Moral Stories in Hindi : महेश जी जब इस शहर आये, अक्सर उदास रहते थे, परिवार बाद में आया क्योंकि बच्चों की पढ़ाई का सत्र पूरा कराना था।बैंक की नौकरी होने से, उनका जल्दी -जल्दी ट्रांसफर होता था, पिछले शहर में उनका मन अच्छे से लग गया था। तभी इस शहर में ट्रांसफर हो गया।
महेश जी किसी की भी परेशानी नहीं देख पाते, आगे बढ़ कर मदद करते।उनकी इस आदत का बहुत लोग फायदा उठाते।
उनकी सह्रदयता की वजह से बहुत लोग उनके अच्छे दोस्त बने तो बहुत लोग सिर्फ मतलब साधने के लिये स्वार्थी दोस्त बने…।
ऐसे ही एक दोस्त रतन जी बने., जिन्होंने महेश जी को तीखा सबक दिया..। रतन जी की बेटी की शादी तय होते ही, वे महेश जी को बोले, “सब आपको ही संभालना है, आखिर बेटी आपकी भी भतीजी है…”।
“हाँ, ये भी कोई कहने की बात है,”इतना सम्मान पा महेश जी गदगद होते हुये बोले।
“अरे महेश जी, जरा देखिये, अभी तक यहाँ नाश्ता सर्व नहीं हुआ ” रतन की आवाज सुन,दोस्तों से घिरे महेश जी तुरंत उठ खड़े हुये और हलवाई के पास चल दिये।
“महेश जी बारात जनवासे से निकली की नहीं “महेश जी तुरंत जनवासे देखने पहुंच गये।
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“महेश जी, जयमाल का कार्यक्रम शुरु हो रहा पर फूलों की माला अभी तक नहीं आई,” रतन जी की बात सुन नाश्ता कर रहे महेश जी ने बिना खाये तुरंत प्लेट रख दी,सजावट करने वाले के पास फूलों की माला लाने चले गये।
माला ले कर आ रहे थे, तभी उन्हें रतन की आवाज सुनाई दी जो किसी से कह रहे थे -“अरे यार वो तो इमोशनल फूल हैं, जरा सा भावुक हो कुछ बोल दो तुरंत मदद करने को तैयार हो जाता, इसीलिये तो मैंने माही की शादी तय होते ही महेश से मदद मांग ली।
” बंदा वेन्यू ढूढ़ने भी हमारे साथ गया तो अपनी कार में लेकर गया… सोचो ड्राइविंग के तनाव और पेट्रोल के खर्चे में कितनी बचत हुई,यही नहीं रोज शाम दो महीने तक शादी की हर छोटी -बड़ी तैयारी में लगा रहा..मै शॉपिंग कर रहा था और महेश, हलवाई, सजावट वाले के संग माथा पच्ची कर रहा था।
अब मै तो आराम से घूम रहा मेहमानों का स्वागत कर रहा हूँ और कामों की देख -रेख महेश कर रहा, हैं ना अकलमंदी का काम, सबके सामने महेश की थोड़ी तारीफ कर देता हूँ, तो बंदा खुश हो जाता हैं,मुझे काम वाले इंसान की जरूरत उसे तारीफ की तो…सौदा बुरा नहीं हैं .”…रतन के इतना कहते ही दोनों की सम्मिलित हँसी गूंज उठी, तभी रतन जी की निगाह, बुत बने महेश पर पड़ी।
रतन जी घबरा गये, कहीं हमारी बात महेश ने सुन तो नहीं ली। महेश ने माला रतन की ओर बढ़ाते कहा -“मान गये दोस्त, आप बेहद अकल वाले हो, पर जो जज्बातों वाले होते हैं, वो भी बेवकूफ नहीं होते, और दोस्ती जब स्वार्थ पर टिकी हो तो आगे नहीं बढ़ती। आज मै आपकी पूरी सहायता करूँगा क्योंकि ये मेरा निर्णय था कि लड़की की शादी में कोई मदद मांगेगा तो मै पीछे नहीं हटूँगा, हाँ कल माही के विदा होते ही, हमारी -आपकी दोस्ती खत्म..।”
रतन जी हकलाते बोले -“अरे यार कैसी बात करते हो, हम -तुम कितने गहरे दोस्त हैं मै दीपक को यही बता रहा था।”
पर महेश जी रतन की बात अनसुनी कर आगे बढ़ गये।अब महेश जी ने नोटिस किया सिर्फ रतन ही नहीं, उनका बेटा और बड़ा दामाद भी उनको कई काम जो वो खुद कर सकते थे,”चाचा जी आप ही कर सकते हैं, हम तो अभी अनुभवहीन हैं,” कह उनको सौंप देते थे।
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महेश जी अपनी इंपोर्टन्स देख गदगद थे। सुनंदा कई बार समझाती “ये भावुकता छोड़ दो, इन मतलबी रिश्तों का कोई कीमत नहीं है,लोग आपकी भावनाओं का फायदा उठा रहे” पर महेश जी को लगता सुनंदा स्त्री सुलभ भावनाओं के चलते ऐसा कह रही। अब आज सच्चाई सामने आ गया। दोस्ती की आड़ में आदमी इतना मतलबी हो सकता ये महेश जी ने कभी नहीं सोचा।
फेरों के लिये जब माही उठी, महेश जी शादी के पंडाल से बाहर निकल आये, अब उनकी जरूरत खत्म हो गई, अब वो घर जा सकते हैं। बाहर निकलते ही अनायास ऑंखें भर आई।
पिछले कुछ महीने से शादी की तैयारी में कहीं माही से लगाव हो गया था। शायद माही उनकी कमी महसूस करें… बाहर निकलते पैर थम गये। तभी रतन जी की हँसी की गूंज कानों में उभर आई। ना अब अपनी भावनाओं को अपनी कमजोरी नहीं बनने देंगे।ना ही भावनाओं के जाल में उलझेंगे….,सधे और मजबूत क़दमों से महेश जी उस घेरे से वापस निकल आये, जहाँ उन्हें असीम पीड़ा मिली।
इस धोखे ने महेश जी का जीवन के प्रति नजरिया बदल दिया। मदद मांगने पर मदद करते हैं पर उतना ही जितनी उनकी सहूलियत हो।
दोस्तों, कई दोस्त, दोस्ती की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहते, ऐसे मतलबी लोगों, जो स्वार्थ की वजह से रिश्ते बनाते है,हमें बचना चाहिए…।जो हमारी सदभावना से अपना मतलब सिद्ध करते हैं..।
… संगीता त्रिपाठी
#मतलबी रिश्ते