Moral Stories in Hindi : ” बहू, आज कहाँ जा रही हो ?? “
” माँ जी, वो मुझे कुछ सामान लेना था इसलिए मार्केट जा रही हूँ। ” बोलकर रूही गाड़ी की चाबी घुमाते हुए घर से निकल गई।
वंदना जी मुंह देखती रह गई और पीछे से बड़बड़ाते हुए बोलीं, ” हुंह… ये अच्छा है….. रोज महारानी को कहीं ना कहीं जाना होता है….. जब देखो गाड़ी लेकर निकल जाती है तफरी करने… शादी को एक महीना भी नहीं हुआ और इसके तो पैर ही निकल गए!!! घर में सौ काम बिखरे हों लेकिन इसे कुछ नजर ही नहीं आता। ,,
बगीचे में से आते हुए जब रमेश जी ने अपनी पत्नी वंदना जी को बड़बड़ाते देखा तो पूछ बैठे, ” अरे, क्या हुआ भाग्यवान?? किसपे झुंझला रही हो? ,,
” अजी, आप तो चुप ही रहिये…. घर में क्या हो रहा है उससे आपको कोई फर्क भी पड़ता है क्या !! मुझे ही इसके पर काटने पड़ेंगे वर्ना पानी सर से ऊपर हो जाएगा। आज ही इसके बाप के पास फोन मिलाकर इस महारानी की शिकायत करती हूँ….. बड़ा बढ़- चढ़ कर बोल रहा था कि हमारी बेटी तो बहुत संस्कारी है…. अब कहाँ गए वो संस्कार!! ऐसी नकचढ़ी बेटी हमारे मत्थे मढ़ दी कि सीधे मुंह बात भी नहीं करती सेवा करना तो दूर की बात है।
लेकिन इसने अभी मेरा असली रूप देखा ही कहाँ है!! मैंने तो अच्छे अच्छों को सीधा कर दिया है तो ये कौन से खेत की मूली है। आने दो आज घर वापस… इसके सामने ही इसके बाप से बात करूंगी। ” वंदना जी का पारा सातवें आसमान पर था।
लगभग तीन घंटे के बाद जब रूही वापस घर आई और सीधे अपने कमरे की तरफ चल दी तो वंदना जी ने रोकते हुए कहा, “बहू रूक जाओ यहीं। ”
” क्या हुआ मम्मी जी!! कुछ काम है क्या? ” रूही सहजता से बोली।
” हुंह…. , काम तो ऐसे पूछ रही हो जैसे सारा काम तुम्हारे भरोसे ही होता है इस घर में…. एक महीना हो चुका है शादी को एक दिन ढंग से खाना भी बना कर खिलाया है तुमने जो आज काम पूछ रही हो? ” तुनकते हुए वंदना जी बोलीं।
” ओह… तो आपको मुझसे शिकायत है…. ” रूही अभी भी बहुत सहजता से बोल रही थी।
उसे इस तरह बात करते देख वंदना जी और ज्यादा चिढ़ रही थीं, ” शिकायत! ! शिकायत तो मैं करूंगी अभी तेरी तेरे बाप से। रूक अभी फोन मिलाती हूँ। ” कहकर वंदना जी ने अपना फोन उठाया।
रूही भी कहाँ कम थी। उसने अपनी सास के हाथ से फोन ले लिया और बोली, ” मम्मी जी , पापा से अब क्या बात करनी है आपको?? सगाई के बाद हर रोज तो कुछ ना कुछ डिमांड पूरी करने के लिए फोन तो करती ही रहती थीं आप। कभी ए सी, कभी फ्रीज तो कभी गाड़ी…. अब क्या मांगना बाकी रह गया है? रही बात मेरे संस्कारों की तो वो तो शायद आपकी लिस्ट में नहीं थे.. तो फिर अब क्यों आपको एक संस्कारी, सेवा करने वाली बहू चाहिए? ”
” हमें क्या पता था कि तुम्हारे जैसी अक्खड़ लड़की हमारे पल्ले पड़ जाएगी। मैंने तो सोचा था कि तुम पढ़ी लिखी समझदार हो लेकिन तुम्हें तो छोटे बड़ों का कोई लिहाज ही नहीं है। ”
” मम्मी जी, लिहाज और संस्कार तो मुझमें मेरे माता – पिता ने कूट- कूट कर भरे थे लेकिन आपके लालची स्वभाव को देख- देखकर पता नहीं वो कहाँ चले गए। या तो दहेज ले लो या फिर संस्कारी बहू ले लो । लेकिन आपको तो पांचों उंगलियाँ घी में चाहिए और वो आज के जमाने में मुमकिन नहीं है। सिर्फ मैं ही जानती हूँ मेरे पापा ने ये मेरा दहेज इकट्ठा करने में कितनी रातों की नींद उड़ाई है। हर रोज आपकी नई फरमाइश पूरी करने में अपनी सारी जमापूंजी लगा दी। और हाँ मम्मी जी मैं बनिए की बेटी हूँ और पैसे वसूल करना जानती हूँ। अरे, मैं तो दस रूपये के गोलगप्पे भी पैसे वसूल करके खाती हूँ तो अपने पापा के तीस लाख के दहेज को जाया कैसे जाने दे सकती हूँ?? आप ही तो कहती थीं कि ये सब ए .सी. , गाड़ी आपकी बेटी के ही काम आएगी… तो बस मैं काम में ले रही हूँ। फिर अब आपको मुझसे क्या शिकायत है??? ” रूही मुस्कुराते हुए बोली।
वंदना जी स्तब्ध सी रूही का मुंह देखती रह गई। उनसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था। सब ने बहुत समझाया था कि इतना लालच ठीक नहीं लेकिन बेटे की माँ होने का उन्हें तो पूरा फायदा उठाना था लेकिन इस फायदे के चक्कर में उन्होंने अपना बहुत बड़ा नुकसान कर लिया था ये अब उन्हें समझ में आ रहा था।
सविता गोयल
मौलिक एवं स्वरचित