Moral Stories in Hindi : वे मंदिर की सीढियां धीरे-धीरे उतरने लगी। “यह गठिया का दर्द भी न… “वे बुदबुदाई।
दो नवयुवतियां हाथ में पूजा का थाल लिये आपस में बातें करती उनके आगे पीछे सीढियां उतर रही थी।
“इस बार पूजा की तैयारी कैसी चल रही है…पिछली बार तुमने गरवा में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया था “लाल साडी़ वाली बोली।
“पिछले वर्ष की बात और थी.. इस साल सासुमां आई हैं… ससुरजी के निधन के बाद न अपने कोई त्यौहार मनाती हैं और न हमें मनाने देती हैं “उसने चिढकर जबाब दिया।
“और मेरे यहाँ ससुर जी… जब से माताजी का स्वर्गवास हुआ है… न स्वयं खुश रहते हैं न हमें शान्ति से रहने देते हैं… तुम्हारी मां थी तो ऐसे करती थी वैसे करती थी का रोना रोकर हमारा जीना मुहाल किये रहते हैं। “
दोनों जवान थी। झटपट सीढियां उतर आंखों से ओझल हो गई। लेकिन उनकी बातें सुन अम्मा मन ही मन कांप उठी। वे भी तो पति के जाने के पश्चात कोई पर्व तीज उत्सव नहीं मनाती …और आज्ञाकारी बेटा-बहू भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चल खुशियों से दूरी बना ली है। लेकिन पोता पोती. ..उनका मन तो नाचने गाने त्यौहार मनाने का करता होगा।
वे अन्यमनस्क भाव से पीतल के थाल में प्रसाद फूल लिये घर पहुंची। बेटा-बहू आफिस जा चुके थे। पोता-पोती की बस सुबह ही आ जाती है। “अम्मा चाय”बहू चाय का प्याला नियमित रुप से रख जाती। कर्तव्यनिष्ठ बहू जाबांज बेटा प्यारे-प्यारे दिल बहलाने वाले पोता-पोती… और जीने को क्या चाहिए।
बुधनी कामवाली आ गई थी। उसी ने दरवाजा खोला।
“अम्मा नाश्ता लगा दूं!”
“थोड़ी देर बाद… अभी गरमागरम अदरक वाली चाय पिला दे। “
बहू बेटे की सख्त हिदायत थी… “अम्मा को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए… उन्होंने जिंदगी में बहुत तकलीफें झेली हैं…अगर बुढापे में भी आराम नहीं मिला तो लानत है मेरे जैसा बेटा-बहू पर।”
“जी साहब मैं पूरा ख्याल रखूंगी। “बुधनी भी अम्मा को बहलाने में अपना जी जान लगा देती।
अम्मा चाय पीते ख्यालों में खो गई!चारों ओर नवरात्रि की धूम मची हुई है। कहीं माता के आगमन के लिए पंडाल सज रहे हैं कहीं गरवा नृत्य का अभ्यास युवक-युवती ,बच्चों का झुंड कर रहा है। कोई फलाहारी की तैयारी में… कोई वस्त्र आभूषण का तोल-मोल कर रहा है। कोई मातारानी का दर्शन करने वैष्णव देवी के लिए टिकट आरक्षित करवा रहा है। नौकरी पेशा नैहर ससुराल जाकर पूजा मनाने का कार्यक्रम अपनी सुविधानुसार कर रहे हैं।
चारों ओर चहल-पहल है। लेकिन उनके हृदय का सूनापन किसी भी बात से आह्लादित नहीं होता।
सामने पति का मूंछों वाला फौजी लिबास में मुस्कुराता फोटो मानों उन्हें ढाढस बंधा रहा है।
“उमा, कल से नवरात्रि शुरू हो रहा है और तुम यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठी हो। “
“क्या करूं जी आपके बिना कुछ भी करने का मन नहीं करता। “
“बहानेबाजी बंद… इसबार धूम-धाम से बच्चों के साथ पूजा मनाओ… मेरी हार्दिक इच्छा है… पर्वत्यौहार श्रद्धा पूर्वक मनाना चाहिये… मैंं भी आऊंगा गरवा खेलने। “ठहाकेदार हंसी… वे भी मुस्कुरा उठी।
“अम्मा …नाश्ता “बाबा के फोटो को निहारते देख बुधनी हैरत में पड़़ गई।
“बाबा आयेंगे अम्मा… नवरात्रि में। “उसने पूछ ही लिया।
“शायद “रुआंसी अम्मा ख्वाबों में खो गयी।
उनके फौजी पति बरसों पहले युद्ध के दौरान लापता हो गया थे। उनका कोई अता-पता नहीं मिला। न जीवित न मृत। सरकार ने मृत मान विधवा पेंशन बांध दिया था। इकलौते बेटे की पढ़ाई का खर्चा सरकार ने उठाया… दुख सहे लेकिन बेटा होशियार निकला। अच्छी नौकरी समझदार पत्नी.. प्यारे बच्चे।
दोनों युवतियों की बातें सुन अम्मा आत्ममंथन करने लगी। वे भी अपने कर्तव्य परायण बच्चों पर अन्याय ही कर रही हैं। उनकी बहू भी मन ही मन उनको कोसती होगी। किंतु बरसों का धुंध छंटना इतना आसान नहीं था।
शाम को बच्चे बेटा-बहू एकत्रित हुए… अम्मा उन्हें पास बुलाकर बोली, “सुनो… इसबार नवरात्रि बडी़ धूम-धाम से मनाओ और सारे त्यौहार होली दिवाली भी मनना चाहिए। “
“अम्मा आप क्या कह रही हैं “आश्चर्यचकित बेटा-बहू एकसाथ बोल पड़े।
“हां बेटा… किसी एक के साथ नहीं रहने से दुनिया का काम नहीं रुकता… अब सारे तीज-त्यौहार मनाये जायेंगे। “
पोता पोती सुने तो उछल पड़े, “हमें भी गरवा का ड्रेस ला दो… हम भी गरवा खेलेंगे। “
बेटा-बहू मां के हृदय परिवर्तन पर ईश्वर का आभार प्रकट करने लगे।
रात्रि के एकांत में अम्मा पति के तस्वीर के आगे हाथ जोड़े खडी़ थी, “क्यों मैंने बच्चों को बंदिशों से आजाद करके अच्छा किया न… सच है कि जीवनसाथी के साथ न होने का दर्द कोई नहीं बांट सकता… लेकिन दुनियादारी भी कोई चीज है। “
इधर अम्मा की आंखें बरस रही थी और उधर बाबूजी के अधरों पर मधुर मुस्कान थी।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा©®
#जीवनसाथी के साथ न होने का दर्द कोई नहीं बांट सकता।