Moral Stories in Hindi : शुभम-“पापा, कल मेरे स्कूल में फंक्शन है। सबके पेरेंट्स आ रहे हैं। आप और मम्मी भी मेरा डांस देखने के लिए आना।”
पापा जिनका नाम नवीन था-“बेटा, तुम्हें तो पता है मैं नहीं आ सकता। मुझे बहुत सारे पेशेंट देखने है। मम्मी से कहना आने के लिए और यह क्या तुम एक्टिंग और डांस में लगे रहते हो। बड़े होकर तुम्हें मेरी तरह डॉक्टर बनना है। अपनी दीदी को देखो, कितना ध्यान लगाकर पढ़ती है।”
शुभम-“लेकिन पापा मुझे डॉक्टर नहीं बनना।”
शुभम की मम्मी नेहा-“क्या आप भी बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं। अभी तो वह छठी क्लास में पढ़ता है।”
नवीन-“अभी से कोशिश करेंगे तभी तो वह बड़ा होकर डॉक्टर बनेगा। अच्छा चलो मैं क्लीनिक के लिए निकलता हूं।”
अगले दिन नेहा शुभम के स्कूल उसके फंक्शन में जाती है। शुभम डांस में फर्स्ट आता है। शुभम को डांस करना बहुत पसंद था। उसकी बड़ी बहन तन्वी दसवीं क्लास में पढ़ती थी। उसे भी डांस करना बहुत पसंद था, लेकिन वह पापा के डर के मारे कुछ नहीं बोलती थी। आगे 11वीं कक्षा में आने पर उसने पापा के कहने पर ही विज्ञान विषय ले लिया था, हालांकि उसका उसमें बिल्कुल मन नहीं लगता था। पापा के कहने पर ही उसने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू की थी।
इधर शुभम जब 11वीं कक्षा में आया तो पापा ने उसे भी जबरदस्ती विज्ञान विषय दिलवा दिया। शुभम का मन कला विषय लेने में था। लेकिन पापा के सामने उसकी एक न चली। नतीजा यह हुआ कि वह 11वीं कक्षा में फेल हो गया।
तब उसके पापा ने उसे बहुत बुरी तरह डांट लगाई।
शुभम ने एक बार 11वीं कक्षा में विज्ञान विषय लेकर फिर से मेहनत की, लेकिन वह फिर से फेल हो गया। अबकी बार उसके पापा ने उसे तमाचे भी मारे। स्कूल वालों ने भी साफ कह दिया कि अब आपके बेटे को विषय बदलने पड़ेंगे, क्योंकि अगर यह की परीक्षा में फेल हो जाएगा तो हमारे स्कूल का नाम खराब होगा।
मजबूरी में नवीन को, शुभम के विषय बदलवाने पड़े। विषय बदलने के बाद भी शुभम का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। उसका मन पढ़ाई से उचाट हो चुका था और नवीन भी हर वक्त शुभम को डांटता और ताने मारता रहता था।” हमारे घर में यह कैसा लड़का पैदा हो गया। इसकी बड़ी बहन को देखो कैसे की जान से डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही है। मैं डॉक्टर, शुभम के दादाजी भी डॉक्टर, न जाने यह नालायक किस पर गया है। ”
नेहा, नवीन को हमेशा समझाती थी कि ऐसे हर समय बच्चे को सुनाते रहना ठीक नहीं। एक बार नवीन शाम को जब क्लीनिक से आया तो उसने देखा कि शुभम गाना चला कर उस पर डांस कर रहा है। तब नवीन ने उसे बहुत खरी-खोटी सुनाई। शुभम उदास होकर घर से बाहर चला गया। वह बहुत चुप चुप रहने
लगा था। वह सिर्फ अपनी बहन से खुलकर बात करता था, लेकिन नवीन ने तन्वी को पढ़ाई के लिए हॉस्टल भेज दिया था।
एक दिन नेहा और नवीन को किसी शादी के फंक्शन में जाना पड़ा। तीन-चार घंटे बाद वह जब वापस आए तब शुभम दरवाजा ही नहीं खोल रहा था। उन लोगों ने बहुत बार घंटी बजाई लेकिन उसने दरवाजा नहीं खोला। उन्होंने सोचा कि शायद शुभम को नींद आ गई होगी, इसीलिए वे लोग चाबी से दरवाजा खोलकर अंदर आ गए।
नेहा कपड़े बदलने के बाद शुभम को देखने उसके कमरे में गई और जोर से चीख चीख कर नवीन को पुकारने लगी। नवीन दौड़ता हुआ आया और शुभम को पंखे से लटका हुआ देखकर जोर से रोने लगा।
जल्दी से दोनों ने मिलकर शुभम को नीचे उतारा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शुभम उन्हें छोड़कर जा चुका था।
उसने पत्र में अपने पापा से, डॉक्टरी की पढ़ाई ना कर पाने की माफी मांगी थी और यह भी लिखा था कि”पापा मैं डांसर बनना चाहता था।”
नेहा और नवीन फूट-फूट कर रो रहे थे और नवीन को पढ़ाई के मामले में अपनी सख़्ती करने पर बहुत पछतावा हो रहा था। उसने सोच लिया था कि मैं इस गलती का पश्चाताप जरूर करूंगा। नेहा ने गुस्से में उससे बात करना भी बंद कर दिया था। तन्वी भी नवीन से बहुत नाराज थी।
फिर एक दिन नवीन एक 10 -11 साल के बच्चे को साथ लाया। उसने नेहा से कहा -“नेहा, ये राजू है। यह लड़का सड़क पर गाड़ियां साफ करता है। जब मैं इससे बात की तो इसने बताया कि यह दुनिया में अकेला है। तब मैंने सोचा कि अपने शुभम के लिए मैं प्रायश्चित करना चाहता हूं। तो यह सही रहेगा की मैं इस बच्चे का पालन पोषण करूं और इसे पढ़ाई लिखाई करवा कर इसका भविष्य बनाऊं। इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?”
नेहा जो अपने बेटे शुभम को खोकर टूट चुकी थी। उसने सोचा कि चलो इस बहाने किसी बच्चे की जिंदगी तो बन जाएगी। उसने इसीलिए हां कर दी। राजू तन्वी दीदी और अपने मम्मी पापा को पाकर बहुत खुश था। उसने बहुत मन लगाकर पढ़ाई शुरू कर दी थी। नवीन उससे पूछता था-“बेटा बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?”
राजू कहता-“पापा, जो आप बोलोगे वही बनूंगा।”
नवीन-“नहीं बेटा, जो तुम्हारी इच्छा हो वही बनना।”ऐसा कहते हुए वह शुभम की तस्वीर को देखकर रो पड़ता।
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली
बहुत ही सुंदर प्रेरक कहानी