सासु जी तूने मेरी कदर न जानी – रश्मि सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

कविता-वर्षा गैस जल्दी बंद कर, दूध गिर जाएगा।

वर्षा (कविता की बेटी)-अरे मैं सामने होकर भी नहीं देख पायी।

कविता-तेरा केवल शरीर यहाँ है, मन तो कही ओर है। अच्छा मन तो जमाई राजा के पास होगा।

वर्षा- नहीं मम्मी। मैं तो कुछ और सोच रही थी।

कविता-शादी को सिर्फ़ दो हफ़्ते बाक़ी है इस वक़्त इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण क्या है।

वर्षा-मम्मी मैं ये सोच रही थी कि अभी तो निखिल (वर्षा का मंगेतर) की मम्मी मुझे बहुत मानती है, पर शादी के बाद वो दादी की तरह क्रूर सास तो नहीं बन जाएँगी।

कविता-पागल ऐसा कुछ नहीं है, दादी भी क्रूर नहीं थी बस थोड़ा अनुशासन वाली थी।

वर्षा-क्यों ना कहूँ, जबसे मैं समझदार हुई, मैंने कभी भी दादी को आपसे प्यार से बात करते नहीं सुना, हमेशा हिटलरबाज़ी। कभी आपके सर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया। एक बार याद है जब आपके ऊपर गर्म तेल गिर गया था, मरहम लगाने की बज़ाय आपको डाँट रही थी कि काम करन का तनिको सुहुर नहीं है, अब घर को काम को करी।

कविता-बेटा पुरानी बातों को भूल जा, आगे का सोच। # मेरी सास ने मेरी कदर नहीं की इसका मतलब ये नहीं की सब ऐसी हो। ये धारणा बनाकर मत जाना ससुराल। मेरी लाडो इतने अच्छे घर में जा रही।

दो हफ़्ते बाद वर्षा क्रूर सास की छवि अपने मन में बसाए अपने ससुराल पहुँचती है।

आज वर्षा की पहली रसोई है, वर्षा को दस बारह लोगो का ख़ाना बनाना है। वर्षा ख़ाना बहुत अच्छा बनाती है पर नये माहौल में अच्छा ख़ासा इंसान घबरा जाए।

मीना (वर्षा की सास)-कुछ मदद चाहिए वर्षा।

वर्षा मन ही मन बुदबुदाती है कि जब पूरा ख़ाना बन गया तब आई है।

वर्षा-मम्मी जी ख़ाना तैयार हो चुका है। जब लगाना हो बताइएगा।

मीना-तुम थक गई होगी जाओ थोड़ा आराम कर लो। जब सब खाने के लिये बैठेंगे तब मैं बुला लूँगी तुम्हें।

वर्षा रसोईघर से जाना नहीं चाहती है क्योंकि उसे डर है कही उसकी सासू उसके खाने में नमक या मिर्च ना मिला दे।

अगले दिन सब गाँव की औरतें मीना से उनकी बहू को खेत घुमाने के लिए कहती है।

मीना-बहू नहीं जाएगी, वो पूजा में जाने लायक़ नहीं है। मैं चलकर खेतों वाले बाबा की पूजा कर दूँगी।

वर्षा मन ही मन सोचती है अपना तो बन ठन के निकल ली घूमने, मुझे नहीं लेकर गई और मैं कहा पूजा लायक़ नहीं हूँ। ये वाक़ई ख़तरनाक सास है अब मुझे भी इनकी तरह तेज बनना पड़ेगा।

निखिल-क्या बात है वर्षा दुखी लग रही हो।

वर्षा-क्यों ना हो, यहाँ मेरी मर्ज़ी तो कोई जानना ही नहीं चाहता, आज मम्मी अपने खेत मुझे लिए बिना ही चली गई, मेरा भी खेत देखने का मन था और ऊपर से झूठ बोला वो अलग।

निखिल-ऐसा नहीं है मम्मी ने किसी कारण से ही ऐसा किया होगा।

वर्षा-हाँ तुम तो उन्हीं की तरफ़ से बोलोगे। अभी तो दो दिन हुए है तब ये हाल है। मम्मी हम दोनों के बीच लड़ाई करा रही है।

निखिल-तुम कुछ ज़्यादा सोच रही हो, ऐसा कुछ नहीं है बच्चा।

मीना-वर्षा बहू, इधर आ, देख मैं तेरे लिये क्या लायी हूँ।

वर्षा (रूखे मन से)-ये कंगन मैं नहीं पहनती। आप इन्हें गीता भाभी को दे दीजिए।

मीना-गीता के लिए भी लायी हूँ, ये खेतों वाले बाबा के मंदिर से मिले है, प्रसाद है मना नहीं करते।

वर्षा मन ही मन सोचती है कि लेकर तो गई नहीं और अब इनकी पसंद के कंगन पहनूँ।

गीता (घर की बड़ी बहू)-बड़ी मम्मी (मीना) आपने बहुत ठीक किया जो वर्षा को खेत नहीं ले गई, वहाँ की रस्मों में वर्षा परेशान हो जाती।

वर्षा ये सुन गीता भाभी से पूछती है कि भाभी ऐसा क्या होता है खेतों वाले बाबा की पूजा में।

गीता-अरे इतनी तेज धूप में खेतों में तुमसे लंबा सा घूँघट कर मिट्टी खुदवाकर 21 पोधे लगवाये जाते, फिर उनकी पूजा होती। मैं तो बहुत थक गई थी बस लगा अब गिरी तो तब गिरी, इसलिए बड़ी मम्मी ने तुम्हारी जगह रस्म निभा दी। बड़ी मम्मी बहुत अच्छी है उन्होंने हमेशा मुझे भी बहुत सपोर्ट किया है। तुम खुशनसीब हो जो तुम्हें बड़ी मम्मी जैसी सास मिली है।

वर्षा अपनी सोच पर पछता रही थी कि मैंने सास की एक ग़लत अवधारणा बना रखी थी, जिस कारण मैंने मम्मी के साथ साथ इनके साथ भी अन्याय किया है। वर्षा मीना को देखकर कस कर गले लग गई और रोने लगी। मीना को लगा शायद मायके की याद आ रही है तो उन्होंने भी उसके माथे को चूमकर बोला मैं भी तेरी मम्मी हूँ। कुछ भी मन में हो बोल दिया कर।

आज वर्षा के मन से अपनी दादी की क्रूर सास की तस्वीर धूमिल हो रही थी और अपनी सास कि एक नयी छवि कैनवास पर उतर रही थी।

आदरणीय पाठकों,

हम अपने जीवन के अतीत के अनुभवों से भविष्य के लिए भी एक समान अवधारणा बना लेते है, और उन्हीं मानको पर सबको नापते है, जबकि हर परिस्थिति हर इंसान अलग होता है, इसलिए सबको जानना और परखना ज़रूरी है।

आशा करती हूँ कि सभी पाठकों को मेरी रचना द्वारा दिया गया संदेश समझ आया होगा, तो रचना को लाइक, शेयर और कमेंट कर अपना समर्थन दें।

धन्यवाद।

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

नवाबों की नगरी (लखनऊ)

# सासु जी तूने मेरी कदर न जानी

 

 

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