लिली शहर की किशोरी अभी इंटर में
पढ़ती थी।उसकी माँ और पिता के बाल नुचने से बच तो गए लेकिन हार माननी पड़ी उन्हें।
गांव के परिवार जन कहते
” बेटी सत्रह की हुई ..दिखती नहीं ?हाथ पीले करो ।मेरी बेटियों का नंबर आये ये लिली जाय तो।”
लिली रानी गांव से परिचित थी ।परिचय सिर्फ गाछ ,बांस, वन पाखी,पोखर ,कुआं , खेत, मंदिर की मधुर घंटी की आवाज़ से थी।
वहाँ के रीति रिवाज से अनजान।द्विरागमन के समय बेचारी लिली अक्क-बक्क थी।रोने की घड़ी में हज़ार सीख…कुछ याद रहा कुछ वहीं छूट गया।
रिवाज़ के तहत ससुराल पहुंच उसे लोग लाख कहे खाना नहीं खाना था..ननद रूपा गुड़ वाली खीर लाई ,मनुहार किया बार बार लगातार ..नैहर की सीख भूली लिली रानी गप्प गप्प खीर उड़ाया..
रूपा ने नथिया को उपर किया ताकि खीर अच्छी तरह खाई जाय।दुष्ट रूपा खी – खी कर
हँस कर भागी…” भाभी ये तो जांच थी कि तू पेटू तो नहीं”
लिलि के साथ पियर्स,टाटा शैम्पू, वाशिंग पावडर ,लैक्मे का पूरा सेट ..ये भी वो भी …ढेर सामान आया था।ननद रूपा के लिए सब कुछ प्रथम सामने आया था। डला सर्फ पानी मे नीला लगा तो डर गई..” अम्मा कोई कपडे इससे नहीं धोओ.. नीला रंग चढ़ेगा”
कहते है कि एक बालिका ससुराल की धरती पर पैर रखते ही परिपक्व हो जाती है।लिली
ने देखा रूपा का अपने लिए प्यार ..कदम कदम पर लिली की गलतियों को अपने ऊपर ओढ़ लेती।ननद लगभग निरक्षर थी।
लिली और रूपा महीना बीतते न बीतते सखी बन गई।भाईयों के बीच एक बेटी लेकिन खान पान ,पढ़ाई लिखाई, बातचीत उसे कहाँ स्वतंत्रता थी ।भाईयों के बाद ही बचा खाना नसीब ।कई बातें अब लिली को बताती ..पढ़ी नहीं थी लेकिन संवेदनाओं की बाढ़ में इसकी जरूरत नहीं पड़ती।कई बार चोरी से खाती थी वह ..बचे न बचे ।
लिली को कहती ” माँ को नहीं बताना भाभी”
लिली की आंखे भर आतीं।उसने ऐसी बात कभी कहीं देखी नहीं थी।किताबें पढ़ती हुई लिली देखती …उस पर छपे चित्र को रूपा कैसी जिज्ञासा से देखती थी।
रूपा को पढ़ाने का प्रण लिया लिली ने।वह अक्षर ज्ञान से आरम्भ होकर धाराप्रवाह पढ़ना भी दो महीने भीतर सीख गई।
रूपा ने भाभी को वह सब सिखाया जो वह देहात के अनुकूल जानती नहीं थी।
सास की अनुभवी आँखे देख और परख रही थी ननद भाभी के रिश्ते की प्रगाढ़ता को।
मन ही मन कहती” ऐसी बहु मिली जिसने रूपा को सयानी बना दिया”।लड़के वाले देखने आए।रूपा के सलीके, रूप और उत्तर से प्रसन्न होकर रिश्ता भी तय किया।
भाईयों ने कहा ” रूपा तुम तो बड़ी सयानी हो गई रे”।
लजा कर उसने कहा ” नहीं भैया सयानी तो भाभी हैं जिसने मुझ अनगढ़ को सुगढ़ सयानी बनाया।”
लिली और रूपा गले लग गईं
……….
मीना दत्ता