Moral Stories in Hindi : अभी तक आप लोगों ने पढ़ा की नरेश जी अपने बड़े भाई साहब और पत्नी, बेटों सहित भुवेश जी के यहां किसी तरह तंग गलियों से होते हुए पहुँच गए जहां वो अपने बड़े बेटे उमेश जो कि फौज में हैं, के लिए लड़की देखने आयें थे… बस अभी किसी तरह टूटे फूटे हिलते डुलते सोफे पर बैठे ही थे कि तभी एक छोटा सा नाक बहाता लड़का दौड़ता हुआ नरेशजी के छोटे बेटे समीर की गोद में आकर बैठ गया… यह क्या ये लड़का तो….
अब आगे. …
यह क्या ये लड़का तो बड़ा फास्ट फॉरवर्ड निकला… समीर की गोद में बैठकर अपनी तोतली भाषा में बोला….आप मेली मौछी के मौछा जी ए ना …. सुन्डल लल ले ए …. इतना सुन चुलबुले स्वभाव का समीर हंस पड़ा … समीर ने उस लड़के के शर्ट में रखा रुमाल निकाल उसकी नाक पोंछी और उसी की भाषा में बोला…. टुमाला नाम क्या ए??
मेला नाम छुभम् (शुभम ) हैं मौछा जी….
अच्छा… कौन छी क्लाछ में पलते ओ??
में ना नलछली में ऊँ ..
तब तक शायद वो उस छुभम का बड़ा भाई था जो उसका हाथ पकड़ सबको प्रणाम कर बाहर ले गया…
सभी लोग चारों तरफ देखने में लगे थे… बैठक में एक काफी पुरानी दो बुजूर्गों की फोटो थी जिस पर धूल खाती माला टंगी थी… एक किनारे पलंग पड़ा था जिस पर मोटा सा मखमली गद्दा पड़ा था शायद इस पर भुवेश जी के पिताजी सोते होंगे.. इस बात का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता था कि पास में ही एक अलमारी में जिस पर अखबार बिछा हुआ था…
उस पर कई सारे चूरन , दवाईय़ां , च्यवनप्राश , चस्मे का डिब्बा एक तांबे का ढका हुआ लोटा रखा था …. पास में ही खूँटी पर उनके सफेद रंग के कुर्ता धोती टंगे थे…. पूरे बैठक में हाथ से बनी हुई कई हस्तशिल्प चीजें टंगी हुई थी ज़िन पर पन्नी चढ़ाकर स्टेपलर किया गया था… आज कल के आधुनिक ज़माने में ये देखना सभी को आश्चर्य में डाल रहा था… तभी इतनी देर से बैठक में छायी चुप्पी भुवेश जी के पिता जी नारायनजी ने तोड़ी …ये जो सारी सजावट हैं मेरी नातिन मेरी लाली शुभ्रा ने की हैं… बड़ी होशियार लड़की हैं.. जिसके घर जायेगी उजाला कर देगी…
मन में उमेश सोचा.. फिर तो लाईट जलाने की ज़रूरत ही नहीं जब लड़की ही इतना उजाला कर देगी तो…
तो लड़की का नाम शुभ्रा था… ज़िसे सब देखने आयें थे… नरेश जी और भाई साहब रमेश जी मन ही मन सोच रहे ऐसी बड़ाईयां तो सभी लड़की वाले करते हैं अपनी बेटी की … इसमें कोई नई बात नहीं … तब तक लड़की के दादा जी ने जोर की आवाज लगायी… अरे कहां गए सब… पानी तो लाओ..
सबको बैठे हुए 15 मिनट हो गए… उनकी दहाड़ भरी आवाज सुनकर रसोई घर से जोर जोर की बरतनों की आवाज आने लगी… कोई शायद काफी देर से नल से पानी भरने में लगा था… तभी घर की दो औरतें घूंघट करें हुई अंदर आयी… हाथ में बड़ी सी थाल में लाया हुआ पानी और मिठाई रखकर चली गयी…
तभी नरेश जी सकुचाते हुए बोले… जी माफ कीजियेगा आप लोग.. पानी समर का हैं… दो दिन से बारिश रुक ही नहीं रही.. पानी वाला मिनरल वाला पानी लाया नहीं… आप लोगों को वहीं पानी पीने की आदत होगी ना … हम सब तो यहीं पानी पीते आयें हैं… अगर ना पिया जायें तो संकोच मत कीजियेगा बता दीजियेगा… बगल वाले भाई साहब के यहां से मंगवा देंगे…
इतना सुन तपाक से नरेशजी बोल पड़े जो पहले ही बाहर समर के ठंडे पानी का आनन्द ले आयें थे… अरे नहीं नहीं… हमने भी बचपन में समर का पानी खूब पीया हैं… बड़ा स्वादिष्ट होता हैं.. उनके मुंह से यह बात सुन समीर और वीना जी ने नरेश जी की तरफ घूरकर देखा.. क्युंकि ये वहीं नरेश जी हैं जो घर में एक दिन भी आरो खराब हो जायें तो बाहर से बिसलेरी की बोतल ले आयेंगे..
मजाल हैं जो नल का पानी पी ले… तभी वीना जी का ध्यान सभी पानी के ग्लासों पर गया… 10 में से सभी ग्लास अलग अलग डिजाइन और आकार के थे…
इस बात से अन्दाजा लगाया जा सकता था कि जिस घर में वो अपने बेटे के लिए लड़की देखने आयें हैं वो बहुत ही मध्यमवर्गीय हैं… क्युंकि ज्यादातर घरों में मेहमानों के आने पर एक ही आकार और डिजाईन के बरतन निकाले ज़ाते हैं… खैर अब आप लोगों को आगे की बताते हैं… समीर और उमेश ने अभी भुवेशजी के भाई साहब के कई बार आग्रह करने पर मिठाई उठाई ही थी कि तभी उमेश के हाथ पर छत से पानी की बूंद टपकी … समीर अपने भाई उमेश का चेहरा देख मुंह दबाकर हंसने लगा और इशारे से हाथ में लगी मिठाई खाने को बोला…
उमेश ने समीर को गुस्से भरी आँखों से देखा तो समीर ने अपनी आंखे नीचे कर ली… तभी दादा जी जोर से चिल्लाये … मेघ आ गए… बाहर से सारे कपड़ा लत्ता उठा ला बबिता … देखना वो दातून और साबुन भी गीला हो गया होगा.. उसे भी उठाकर रख दे… वो बड़बड़ाते जा रहे थे कि मैं ना होऊँ इस घर में तो कोई काम ढंग से ना हो.. सब निकम्मे हैं…
बाहर बारिश तेज हो चली थी… नरेश जी के भाई साहब रमेश जी के मन में तेज बारिश को देख बाहर दूर चौराहे पर खड़ी अपनी चार पहिया गाड़ी की चिंता सता रही थी…
तब तक उनके चेहरे पर भी पानी की दो बूंदे आ गिरी ….. अब तो धीरे धीरे कई जगहों से पानी टपकने लगा… सभी लोग सिकुड़े से बैठे रहे.. तभी भुवेश जी ने कहा – आप सभी लोग इधर पलंग की तरफ आ ज़ाईये … मैं कुरसी मंगवाता हूँ… यहां बैठ ज़ाईये…ये बारिश भी बखत नहीं देखती कभी भी चली आती हैं… आप लोगों को परेशानी हो रही होगी… माफ कीजियेगा…
अरे नहीं नहीं… इसमें परेशानी की कोई बात नहीं .. पुराने घरों में अक्सर ऐसा हो ही जाता हैं.. भाई साहब रमेश जी बोले… तब तक नरेश जी की निगाह दादाजी के पलंग के नीचे रखे थूकदान पर गयी ज़िसे लड़की के ताऊजी ने अपने पैरों से पलंग के नीचे खिस्का दिया था…
क्या पानी से ही पेट भरोगे इनका… चाय नाश्ता कब लाओगे … दादा जो गुस्से में बोले…
बस बस अभी आया पिताजी …
शेष आगे…
इस दिलचस्प कहानी में अंत तक बने रहियेगा… नरेश जी के बेटे उमेश का विवाह इस अजीबो गरीब घर में होगा य़ा नहीं… इसके लिए कल इसी समय इसी पेज पर फिर से आईयेगा… तब तक के लिए बारिश का आनन्द लीजिये…
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा
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