Moral Stories in Hindi : उत्तर प्रदेश का एक सुंदर गांव माधोपुर। चारों तरफ हरियाली खेत खलिहान, शुद्ध हवा पानी और गांव के लोगों का प्रकृति से प्रेम, प्रकृति से जुड़े रहना, यही सब मन को मोह लेता है।
माधोपुर के लोगों का जीवन बड़ा शांतिपूर्ण था। हालांकि अब वहां के जीवन में मोबाइल प्रवेश कर चुका था और वहां के पुरुष अब बड़े शहरों में काम के सिलसिले में आने-जाने लगे थे। शहर का वातावरण उन्हें लुभाने लगा था।
इसी गांव में सोहन का परिवार भी रहता था। सोहन खेती करता था और उसका चार व्यक्तियों का परिवार, उसकी पत्नी, उसका 16 वर्षीय पुत्र अरविंद, 6 वर्षीय पुत्री पल्लवी आराम से पल रहा था। हां याद आया, उसके घर में एक प्यारा सा, मगर शरीर से मजबूत और बलवान कुत्ता भी था, उसका नाम बहादुर था। बहादुर घर में सबसे प्यार करता था,सबका ध्यान रखता था लेकिन सबसे ज्यादा वह पल्लवी का ध्यान रखता था और उसे बहुत प्यार करता था।
एक बार अरविंद के दोस्त किसी काम से शहर गए। वहां का स्वच्छंद वातावरण, सबके हाथों में मोबाइल, फैशनेबल कपड़े, तरह-तरह की खान की चीजें और और आलीशान होटल देखकर बौरा गए। वापस आकर अरविंद को सब कुछ बताया तो उसकी भी शहर जाने की इच्छा सिर चढ़कर बोलने लगी।
अगली बार अपने माता-पिता से पूछ कर वह भी अपने दोस्तों के साथ शहर घूमने गया और वापस आकर अपने पिता से मोबाइल की मांग करने लगा।
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सोहन ने उसे समझाया-“बेटा, मैं मानता हूं कि मोबाइल काम की चीज है और गांव में कुछ लोगों के पास है, और अभी तुम्हें फसल काटने तक इंतजार करना होगा क्योंकि मेरे पास अभी रूपयों का इंतजाम नहीं है।”
अरविंद मन मसोस कर रह गया। अरविंद का एक पक्का दोस्त था धर्मेंद्र। धर्मेंद्र के चाचा का लड़का सोनू शहर से आया था। उसने धर्मेंद्र और अरविंद को मोबाइल में बहुत कुछ दिखाया और उन्होंने मिलकर वह सब देखा जो, देखने की उनकी उम्र नहीं थी। सोनू ने उनसे कहा-“शहर में बहुत मजा है और पैसा भी है। तुम यहां गांव में क्यों पड़े हो।
मेरे साथ शहर चलो, मैं काम भी दिलवा दूंगा। धर्मेंद्र और अरविंद दोनों नासमझ, कच्ची उम्र के लड़के उसकी बातों से प्रभावित हो रहे थे। सोनू ने उन्हें सिगरेट पीने के लिए दी। पहले दोनों ने मना किया परंतु बाद में ले ली। असल में वह साधारण सिगरेट नहीं थी, वह ड्रग्स थी। दोनों उसे पीकर हवा में उड़ने लगे, उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। सोनू सप्ताह भर उन्हें सिगरेट देता रहा। अब धर्मेंद्र और अरविंद को जब सिगरेट नहीं मिलती थी तो वह बेचैन हो जाते थे। सोनू उन्हें सिगरेट की लत लगाकर, शहर वापस जा चुका था। अब दोनों नशे के बिना परेशान थे।
धर्मेंद्र ने अपने पालतू पशुओं में से चुपचाप किसी को एक बकरी बेच दी और शहर घूमने के बहाने नशे का सामान ले आया। धीरे-धीरे वह भी खत्म हो गया। अब धर्मेंद्र ने अरविंद से कहा-“अबकी बार पैसों का इंतजाम तुम करो क्योंकि मुझे लग रहा है कि घरवालों को मुझ पर शक हो रहा है। मां, कल कह रही थी कि तेरी सूरत कैसी होती जा रही है। इतना सोता है कि आंखें किसी नशेड़ी की तरह लगने लगी है। अरविंद, ऐसा ना हो कि हम पकड़े जाएं।”
अरविंद के यहां तो सिर्फ एक कुत्ता था। कुत्ते बहादुर को तो वह बेच नहीं सकता था और ना ही उसकी मां के पास कोई गहने थे। वह सोच में डूबा था कि क्या बेचकर पैसों का जुगाड़ करें। एक दिन अचानक उसे सोनू द्वारा मोबाइल में दिखाई गई एक फिल्म का सीन याद आया, जिसमें मामा अपनी भांजी को बेचकर रुपया कमाता है।
नशे के आदी हो चुके अरविंद ने अपनी मां से कहा-“मां, मैं पल्लवी को शहर में मेला दिखाने ले जाऊं, खुश हो जाएगी।”
मां -“नहीं नहीं, वह अभी बहुत छोटी है, उसे इतनी दूर ले जाना ठीक नहीं, तुम पहले अपना ध्यान रखना तो सीख लो।”
थोड़े दिनों बाद रक्षाबंधन का त्योहार आया। पल्लवी ने अरविंद को राखी बांधी। तब बहादुर भी पास बैठकर ध्यान से देख रहा था। पल्लवी ने हंसकर कहा-“मां इसे देखो, कितने ध्यान से देख रहा है। बहादुर, तू भी राखी बंधवाएगा क्या?”
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और सचमुच बहादुर ने अपना एक पैर, हाथ की तरह पल्लवी के सामने कर दिया और पल्लवी ने उसे राखी बांध दी। मौका देखकर अरविंद ने पल्लवी से कहा-“पल्लू, मेरी प्यारी बहना, शहर चलेगी मेला देखने।”
पल्लवी तो बहुत खुश हो गई। माता-पिता ने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा -“जब भी जाना होगा, चारों साथ-साथ चलेंगे।”
लेकिन पल्लवी रोने लगी कि आज ही जाना है। माता-पिता को जाने की इजाजत देनी पड़ी।
अरविंद, पल्लवी को लेकर शहर की तरफ चल दिया और चुपचाप पीछे-पीछे बहादुर भी चल पड़ा।
खेतों से गुजरते हुए अचानक उन दोनों के सामने एक गुलदार आकर खड़ा हो गया। अरविंद की तो सिटटी पिटटी गुम हो गई। उसे पता नहीं था कि बहादुर पीछे-पीछे आ रहा है। गुलदार ने अरविंद पर हमला कर दिया। पल्लवी यह देखकर बहुत डर गई थी और झाड़ियों में छुप गई थी, डर के मारे वह रो रही थी।
बहादुर ने गुलदार से खूब लड़ाई की पर गुलदार ने अरविंद को बुरी तरह घायल करके मार दिया था और वह अब पल्लवी की तरफ बढ़ रहा था।
बहादुर ने अपनी जान की परवाह किए बिना गुलदार पर वार पर वार किए और साथ-साथ जोर-जोर से भोंकता भी रहा। उसने गुलदार को बुरी तरह घायल कर दिया था और स्वयं भी घायल हो गया था। आखिर कर उसने गुलदार को भागने पर मजबूर कर दिया। उसकी लगातार भौंकने की आवाज सुनकर बहुत से लोग वहां आ गए थे।
पल्लवी घायल बहादुर के पास आकर बैठ गई थी। घायल बहादुर का सिर उसकी गोद में था और वह उसे प्यार से सहला रही थी। बहादुर ने वहीं दम तोड़ दिया। एक भाई ने अपनी बहन की रक्षा करते हुए जान गवां दी थी। बहादुर सच में बहुत बहादुर था। उसने एक अनोखे रिश्ते की मिसाल कायम की थी।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली