लड़के वाले भाग 14 – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जैसा आप सबने अभी तक पढ़ा कि नरेशजी और उनके परिवार को अपने बड़े लाला उमेश के लिए लाली शुभ्रा पसंद आ चुकी हैं… उमेश,,नरेशजी और वीनाजी का खुद का बेटा नहीं हैं,, यह जान दादा नारायणजी अपने परिवार की आपसी सहमति जानने के बाद इस रिश्ते के लिए सहमत दिखते हैं… नरेशजी की यह अनोखी पहल कि वो खुद सारा दहेज लेंगे बस लड़की वालों को यह कहना हैं कि यह उन्होने दिया हैं,, सभी लड़की वाले यह सुन दंग रह ज़ाते हैं… तभी दादा नारायण जी कहते हैं… बाकी सब तो ठीक हैं पर आप लोगों को एक बात की हामी भरनी होगी…

अब आगे…

जी कहिये … कैसी हामी भरनी होगी हमें ?? ताऊ रमेशजी बोले….

यहीं कि बड़े छोरे को भी अपनी जमीन जायदाद में बराबर की हिस्सेदारी देवनी होगी ज़ितनी छोटे छोरे को देवेंगे तुम….

जी, इसमें कहने वाली कोई बात नहीं हैं… आप हमारी तरफ से निश्चिंत रहिये…. ज़ितना मेरे समीर को मिलेगा उतना ही मेरे उमेश को…. नरेशजी और वीना जी एक साथ बोले…

तभी समीर बोला…. भाई को मुझसे ज्यादा ही मिलेगा…. मुझे क्या चाहिए बस भाई का साथ और प्यार …. मुझे तो उन्ही के साथ रहना हैं…

लाला… ब्याह ते पहले सब ऐसे ही कहवे हैं पर ब्याह होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेवे हैं सब… बुआ बन्नो बोली…

तो क्या बुआ जी फूफाजी भी रंग बदल लिए आपसे ब्याह करके??

समीर मजाकिया लहजे में बोला…

फूफा जी तो राम हैं राम… बुआ जी झेंपती हुई बोली…. पर सब ऐसे ना होवे….

तो मैं भी बन्नो बुआ ल्क्षमण से कम नहीं… आप भी यहीं हैं, हम भी यहीं ….

समीर अब थोड़ा रिलैंक्स होकर बोला… अब उसे लगा चलो बुढ़ऊँ माने तो सही….

बुआजी बोली… ठीक हैं… देख लेवे बखत आने पर …

तभी भाईसाहब रमेशजी बोले… बहुत समय हो गया नारायण जी… अब हमें निकलना भी हैं… आप अपना फैसला बताइये … हमें तो बेटी शुभ्रा पसंद हैं…

कहां निकलना हैं तुम सबन को??

जी , अपने घर …

आज तो हमाये यहां ही रुकोगे आप सब… सारी व्यवस्था हो गयी हैं.. वैसे ही साँझ होने आयी…. भोर में निकर जाना आप सब…शाम को दाल बाटी खाना सब चूल्हे की देसी घी में ड़ूबोके ….नारायणजी हक से बोले…

नरेशजी को अपनी गाड़ी की चिंता सता रही थी और यहां बुढ़ऊँ रात में रुकने की कह रहे … वो बोले.. बहुत आवभगत की आप लोगों ने…. बहुत अच्छा लगा…. जी अब आप बताईये आगे का क्या सोचा हैं…

हमें भी आपका छोरा खूब मलूक लागे हैं… हमाई तरफ से रिश्ते की मंजूरी … बाकी आप छोरे वारे हैं …. आप लोग बतावो …. का करना हैं… नारायण जी बोले…

समीर ने धीरे से भाई को शादी पक्की होने की बधाई दी… उमेश शर्मा गया… भले ही जमाना कितना भी फास्ट फोरवर्ड हो गया हो पर अभी भी हमारे देश में शादी की सुन लड़का लड़की का शरमाना लाजमी हैं….

उधर शुभ्रा भी उमेश को देख मुस्कुरा रही थी…. उसके गाल शर्म से लाल हो रहे थे… जैसे ही उमेश की नजर शुभ्रा से टकरायी … शुभ्रा पलकें नीचे कर कमरे में भाग गयी…

दूसरी तरफ सुबह से खातिरदारी में लगे, सुबह से क्या शायद कई दिनों से लड़के वालों का स्वागत करने में लगे शुभ्रा के पापा भुवेशजी लाठी लिए ब्याह की दोनों पक्षों से रजामन्दी की सुन भाव विभोर हो गए… मन ही मन उनके मांगलिक श्लोक बजने लगा….

मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

तभी भाईसाहब रमेशजी ने उठकर भुवेशजी को अपने बगल में बैठा लिया… वो बोले….. मुस्कुराईये ज़नाब…अब शुभ्रा हमारी हुई….अब बेटी की फिकर छोड़िये … बाकी कुंडली मिलवाकर ही आयें थे हम उसकी कोई चिंता नहीं… ब्याह बन रहा हैं…

वीनाजी ने समीर से इशारा कर लिफाफा निकालने को बोला… उन्होने कहा ज़रा शुभ्रा को बुला दीजिये …

माँ बबिता चेहरे पर निश्चिंतता के भाव के साथ शुभ्रा को अपने साथ लेकर आयी… आखिर हमारे समाज में एक बेटी का ब्याह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी मानी ज़ाती हैं… पूरा जीवन बेटी वाले जोड़ते रहते हैं कि बेटी का ब्याह करना हैं… हिसाब से खर्च करो… उसके पैदा होते ही जोड़ना शुरू कर देते हैं ….

तभी शुभ्रा और उमेश को संग बैठाया गया… दोनों के दिलों की धड़कन एक दूसरे का स्पर्श पाकर इतनी तेज हो चली थी कि संभालना मुश्किल था… वीना जी ने शुभ्रा को दुपट्टा सर पर रखने को कहा … उन्होने उसके हाथ में 2100 का लिफाफा रख दिया…. आज से शुभ्रा हमारी हुई…. वीना जी ने शुभ्रा की बलायें ली…

बबिता जी ने भुवेश जी की तरफ देखा.. उनकी आंखे ख़ुशी की आंसुओं से धुंधला गयी थी… भुवेशजी ने कांधे पर पड़े अंगोछे से आंसू पोंछ बबिता जी की तरफ देखा… उनके आंसू भी उनकी आँखों से गालों पर आ चुके थे… दूर से ही अपने दोनों हाथों के इशारे से उन्होने भुवेशजी को आश्वासन दिया कि वो खुश हैं…

तभी दादा नारायणजी ने वीनाजी को शुभ्रा को लिफाफा देते हुए देखा तो चुपचाप से बड़े छोरे को इशारा किया कि दिन्नी की दुकान से लिफाफे ले आ… उन्हे इशारा करते हुए नरेशजी ने देख लिया… उन्होने बोला.. नारायणजी… कोई ज़रूरत नहीं हैं लिफाफा मंगवाने की… पैसों को संभालकर रखिये..अभी कई मौके आयेंगे जहां ज़रूरत पड़ेगी इनकी… यह सुन नारायणजी पलंग से उठ आगे आयें… ठीक हैं,, जैसा आप कहे … पर छोरे कूँ देने से मत रोकियो… उन्होने उमेश के हाथों में 1000 रूपये रखे… और दोनों को अपने हाथों को उठा आशीर्वाद दिया… वो भी भावुक हो गए थे… अपनी धोती से आँखों को मलते हुए बोले… एरे भुवेश… अब तो खुश हैं तू …. देख कैसी राम सीता सी जोड़ी लागे हैं लाली और छोरे की…

दादा जी आगे बोले….तैयारी शुरू करो ब्याह की… कोई कमी ना रहे…

बुआ बन्नों भी अपने भाई साहब को खुश देख मुस्कुरा रही थी बोली…. एक बात की सौ बात … जोड़ी तो खूब चोखी हैं बाऊजी…. आज उमेश और शुभ्रा का बेमेल रिश्ता तय हो चुका था… समीर भी अंदर ही अन्दर ही ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था..

पाठकों , उमेश और शुभ्रा का रिश्ता तय हो गया हैं… ज़िसे अच्छी ना लगी हो कहानी उसके लिए कहानी का समापन यहीं होता हैं… और ज़िन्हे सच में कहानी से जुड़ाव महसूस हुआ उनके लिए कुछ दिन का ठहराव लेकर लड़के वाले पार्ट -2 फिर आयेगी दो गुने जोश के साथ.. बुआ जी का चटकारा चलता रहेगा… बहुत कुछ नया होगा….

तब तक के लिए राधे राधे….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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