Moral Stories in Hindi : शौर्य और माही, बहुत सुंदर जोड़ी। नया नया विवाह हुआ था। पहले से दोनों 7 साल से एक दूसरे को जानते थे और अब विवाह के बंधन में बंध गए थे। आज दोनों की विवाह की रिसेप्शन पार्टी थी। माही सिल्वर गाउन में और शौर्य ग्रे कलर के कोट पेंट में बहुत ही जंच रह थे।
रिसेप्शन समाप्त होने के बाद दोनों, परिवार वालों के साथ जब घर वापस आए तो बहुत ही थके हुए थे। वैसे भी पिछले कुछ दिनों से शादी की शॉपिंग और बाकी सारी तैयारी में सबको बहुत थकान हो गई थी। सब लोग घर आते ही घोड़े बेचकर सो गए।
सुबह शौर्य और माही जब नहा धोकर तैयार हो गए, तब माही को अचानक ध्यान आया और उसने शौर्य से पूछा-“शौर्य, कल जो आपका दोस्त मेहुल आया था, उसे मैंने पहले तो कभी नहीं देखा। मैं तो लगभग आपके सारे दोस्तों को पहचानती हूं। इससे कब दोस्ती हुई आपकी?”
शौर्य-“हां माही, मैं तुम्हें बताना भूल गया। ये हमारे पहले वाले पुराने घर के पास रहने वाला पड़ोसी था। इसके पापा का ट्रांसफर हो जाने के कारण इन्होंने जयपुर छोड़ दिया था और भोपाल चले गए थे। अब इसके पापा तो इस दुनिया में रहे नहीं, इसीलिए यह लोग यहां वापस आ गए हैं। एक दिन जब मैं मां के साथ पुराने घर गया तो वहां मेहुल मिल गया, तब मैंने इसे भी रिसेप्शन में आने के लिए निमंत्रण दे दिया।”
माही-“अच्छा, पर मुझे यह इंसान कुछ सही नहीं लगा।”
शौर्य-“शायद तुम उसके मजाकिया व्यवहार के कारण ऐसा कह रही हो। ऐसा कुछ नहीं है लड़का अच्छा है बस जबान थोड़ी ज्यादा ही खुली है।”
बात रफा दफा हो गई। अब काफी दिन बीत चुके थे और शौर्य और माही हनीमून से वापस लौट कर आ गए थे।
एक रात के समय शौर्य के घर में सब लोग, मम्मी पापा, शौर्य का छोटा भाई आदित्य, शौर्य माही सब लोग खाना खाने ही वाले थे कि अचानक मेहुल आ गया। सबने उसे कहा -“मेहुल, बिल्कुल सही टाइम पर आए हो, चलो हमारे साथ डिनर कर लो।”मेहुल मान गया और सबके साथ डिनर करने लगा। वह बार-बार माही की तरफ देख रहा था। माही को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था पर वह कुछ बोल नहीं पाई।
बाद में उसने शौर्य से कहा-“मुझे मेहुल का ऐसे अचानक आना और बार-बार मुझे देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।”
शौर्य-“कोई बात नहीं, ऐसा कुछ नहीं है इतनी टेंशन मत लो।”
1 दिन मेहुल शौर्य के ऑफिस पहुंच गया और उससे बोला-“यार, मार्केट में आया था और देख अपना वॉलेट घर भूल कर आ गया हूं। तभी तेरे ऑफिस की याद आई।₹1000 उधार दे दे, शाम को घर जाकर लौटा दूंगा।।”
शौर्य-“यार मेहुल, कैसी बातें कर रहा है 1000 क्या तू 2000 रख ले, लेकिन शाम को घर मत आना। वो क्या है ना की माही और मैं बहुत दिनों बाद आज डिनर के लिए बाहर जाने वाले हैं। मम्मी पापा और आदि तो मौसी के घर गए हुए हैं।”
मेहुल हंसते हुए कहता है-“अच्छा नहीं आऊंगा।”
लेकिन वह दोपहर में ही शौर्य के घर पैसे देने पहुंच जाता है। उसे पता था कि घर पर माही अकेली है। मेहुल को आया देखकर माही को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा फिर भी उसने शिष्टाचारवश उसे चाय पानी के लिए पूछा।
मेहुल ने तुरंत चाय पीने के लिए हां कर दी। माही जैसे ही चाय बनाने के लिए रसोई की तरफ गई। मेहुल पीछे-पीछे रसोई में पहुंच गया और चाय बनाने में मैं मदद कर दूं ऐसा कहकर माही के हाथों को छूने लगा।
माही के हाथ से चीनी का डिब्बा छूटकर गिर गया। उसने एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेहुल के गाल पर मारा और जोर से चीखी-“निकल जाओ यहां से”लेकिन मेहुल हंसता हुआ उसकी तरफ बढ़ने लगा।
माही तेजी से स्लैब पर पड़े चाकू की तरफ झपटी। चाकू उठाकर वह कमरे की तरफ भागी और बोली-“यहां से चुपचाप चले जाओ वरना यह चाकू तुम्हारे पेट में मार दूंगी।” बाहर के कमरे में पहुंचते ही वह किसी से टकराई और जब उसने देखा तो शौर्य सामने खड़ा था। शौर्य को देखते ही उसकी जान में जान आ गई। तब उसे याद आया कि उसने शौर्य को कहा था कि आज दोपहर में एक साथ खाना खाएंगे,आप घर आ जाना ।
मेहुल, शौर्य को देखते ही सकपका गया और पलटी मारते हुए बोला-“यार तूने, कैसी लड़की से शादी की है। ऊपर रखे चीनी के डब्बे को उतारने के बहाने मुझे रसोई में ले गई और गलत बातें बोलने लगी। रसोई में जाकर देख चीनी का डब्बा भी गिर गया मुझसे।”
माही-“शौर्य, नहीं मेहुल झूठ बोल रहा है। बल्कि इसने ही मुझे——-”
मेहुल-“शौर्य, माही मुझ पर झूठा इल्जाम लगा रही है।”
शौर्य-“हां मेहुल, मुझे सब समझ में आ रहा है। माही , तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है। तुझे और माही को मैं अच्छी तरह जानता हूं और मैं अभी पुलिस को कॉल कर रहा हूं क्योंकि मुझे माही पर पूरा विश्वास है कि वह गलत नहीं हो सकती। क**** तो तू है। माही ने तो मुझे पहले भी कहा था पर मुझे विश्वास नहीं हुआ कि तू ऐसी हरकत करेगा।”
ऐसा कहते हुए शौर्य ने मेहुल के मुंह पर जोरदार तमाचा मारते हुए, घर के बाहर धकेल दिया और कहा-“यहां कभी आसपास भी नजर मत आना, वरना तेरी टांगे तोड़कर हाथ में दे दूंगा।”
शौर्य ने माही को गले से लगा लिया और दोनों घर के अंदर चले गए।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली