माँ या बदनुमा धब्बा – वीणा सिंह  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

भीखू ईंट भट्ठा के चिमनी पर दिहाड़ी मजदूरी करता था. पत्नी दुलारी दो बेटी शीला और संजू एक बेटा संतोष पांच लोगों का परिवार.. दुलारी घर घर बर्तन साफ करने और झाड़ू पोंछा का काम करती थी.. शीला ग्यारह साल की थी और संजू सात साल की संतोष चार साल का..
हमारे घर काम करने आती तो साथ में अक्सर शीला को लाती.. छोटे छोटे हाथों से शीला इतने करीने से काम करते देख मम्मी कहती कॉलेज में चली गई पर अभी तक इतनी लापरवाह है… मम्मी शीला को पढ़ाने के लिए दुलारी को हमेशा बोलती समझाती पर दुलारी हंस के टाल देती.. मम्मी हार कर शीला को कुछ कुछ पढ़ाती घर में हीं..
मैं हॉस्टल चली गई आगे की पढ़ाई के लिए..
मम्मी ने फोन पर बताया शर्मा जी के साले और सरहज उड़ीसा से आए थे पांच हजार महीना और दस हजार एडवांस दुलारी को देकर शीला को अपना बच्चा संभालने के लिए ले गए हैं.. बड़बिल में आयरन ओर का काम है..माइंस है आयरन का..खूब पैसे वाले हैं..दुलारी बोल रही थी बहुत अच्छे लोग हैं शीला को पढ़ाएंगे भी..
मम्मी बहुत गुस्सा हुई पैसे के लिए मासूम बच्ची को इतनी दूर भेज दिया.. मुझे भी शीला का मासूम चेहरा घुंघराले बाल गोल गोल बटन जैसी आंखें और निश्चल हंसी आंख के उपर कटे का गहरा निशान जो बचपन में गिरने से हो गया था आंखों के सामने घूमने लगा.. दुलारी अब पहले वाली दुलारी नही रही.. मम्मी जब तब शीला के लिए टोक देती.., कहती दुलारी तुम मां के नाम पर #धब्बा #हो..उसने काम करना हीं छोड़ दिया मम्मी का..
अब दुलारी एक छोटा सा दुकान खोल ली थी जिसमे श्रृंगार सामग्री रखने लगी थी.. रहन सहन का स्तर बदल गया था. संतोष प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहा था.. संजू सरकारी स्कूल में..
दुलारी अब बदल बदल कर रंग बिरंगी सिंथेटिक साड़ियां पहनती.. ब्यूटी पार्लर जाने लगी थी..
भिखु अक्सर दुलारी से शीला को बुलाने के लिए कहता क्योंकि शीला को गए तीन साल हो गए थे पर नोट की गर्मी से मदहोश दुलारी टाल देती.. शीला मजे में है.. भीखू पहले तो लड़ाई झगडे गाली गलौज किया अपनी बेटी के लिए दुलारी से .. दुलारी शर्मा जी से कहकर एक महीने के लिए जेल में डलवा दिया.. पीकर हल्ला गुल्ला और मारपीट करने के आरोप में..
दुःखी भिखू जो कमाता पीने में खर्च कर देता..
भीखु का फेफड़ा और लिवर दोनो खराब हो गया था.. उचित समय पर इलाज नहीं मिलने से चल बसा.. दुलारी और स्वंतत्र हो गई..
शादी के बाद वो शहर छूट गया पर फोन से खबर मिलता रहा.. मम्मी बताती शीला विदेश चली गई है उन लोगों के साथ.. दुलारी का घर बन गया है ढलाई वाला..

भरतपुर में मेरी बचपन की सहेली मीनल बहुत बड़ी सोसल वर्कर है, कई एनजीओ और सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी है.. कितने दिन से बुला रही है.. सोचा इस बार चली जाती हूं थोड़ा चेंज भी हो जाएगा और मीनल भी खुश हो जायेगी..
चार दिन खूब मस्ती किए हम दोनों.. जैसे बचपन वापस आ गया हो.. बर्फ के गोले काला खट्टा हवा मिठाई जिसे कई जगह बुढ़िया के बाल कहते हैं खाया..
मेरी इच्छा थी कुछ संस्थाओं को करीब से देखूं जहां समाज के शोषण की शिकार महिलाएं लड़कियां रहती हैं.
मीनल मुझे एक संस्था में ले गई जहां बेबस लाचार और समाज में सतायी और शोषित लड़कियों और महिलाओं को रखा जाता है..
दो घंटे कैसे बीत गए पता हीं नहीं चला मन बहुत बोझिल और ब्यथित था.. निकलते समय अचानक छींटदार सलवार कमीज में एक चौबीस पच्चीस साल की लड़की जो अपने उम्र से ज्यादा की लग रही थी, अंदर आ रही थी.. चार कदम आगे जाकर मुझे लगा चेहरा देखा हुआ है.. मैं मीनल का हाथ पकड़े खींचते हुए वापस अंदर गई.. उसको गौर से देखा.. आंखों के उपर कटे का निशान देख मैं अचानक बोल पड़ी शीला… वो भी मुझे आश्चर्य से देखने लगी..
शीला ने आपबीती सुनाई.. मां ने साहब के साथ मुझे भेज दिया.. मालकिन घर का पूरा काम करवाती बच्चे भी देखती फिर भी कभी अच्छे से नही बोलती.. साहब से शिकायत करती तो साहब कहते हरामी की औलाद तेरी मां इतने पैसे लेती है मुफ्त का.. बेल्ट से मारते मैं बेदम हो जाती.. एक दिन मालकिन बच्चों के स्कूल गई थी, साहब अचानक से आ गए और कहा तुम मेरा बात मानोगी तो तुम्हे नही मारूंगा.. और साहब ने मेरे रोने चिल्लाने की कोई परवा नहीं की और मेरे साथ जबरदस्ती किया.. मैं बेहोश हो गई.. लैंड लाइन फोन था पर बात नही कर सकती थी क्योंकि मां के पास फोन नही था..
एक दिन मालकिन को शक हो गया और उन्होंने गरम चिमटे से मुझे जगह जगह दाग दिया.. ओह असहनीय पीड़ा से मैं कराह उठी..
अब साहब और मालकिन में झगड़ा होता और मुझे सजा भोगना पड़ता.. धीरे धीरे साहब मुझे अपने दोस्तों के पास भेजना शुरू कर दिया..
दस साल तक मैं ये यातना सहती रही.. साहब पैसे से मां का मुंह बंद कर दिए थे.. मेरी मां मां के नाम पर बदनुमा #धब्बा #थी..
अपनी कोख जाई की जिंदगी को #धब्बों #से भर दिया था..
एक रात मैं ट्रेन के नीचे जान देने जा रही थी तभी इक भलेमानस ने मेरा हाथ जोड़ से पकड़ कर खींच लिया.. और मुझे यहां ले आया.. तब से यहीं हूं.. पुलिस ने मुझसे बहुत कोशिश की पिछली बातें जानने की पर मैं चुप रही.. मैं बाकी जिंदगी यहीं गुमनाम होकर रहना चाहती हूं.. राधा नाम है मेरा..
उसने हाथ जोड़कर विनती की दीदी… मैने उसे आश्वस्त किया तुम निश्चिन्त होकर रह.. सर पर हाथ रखा अपना फोन नंबर दिया और रोते हुए वापस मीनल के साथ आ गई…चार दिन की खुशी मस्ती सब काफुर हो गई,..
मां अपने हीं बच्चे के लिए कभी# धब्बा #बन सकती हैऔर ममता# धब्बा #का रूप धारण कर सकती है ये सोचने पर विवश कर दिया..
#धब्बा लगना
# स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
Veena singh

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