शिकायत – अनु माथुर : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शादी का आखरी पेमेंट करके मीरा घर के अंदर आई… कुछ खालीपन सा लग रहा था उसे | कल तक आस्था की शादी की इतनी चहल – पहल थी घर में | आज उसकी विदाई के साथ सब महमान भी चले गए | 

हालाँकि आस्था वापस से उसी बिल्डिंग में आने वाली थी क्योंकि नयन (आस्था का पति) ने फ्लैट वही लिया था | आस्था अपनी माँ से दूर नहीं रहना चाहती थी | दोनों का ऑफिस भी वहाँ से पास था | आस्था का ससुराल मुंबई में अंधेरी में था | तो वो एक हफ्ते में वापस आने वाली थी |

शादी की भाग- दौड़ में मीरा काफी थक गयी थी | वो अपने कमरे में गयी तो  मयंक की तस्वीर पर उसकी नज़र गयी वो उसकी तस्वीर के पास गयी और छू कर उसे महसूस करने लगी   और बोली -” आज तुम्हारी लाडली की शादी हो गयी…दो बूँद आँसू के उसकी आँखो से गिर गए…. उसने अपने हाथ से उन्हें पोंछा और पास वाली कुर्सी पर बैठे गयी और अपनी आँखो को बंद कर लिया |

बीता हुआ वक़्त उसकी आँखो में उतर आया… मीरा की शादी मयंक से हुई …वो पोस्ट ऑफिस में काम करता था… सरकारी नौकरी थी… मीरा की माँ को वो पसंद आ गया… मयंक तीन भाईयों में सबसे छोटा था माता – पिता दोनों नहीं थे उसके … मीरा और उसकी माँ बस मीरा का इतना ही परिवार था … सब राज़ी ख़ुशी हो 

गया | मीरा मयंक के साथ शादी करके मुंबई आ गयी और उसकी माँ भी… मयंक को कोई ऐतराज़ नहीं था इस बात से….

मुंबई में भाग -दौड़ वाली ज़िंदगी शुरू हो गयी |  मीरा पहली बार इतने बड़े शहर में आयी थी….. उसे थोड़ी असुविधा हो रही थी.. सारी चीजों का digital होना उसी परेशानी में डाल देता था… उसने सीखा लेकिन  ज़्यादा कुछ समझ नहीं आया | कुछ लेना हो तो वो मयंक का इंतज़ार करती या उसे फोन करती | मयंक उसे बोलता कि तुम भी ये सब पेमेंट किया करो…लेकिन मीरा हमेशा ये कह देती हाँ ठीक है कर लूंगी.. लेकिन अभी तो मंगा दो | और बात ख़तम हो जाती | 

मयंक अपनी मेहनत से क्लर्क की पोस्ट से ऑफिसर बन गया | आस्था का जन्म हुआ…… मयंक ने घर, गाड़ी सब खरीद लिया | मीरा भी बहुत खुश थी | एक दिन अचानक मीरा की माँ को दिल दौरा पड़ा और वो सब को छोड़ कर चली गयी |

समय बीता आस्था तब 12th में थी… मयंक की गाड़ी का accident हुआ और उसने वहीं पर दम तोड़ दिया., हॉस्पिटल तक ले जा भी नहीं सके | 

मीरा और आस्था दोनों पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा | परिवार के लोग और मित्र सब आए और चले गए… |

मीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे…. आस्था की भी पढाई थी.. 

मयंक की सरकारी नौकरी थी तो उसकी जगह पर मीरा को नौकरी मिल गयी लेकिन उस पोस्ट पर नहीं मिली जिस पोस्ट पर मयंक था…उसे पनवेल से ट्रेन पकड़ कर ठाणे जाना होता था …. उसने तो कभी ये सब किया ही नहीं था मयंक जो था तब | ना ही उसे कोई digital काम आता था | अब सीखने के अलावा कोई option नहीं था | 

धीरे – धीरे उसने सीखा online पेमेंट करना , गाड़ी चलाना ….कभी कोई परेशानी होती तो आस्था समझा देती वो दोनों ही एक दूसरे का सहारा थी… परिवार वाले बस नाम के थे | समय ने मीरा को भी सब सिखा दिया था | 

मीरा ने अपनी आँखे खोली और कुर्सी से उठकर  मयंक की तस्वीर की तरफ़ बढ़ी और बोली – तुम्हें हमेशा मुझसे शिकायत थी ना.. कि मैं कुछ नहीं सीखती., आज मैंने सब सीख लिया..  उसने इतना ही कहा था…. तभी डोर बेल बजी मीरा अपनी यादों से बाहर आयी… और दरवाज़ा खोलने के लिए गयी |

बाहर आस्था की  दोस्त अटैची लिए खड़ी थी … आंटी खुशी ने अंदर कदम बढ़ाया और बोली… आस्था ने फोन किया था कि मम्मी का ध्यान रखना जब तक मैं वापस नहीं आती कहते हुए वो मीरा के गले लग गयी | मीरा ने भीगी आँखों से उसे कस के बाहों में ले लिया | 

 

आशा करती हूँ आपको ये कहानी पसंद आयी होगी | जल्दी ही फिर मिलूँगी एक नई कहानी के साथ |

धन्यवाद🙏

स्वरचित

कल्पनिक कहानी 

अनु माथुर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!