Moral Stories in Hindi : अंकिता और उत्तरा दोनों देवरानी जेठानी थीं। उनमें बहुत बनती थी। इनका संयुक्त परिवार था। ससुर चार भाई थे।
बड़े भाई की बहू अंकिता थी और दूसरे नंबर के भाई की बहू उत्तरा।
उनमें सगी बहनों के समान अपार प्रेम था। उनके प्यार और स्नेह से परिवार में कुछ लोग जलन भी महसूस कर रहे थे। कइयों की नजरों में अंकिता और उत्तरा का स्नेह और प्यार कांटे की भांति चुभ रहा था।
वजह थी भरे पूरे परिवार में सभी महिलाओं का अशिक्षित होना और अंकिता एवम उत्तरा का उच्च शिक्षित होना। दोनों को सही गलत की समझ थी इसलिए एक दूसरे की सही बातो का दोनों समर्थन करती थीं। यही बात परिवार जनों को खटकती थी।
जहाँ अनीता का पति पढ़ा लिखा उच्च शिक्षित और सरकारी नौकरी वाला था वहीं उत्तरा का पति कम पढ़ा लिखा और बेरोजगार था।
चूंकि उत्तरा स्वयं एक सरकारी नौकरी में थी इसलिए किसी पर आश्रित नहीं थी।
अंकिता भी किसी पर आश्रित नहीं थी वह थी तो एक प्राइवेट नौकरी में ही परंतु अपना खर्च चलाने में वह भी सक्षम थी।
दोनों बहुऐं अपने घर परिवार का भी बहुत सम्मान करती थीं और परिवार जनों का ख्याल रखती थीं।
हाँ दोनों खाली समय में बैठकर अन्य महिलाओं की तरह एक दूसरे की चुगली नहीं करती थीं। यह बात भी कुछ फालतू महिलाओं को नागवार लगती थी।
कुछ दिनों बाद उत्तरा की ड्यूटी दूसरे शहर में हो गई और उत्तरा का पति अपने माँ-बाप के साथ पिछले शहर में ही रहा आया। उसको कहीं काम भी नहीं करना था और बीवी की कमाई खाने का इल्जाम भी सिर पर नहीं लेना था।
नतीजा यह हुआ कि उत्तरा के पति को लोगों ने भड़काना चालू किया कि वह अंकिता के बहकावे में आकर किसी की बात नहीं सुनती है।
अंकिता उसको सह देती है इसलिए उत्तरा किसी की बात नहीं सुनती है।
इस तरह उत्तरा का दूर चले जाना उसके पति के दिल में भी दूरियां बढ़ाता चला गया।
दोनों के बीच एक जबरदस्त कड़वाहट भर गई। अलग होने तक की नौबत आने लगी।
अभी अंकिता इन सब बातों से अनजान थी। वह तो हमेशा की तरह जब भी उत्तरा का फोन आता तो बात कर लेती। उनके पति पत्नी के रिश्ते की दूरी का उसको भान ही नहीं हुआ। क्योंकि अंकिता ने यह बात कभी सोची ही नहीं थी कि एक दिन देवरानी-जेठानी का बात करना भी इतना बड़ा मुद्दा बन सकता है।
लेकिन उसने यह भी सोच रखा था कि जब तक उत्तरा या उसका पति इस बारे में कोई जिक्र नहीं करेंगे तब तक वह अपने आप से कोई पहल नहीं करेगी।
जब उन्होंने कुछ बताया नहीं तो वह जबरदस्ती कैसे कूद पड़े!
बात तो तब समझ आई जब उत्तरा के पति ने अंकिता के पति से अंकिता को एक भद्दी सी गाली देकर कहा कि तुम्हारी पत्नी हमारा घर फोड़वा रही है। हमारे बीच झगड़े करवा रही है।
तब अंकिता के पति ने भी उत्तरा के पति को गाली दी कि मुझे मेरी पत्नी पर पूरा भरोसा है। वो ऐसा कभी नहीं कर सकती। भरोसा तुझे तेरी पत्नी पर नहीं है, घर इसलिए फूट रहा है।
मेरी पत्नी कभी सामने से फोन भी नहीं लगाती (वास्तव में हमेशा उत्तरा का ही फोन आता था) तेरी पत्नी ही फोन करती है। तू उसे फोन करने से रोक ले। दूसरे पर आरोप मत लगा।
उसके बाद अपने घर आकर अंकिता के पति ने अंकिता को सारी बातें बताई।
लेकिन उसने बात करने से मना नहीं किया क्योंकि वह जानता था कि अंकिता और उत्तरा की ऐसी कोई बातें नहीं होती हैं, जैसा आरोप उत्तरा का पति लगा रहा है।
सामान्यतः अंकिता और उत्तरा के कामकाजी होने के कारण रविवार को ही बात होती थी और संयोग से अंकिता के पति का भी अवकाश होता था इसलिए उसके सामने ही अधिक बातें होती थीं।
अंकिता के लिए यही एक प्लस पॉइंट था।
लेकिन अंकिता को यह बात भी अच्छी नहीं लग रही थी कि उत्तरा का उसके पति से झगड़ा हो इसलिए एक दिन जब उत्तरा का फोन आया तब अंकिता ने स्पष्ट शब्दों में कहा,,, “माफ करना बहन अब मैं तुम्हारा फोन नहीं उठाऊंगी।
हाँ यदि तुम किसी मुसीबत में होगी तब जरूर मैं तुम्हारे साथ खड़ी मिलूंगी लेकिन मेरे बात करने से यदि किसी का घर टूटता है तो मैं बात नहीं करना चाहती।
मुझे माफ करना बहन और हो सके तो मुझे समझने की भी कोशिश करना। मैं इतना बड़ा इल्जाम अपने सिर पर लेकर नहीं जी सकती हूँ।
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश