचाया।मम्मी..आज फूफ़ाजी न होते तो…।” और वह रोने लगी।

तब रत्ना का पति बोला,” रत्ना…श्रीधर के कारण ही आज तुम्हारी बेटी सुरक्षित घर लौटी है और तुम उन्हीं पर…।चाँद पर थूकने से पहले एक बार तो सोचती…।”

” जी..मुझे माफ़ कर दीजिये।” कहते हुए उसने अपनी गरदन नीची कर ली।तभी श्रीधर मुस्कुराते हुए बोले,” क्यों भाभी…, अपने ननदोई को चाय नहीं पिलाएँगी।”

” अभी लाई….।” रत्ना के कहते ही सभी मुस्कुरा उठे।

विभा गुप्ता

#चाँद पर थूकना स्वरचित

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