मेरी कोठी मेरा अरमान” -रवीद्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : कई बरस पहले मैं एक प्रभावशाली राजनैतिक मित्र के पास बैठा था। उसी समय उनके पास एक पैंतीस साल का एक युवक आया। उसने अपना परिचय दिया कि मैं आप के मित्र सिंगला साहब का बेटा हूँ। मंत्री जी ने उसे यथोचित सम्मान दिया और आने का कारण पूछा। उस नौजवान ने उदासी से बताया “अंकल आप को मेरी एक सहायता करनी पड़ेगी।

मेरे पापा ने मुझे और मेरी बीवी को घर से निकाल दिया है। मेरा सामान भी घर से बाहर रखवा दिया है। मैंने लाख मिन्नत की मगर वे मुझे घर में लेने को तैयार नहीं हैं। उन्होने थाने में भी सूचन दे दी है कि मेरा बेटा जबर्दस्ती घर में घुसने का प्रयास करे तो कार्यवाही की जाय। अखबार में भी निकलवा दिया है कि मेरे बेटे से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है।”

मंत्री जी ने कहा “भाई, तुम्हारे पिता मेरे मित्र ही नहीं बल्कि मेरे आदर्श हैं। इस में मैं क्या कर सकता हूँ। मैं उन से इस बारे में बात नहीं कर सकता।”

तब आगंतुक कहने लगे “सर ये सारी कार्यवाही मेरे खिलाफ है। मेरी पत्नी के विरुद्ध तो नहीं। एक बार आप पापा से सिफ़ारिश करके उनकी सेवा करने के नाम पर मेरी पत्नी को घर में प्रवेश दिलवा दीजिये। इस बहाने सड़क पर पड़ा मेरा सामान अंदर चला जाएगा। फिर दो चार दिन में मैं भी …..।”

खैर, उस दिन उनकी कोई सहायता नहीं हो पायी और बाद में पिता पुत्र की दूरियाँ इतनी बढ़ गईं कि बेटा पिता की अंथ्येष्टी में भी शामिल नहीं हुआ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

घर वापसी – डॉ हरदीप कौर : Moral Stories in Hindi




दूसरी घटना सुनिए।

मेरे एक मित्र के घर मेरे पहुँचने से पहले ही एक बुजुर्ग बैठे हुए थे। एकदम उदास। बात चली तो उन्होने बताया कि पोते पोती की बहुत याद आती है।

मैंने सहानुभूतिवश पूछा कि क्या आप के पोते पोती किसी दूसरे शहर में रहते हैं तो वे रोने लगे। कई मिनट के बाद उनकी हिचकियाँ बंद हुई। फिर उन्होने बताया।

“भैया, मैंने अपनी छोटी सी सरकारी नौकरी से अपना और बच्चों का पेट काट काटकर कोठी बनाई। अब मैं रिटायर हो गया हूँ। मेरा एक ही बेटा है। हमारा झगड़ा ड्रौइंग रूम का था। मेरा बेटा व्यापारी है और व्यापारियों का नेता भी है। उसका कहना था कि पापा मेरे बहुत दोस्त और मिलने वाले आते हैं। इसलिए आप घर का पीछे वाला हिस्सा ले लीजिये। वहाँ भी सारी सुविधा हैं। ड्रौइंग रूम वाला भाग मुझे दे दीजिये। बस यहीं मुझे गुस्सा आ गया। मेरे अहं को बहुत ठेस लगी। मकान मैंने बनाया और चौईस तेरी चलेगी। और मैंने एक दिन पूरे क्रोध में कह दिया कि घर मेरा है। मेरी जिंदगी भर की मेहनत का नतीजा है। तुझे पसंद नहीं तो अपनी व्यवस्था कर ले।

बस उसी दिन रात को दस बजे मेरा बेटा अपने बच्चों को लेकर घर से निकल गया। पहले दो चार दिन ससुराल में रहा और अब अलग फ्लैट लेकर रहता है। मुझ से बात भी नहीं करता।”

मैं कहना चाहता था कि आप ने एक ओर बेटे बहू और पोते और दूसरी ओर कोठी में से कोठी को चुना तो अब रोना कैसा।

अब तीसरी घटना सुनिए। शादी के दो साल बाद लड़का अचानक रोड एक्सीडेंट का शिकार होकर दुनिया से चला गया। तब तक उनको कोई बच्चा भी नहीं हुआ था।

पति के देहांत के तेरह दिन के बाद लड़की अपने माइके में जाती थी। ये उनके यहाँ रिवाज था।



जब बहू माइके जा रही थी तो सास ससुर बड़ा ही सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करते हुए उसका अधिक से अधिक सामान, कपड़े वगहरा अटेचियों में रखवा रहे थे।

इस कहानी को भी पढ़ें

‘ बुरा वक्त ‘ – विभा गुप्ता

दो दिन बाद बहू लौटकर आई तो बाहर कोठी के गेट का ताला लगा हुआ था। पड़ौसियों ने बताया कि ये लोग बाहर गए हैं और आप के लिए कह गए हैं कि जब हमारा बेटा ही नहीं रहा तो तुम्हारा इस घर में कोई काम नहीं है। अब तुम्हारा हम से कोई संबंध नहीं। जहां मर्जी आए जाओ।

चौथी घटना और भी मजेदार है। 82 साल के अनेक बीमारियों से ग्रसित रिटायर बैंक मैनेजर साहब और उनकी पत्नी बेटे बहू से झगड़ा करके घर से निकल गए और अपनी बेटी के यहाँ चले गए। मैनेजर साहब को पेंशन से लगभग पचास हजार रुपये महीने की आमदन्नी होती है। इकलौते बेटे से बहुत प्यार करते हैं मगर बारह साल पहले घर में आई बहू उन्हे पसंद नहीं।

अब पूर्व मैनेजर साहब ने पुलिस में एफ आई आर दर्ज कराई है कि मेरे बेटे ने मेरी कोठी पर कब्जा कर लियी है। उसे तुरंत बेदखल करके मेरी कोठी वापस दिलाया जाय।

मैं कोई निर्णायक नहीं हूँ। सम्बन्धों का विश्लेषक भी नहीं हूँ कि गलती किसकी है इसका पता लगा सकूँ किन्तु रिश्तों पर पैसा, संपत्ति और “कोठी” का हावी हो जाना …। “कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ के।”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!