Moral stories in hindi : रात के डेढ़ बजे, मेरी नींद फोन की घंटी से खुल गई। फोन लगातार बज रहा था, मैं उठ गई पर थकान से आंखें खुल नहीं रही थी, सच में आज का दिन बहुत ज्यादा व्यस्तता भरा रहा। मैं पेशे से डॉक्टर हूं, इसलिए मेरे लिए दिन-रात, सब बराबर है। कोई 10 से 5, ऑफिस वाली ड्यूटी तो है नहीं, इसलिए, इतनी रात गए फोन आना, मेरे लिए बहुत नॉर्मल था, । मैंने फोन उठाया,
दूसरी तरफ जूनियर डॉक्टर, अरुणति थी। मैडम, जल्दी आइए, एक आत्महत्या का केस आया है, बच्ची ने छत से कूद कर जान देने की कोशिश की है, अंदरूनी चोट आई है, ब्लीडिंग रुक नहीं रही। मैंने जरूरी निर्देश देकर, ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहा, और जल्दी से ड्रेस चेंज करने चली गई। अस्पताल पहुँची तो बच्ची के माता-पिता के साथ पुलिस भी मौजूद थी।
मैडम, आप बच्ची का हालत देख कर बताएं, क्या हम लोग इसका ब्यान ले सकते हैं?
ज़रूर, ये कह कर मैं आगे बढ़ गयी।
15-16 साल की मासूम, ऐसा क्या हो गया, जो इतना बड़ा कदम उठाया, खैर मैं बच्ची के इलाज में लग गई। मल्टीपल फ्रैक्चर और इंटरनल ब्लीडिंग, हमारी पूरी टीम कोशिश में लगी थी । काफी देर बाद मैं बाहर आयी, पुलिस भी वही थी। मैंने उनसे कहा, “हमने बच्ची का इलाज शुरू कर दिया है, लेकिन बच्ची की हालत बहुत खराब है, आप बयान नहीं ले सकते, जब उसकी हालत स्थिर होगी, मैं खुद आपको फोन कर दूंगी।’
ज़रूर मैम, वो पुलिस वाला बोलता हुआ, बच्ची के माता-पिता के तरफ मुड़ गया।
आप तो माँ-बाप हैं, आपको ज़रूर कुछ पता होगा, कृपया बताएं, मैं उन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाऊंगा, जिनकी वजह से इतना ख़तरनाक कदम उठाया है, क्या किसी लड़के आदि का चक्कर है?”
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बच्ची के माता-पिता, बदहवास रोये जा रहे थे अब मैंने उन्हें ध्यान से देखा, पहनावे से निम्न-मध्यवर्गीय लोग लग रहे थे। मैं उनके पास गई और सांत्वना भरा हाथ उनके कंधे पे रखा। बच्ची की मां, मेरे पैरों पर गिर गई, “प्लीज डॉक्टर मैडम, मेरे बच्ची को बचा लीजिए, हमारी इकलौती संतान है हमारी लाडली”।
बहुत मन्नत, पूजा-पाठ के बाद, हमारी शादी के 12 साल बाद हमें ये संतान सुख मिला,
कहकर वो फिर बिलखने लगे.
महाशय, मुझे नहीं लगता, ये लोग कुछ और बताने के लिए तैयार हैं, आप कृपया कल आयें।
पुलिस चली गई तो मैंने उनको अपने घर जाने को कहा, बहुत मुश्किल से वो राजी हुए। मुझे घर आते- आते सुबह हो गई। मैं भी सोने चली गई, पर बच्ची का चेहरा आंखो के आगे से हट नहीं रहा था। उसके साथ कुछ गलत नहीं हुआ था, ये तो पक्का था, फिर ये क्यों?
मुझे ये सवाल बहुत परेशान कर रहा था। अगले दिन जब मैं हॉस्पिटल गई तो बच्ची की हालत में काफी सुधार था, उसके माता-पिता पहले से वहां मौजूद थे। मुझे देखते ही दोनों दौड़ते हुए आये, “डॉक्टर मैडम, हमारी बिटिया कैसी है?”
पहले से ठीक है, आप मेरे केबिन में आये, मैंने उनसे कहा ।
वो मेरे सामने बैठे थे, मैंने उनसे वही सवाल पूछा, जो कल से मुझे परेशान कर रहा था। कृपया बताएं, इतनी छोटी सी बच्ची और इतना बड़ा कदम? कौन है वो लोग, जिनके कारण इसकी ये हालत हुई हैं? क्या आप उन्हें सजा नहीं दिलवाना चाहते?
दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
मैडम जी, हम ही हैं वो लोग जिसने अपनी बिटिया को इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर किया।
आप दोनों? पर क्यों, कैसे, मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न थी।
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हमलोग बहुत साधारण लोग हैं मैडम, हमने तो अपनी जिंदगी जैसे तैसे गुजार दी, हमारे अरमान थे, हमारी बिटिया, अपनी जिंदगी में बहुत सफल हो, हमारा नाम रौशन करे, हम उसको आपकी तरह ही डॉक्टर बनाना चाहते थे। उसको डॉक्टर बनाने के लिए जो थोड़ी बहुत जमीन हमारे पास थी,
हमने वो बेच दी। डॉक्टर की परीक्षा की तैयारी करने, बाहर भेजा, एक बार भी उसकी मर्जी नहीं पूछी। फोन पे भी यही कहते रहे “बिटिया हमने तुझे डॉक्टर बनाने के लिए अपनी जमीन तक बेच दी, तुझे खूब मन लगा का पढ़ना है, तुझे डॉक्टर बनना है, अपना और हमारा नाम रौशन करना है। पर वो तो ये चाहती ही नहीं थी”.
पर जब वो नहीं चाहती थी, तो आपने जबरदस्ती क्यों किया?
ये तो हमें बाद में पता चला मैडम, कह कर उसने मुझे एक पेपर दिया, जिसमें लिखा था- मां बाबा, बहुत मेहनत करने के बाद भी मुझे टेस्ट में अच्छे अंक नहीं आ रहे हैं। आपने मुझे डॉक्टर बनाने के लिए क्या नहीं किया, पर मुझे नहीं लगता, मैं डॉक्टर बन पाऊंगी। मैं बस एक बार आप लोगो को देखना चाहती थी, इसलिए बिमारी का बहाना बनाकर घर आ गई। मुझे माफ़ कर देना, मैं आपके अरमान पूरे नहीं कर पाऊँगी ।
अब आप ही बताएं मैडम, हम किसे सजा दिलाएं? हम ही हैं अपनी बच्ची के गुनहगार। हमें ही सजा मिलनी चाहिए.
मैं हट-प्रभ थी, उन्हें देखे जा रही थी ।
ये कैसा अरमान है, माता-पिता का, जो बच्चो की जान ही ले ले। जिंदगी डॉक्टर-इंजीनियर बनके ही सफल नहीं होती। अरे जिंदगी तो तब सफल होती है जब हम खुश रहें और अपने आस-पास के लोगों को खुश रखें। बच्चों पर अपने अरमान ना थोपे, उनको अपने अरमान पूरे करने दे, फिर देखिये अपने पसंद के क्षेत्र में वो किस तरह सफलता का परचम लहरायेगा ।।
अर्पणा कुमारी-बोकारो स्टील सिटी, झारखंड