Moral Stories in Hindi : आज मेरा घर बिल्कुल दुल्हन की तरह सजा हुआ है ,और हो भी क्यों ना ?, मेरी प्यारी दी राम्या की अगले हफ्ते शादी जो है, और क्योंकि मैं उनकी इकलौती छोटी बहन हूं ,तो आप समझ ही सकते हैं -इस शादी में मेरा कितना इंपॉर्टेंट रोल है | सब कुछ मेरे हिसाब से हो रहा है, दीदी के कपड़े, शादी का वेन्यू, संगीत का थीम आदि आदि |
“सौम्या ओ सौम्य” पीछे राहुल खड़ा, ना जाने कब से मुझे आवाज दे रहा था |
कहां खोई हो मैडम, कब से तुम्हें बुला रहा हूं ?
राहुल हमारे पड़ोसी वर्मा जी का इकलौता बेटा ,कहने को तो हम पड़ोसी है पर परिवार से भी बढ़कर |हर सुख दुख में हम दोनों परिवारों ने हमेशा एक दूसरे का साथ दिया है |राम्या दी तो हमसे बड़ी है पर मैं और राहुल तो बिल्कुल एक ही उम्र के हैं, मेरा और राहुल का बचपन एक साथ ही बीता है |लड़ते झगड़ते एक दूसरे को परेशान करते, बचपन की दहलीज को लांघ, अब हम युवावस्था में कदम रख चुके थे |वैसे तो वह मुझे बहुत चिढ़ाता है, हमेशा छेड़ता रहता है, पर जानती हूं प्यार भी बहुत करता है मुझे ,और मैं… हां, मुझे भी बहुत अच्छा लगता है|
अच्छा क्या सोच रही हो मैडम, मार्केट नहीं जाना कपड़े लाने ?
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“नहीं बेटा ,अभी तुम लोग मार्केट नहीं, बल्कि स्टेशन जाओ, राम्या की बुआ आने वाली है ,उन्हें रिसीव करने” तभी मां ने कहा|
मां तुम हमेशा बुआ के बारे में बोलती हो पर मैं आज तक उन्हें नहीं देखा, बस हर साल रक्षाबंधन पर उनकी राखी आ जाती है, ड्राइवर को भेज दो ना उन्हें लाने…
नहीं बेटा तुम्हारे पापा को जरूरी काम से जाना पड़ा वरना वही जाते उन्हें लाने ,पर अब वह नहीं है तो तुम दोनों जाओ|
बुआ तुम्हारे दादाजी की मुंह बोली बहन की बेटी है अब उनके पति नहीं रहे, बस बुआ और उनकी बेटी है |बेटा, उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है |उनके सम्मान में हमसे कोई कमी नहीं होनी चाहिए मैं और पापा उनका बहुत आदर करते हैं और तुम बच्चों से भी यही उम्मीद करते हैं |तुम बुआ का नंबर रख लो ,और तुम्हारा नंबर मैं बुआ को दे दिया है |
अच्छा मां- कहकर मैं और राहुल स्टेशन के लिए चले गए, स्टेशन पहुंचते हे एक फोन आया, बेटा हम स्टेशन के बाहर हैं | थोड़ा आगे बढ़े तो एक महिला ,एक युवती के साथ खड़ी थी |साधारण कपड़े, पर चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास | हमने आगे बढ़कर उनके पैर छुए , बुआ ने प्यार से हमें गले लगा लिया |
बेटा यह मेरी बेटी कशिश |सच में लंबी छरहरी,सांवली-सलोनी, कशिश |
एक ही बार में किसी के दिल दिमाग में घर कर जाए |हम उन्हें लेकर घर आ गए |मां उन्हें देखकर बहुत खुश हुई और पूरे आदर के साथ उन्हें अंदर लेकर आए |
सौम्या बेटा ,बुआ को उनका कमरा दिखाओ ….
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दीदी ,आप लोग फ्रेश हो जाइए तब तक मैं चाय नाश्ता लगाती हूं , कहकर मां रसोई की तरफ चली गई |शाम में संगीत का फंक्शन था, हम सब तैयार होने में बिजी थे, तभी मां ने मुझे 1 खूबसूरत लहंगा देते हुए कहा-
बेटा यह कशिश को दे दो |
मेरी आंखें फटी रह गई,
इतना सुंदर- यह तो मेरे लहंगे से भी ज्यादा सुंदर है मां ,मैं यह पहनूंगी ,मेरा लहंगा कशिश को दे दो….
बिल्कुल नहीं, तुमने अपने कपड़े अपनी पसंद से बनवाए हैं, फिर तुम वही पहनो और यह लहंगा कशिश को देकर आओ ,पापा उसके लिए लाए हैं |
बहुत बुझे मन से वह लहंगा मैं कशिश को देकर आई |
थोड़ी देर में जब हम सब तैयार होकर आए तो, कशिश वाकई बहुत सुंदर लग रही थी ,सबकी प्रशंसात्मक नजरे उसकी तरफ थी | हम सब ने संगीत में अपनी अपनी परफॉर्मेंस देया, सब कशिश से भी डांस करने के लिए कहने लगे पर वह तैयार नहीं हुई, फिर उसने कहा- मुझे डांस तो नहीं आता पर मैं गाना गाऊंगी
“उंगली पकड़ के तूने, चलना सिखाया था ना” गाने के बोल जितने सुंदर थे उसकी गायकी उससे भी सुंदर थी | जब उसका गाना खत्म हुआ, पूरे हॉल में सन्नाटा था ; सब की आंखें नम थी और 2 मिनट बाद पूरा हॉल तालियों की आवाज से गूंज रहा था |हर किसी की जुबान पर बस कशिश का ही नाम था, यहां तक की राहुल भी उसके आगे पीछे घूम रहा था | मेरे अंदर कुछ दरक सा गया |अगले दिन शादी थी- मेरा और दीदी का ब्यूटी पार्लर में अपॉइंटमेंट था |
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बेटा, कशिश को भी तुम लोग अपने साथ ले जाना वह भी पार्लर में तैयार हो जायेगी -मां ने कहा
नहीं मां, हम दो लोगों का ही अपॉइंटमेंट है मैंने चिढ़ते हुए कहा |
तभी बुआ वहां आ गई |
बेटा तुम लोग जाओ, कशिश खुद तैयार हो जाएगी ,वह तो खुद अपना पार्लर चलाती है उसे जरूरत भी नहीं है
अच्छा… वह ब्यूटीशियन है? मैंने मन ही मन सोचा…….
मैं आज बहुत सुंदर दिखना चाहती थी इसलिए मैंने मेकअप आर्टिस्ट से कहा- मुझे बहुत अच्छी तरह तैयार करना |
अच्छी तरह के चक्कर में उसने कुछ ज्यादा ही मेकअप लगा दिया |राहुल हमें लेने आया था, मुझे लगा वह मेरी तारीफ करेगा ,पर वह मुझे देखकर हंसने लगा |
पूरी भूतनी लग रही है- यह क्या किया ?
मैं रुआँसा हो गई .हम घर पहुंचे |
कितनी देर कर दी बेटा ,बारात आती होगी चलो तुम लोग जयमाला की तैयारी करो ….. एक थाली तुम लो, एक कशिश लेगी
कशिश, पर वह है कहां? राहुल ने पूछा
राहुल का उसके बारे में पूछना मुझे अच्छा नहीं लगा |
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मैं यहां हूं- हम सब पीछे पलटे |
सादगी और सौम्यता की मूर्ति ,लाल पीली साड़ी ,लंबे बालों का कंधे पर ढलका हुआ जुड़ा और उसमें लगे फूल..
वह वाकई बहुत सुंदर लग रही थी |
खैर शादी हो गई और धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार भी चले गए |
तभी एक शाम वर्मा अंकल ने हमें डिनर के लिए बुलाया,बुआ भी हमारे साथ थी | तभी वर्मा अंकल ने कहा- बहन जी आपकी बिटिया हमें बहुत पसंद है, हम उसे राहुल की दुल्हन बनाना चाहते हैं |
बुआ अवाक थी ,और मम्मी पापा मुस्कुरा रहे थे |
मैंने राहुल की तरफ देखा |
यह मना क्यों नहीं कर रहा ? पर इसमें तो उसकी भी मर्जी थी- कितना खुश था वह,
नहीं अब और नहीं, बहुत बर्दाश्त कर लिया मैंने
बेटा सौम्या, जाओ कशिश को बुला लो |
मैं अपने घर गई ,कशिश ऊपर सीढ़ियों के पास खड़ी थी | पिछले दरवाजे से मैं ऊपर जाकर उसके पीछे खड़ी हो गई | मैं इधर-उधर देखा कोई आसपास नहीं था, मैंने पीछे से जोर से धक्का दे दिया |
सौम्या…. जोर की आवाज आई ,राहुल मेरे पीछे पीछे कब आ गया मुझे पता ही नहीं चला |यह क्या किया तुमने ? वह दौड़कर कशिश के पास गया, उसके सर से लगातार खून बह रहा था |जल्दी से एंबुलेंस बुलाकर कशिश को अस्पताल ले गए |बुआ , मम्मी- पापा सब वहां आ गए| कशिश के माथे पर खून रोकने के लिए टांके लगाने पड़े , बुआ लगातार रोए जा रही थी और राहुल ,वह मेरा हाथ पकड़ कर खींचता हुआ अकेले में ले गया
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बेवकूफ लड़की क्यों किया तुमने ?
तुम्हारे लिए राहुल, तुम तो मुझे प्यार करते हो ना ,वह तो कशिश बीच में आ गई ,मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं
यह प्यार नहीं है जलन है जलन… प्यार छीनने का नाम नहीं, जो तुम्हारा है ,वह खुद तुम्हारे पास आ जाएगा | हम दोस्त है सौम्या, और अब यह मत कहना -एक लड़का लड़की दोस्त नहीं हो सकते,
जी तो करता है तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूं |
अगर कशिश को कुछ हो जाता तो सोचा है, बेचारी बुआ का क्या हाल होता ?
गुस्से से देखता हुआ वह वहां से चला गया | आज इस घटना को 4 महीने बीत गए राहुल और कशिश की शादी है ,सब चाहते हैं मैं शादी में शामिल होऊं, पर किस मुंह से जाऊं ? आज मैं अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रही हूं |
सौम्या बेटा, देखो कौन आया है ?
मैंने मुड़ कर देखा, कशिश खड़ी थी |
कशिश तुम ? आज तो तुम्हारी शादी है और….
तुम्हें लेने दुल्हन खुद आई है-उसने हंसते हुए कहा | कितनी निश्चल, कितनी मासूम, बिल्कुल बच्चों जैसी हंसी, मैं उससे लिपटकर रो पड़ी ,ना जाने कितनी देर तक मैं रोती रही, और वह मुझे सहलाती रही |
कशिश तुम उस दिन सीढ़ियों से खुद नहीं गिरी ..
हां तुमने मुझे गिरा दिया ,मैंने तुम्हें देख लिया था सौम्या -कशिश ने कहा
फिर भी तुमने किसी को नहीं बताया नहीं ?
क्योंकि हम इंसान है सौम्या
कभी हमारे कुछ पाने की भावना इतनी प्रबल हो जाती है कि, हमें अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता |
तुमने भी जलन में गलत कदम उठा लिया ,पर मैं और राहुल तुम्हें दिल से माफ करते हैं |
क्यों भूतनी तुझे क्या लगता है, तेरे बिना हमारी शादी हो जाएगी ? यह राहुल की आवाज थी
वह कशिश के पीछे खड़ा होकर हमारी बातें सुन रहा था | मैं दोनों के गले लग गई
अब मैं दूसरों की खुशी में खुश होना जान गई थी |
अर्पणा कुमारी- बोकारो स्टील सिटी, झारखंड