रिश्तों की बचत – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

“तुमने सूट पहना है सुधा”… स्कूल जाने के लिए तैयार हुई सुधा को देखते ही उसकी सास विमला जी बोली।

सुधा मुस्कुरा कर अपने बैग में लंच का डब्बा रखने लगी। 

दो साल पहले शादी हुई थी अनूप से सुधा की, अच्छा खाता पीता परिवार अनूप सा इंजीनियर दामाद और क्या चाहिए था। सुधा को भी कोई आपत्ति नहीं थी, परिवार भी छोटा, सास, ससुर, उसके पति अनूप और एक देवर विनय। 

ससुर बिजली विभाग से रिटायर्ड पदाधिकारी थे और सासु माँ कड़क मिजाज़ गृहिणी। अनूप भी बिजली विभाग में ही इंजीनियर था और देवर जी इंजीनियरिंग के दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा देकर एक हफ्ते बाद घर आने वाले थे। सुधा खुद भी सेकेंडरी स्कूल में दसवीं की रसायन विज्ञान की शिक्षका है। 

सुधा की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो सासु माँ फिर से वही सवाल दागती हैं…

विमला – “मैंने कुछ पूछा है, तुमने सूट पहना है सुधा। मैंने पहले ही दिन कहा था कि साड़ी के अलावा कुछ नहीं डालना है, नौकरी कर रही हो, ये कम है क्या है।”

फिर बड़बड़ाते हुए खुद से कहती हैं.. “मेरी सास ने कभी सूट की तरफ देखने भी नहीं दिया.. पूरी जिंदगी उनके मन का ही किया मैंने।”

जिसे सुधा सुन लेती है… ऐसी कितनी बातें वो प्रायः रोज सुनती है.. कुछ कहना ही चाहती है कि अनूप आ जाते हैं। 

“सुधा देर हो रही है”।”चलो जल्दी तो तुम्हें स्कूल भी पहुँचा दूँ, नहीं तो फिर ऑटो या बस से धक्के खाते जाना।”

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कहते हुए अनूप माँ पापा को प्रणाम कर बाहर निकल जाता है। 

“माँ आकर बात करती हूँ, नहीं तो आपके सुपुत्र का गुस्सा तो आप जानती ही हैं”.. सुधा बैग लेकर अपने चप्पलों को हड़बड़ी में पैर में डाल सासु माँ को प्रणाम कर कहती है।

उधर से ससुर जी, जो तब से चुपचाप बैठे देख रहे थे.. बोल पड़ते हैं – “माँ पर ही गया है। ये खुद को शेरनी समझती थी, वो खुद को शेर समझता है।”

अनूप – “आ रही हो कि मैं निकलूँ।”

सुधा – “आई”…

ससुर जी को प्रणाम करते हुए भागती है।

अनूप – “इतनी देर इंतजार नहीं कर सकता मैं। कोई और उपाय देख लो तुम।”

कहते हुए गाड़ी स्टार्ट करता है…

ये तो रोज का है.. कौन जवाब दे.. सोचकर अपनी किताबें देखने लगती है।

अनूप – “और ये क्या पहन रखा है तुमने.. माँ को ये सब बिल्कुल पसंद नहीं है.. पहले ही बता चुकी हैं वो।”

सुधा – “इसके बारे में शाम में बात करेंगे… अच्छा सुनिए.. एक हफ्ते बाद विनय भैया आ रहे हैं.. मैं सोच रही थी.. उनसे गाड़ी सीख लूँगी।”

अनूप – “अब ये फितूर कहाँ से आया दिमाग में…. माँ को पसंद नहीं आएगा।”

सुधा – “नहीं वो मैं सोच रही थी.. एक छोटी सी गाड़ी ले लूँगी तो स्कूल आने जाने में भी और भी जो बहुतेरे काम होते हैं.. उन्हें करने में सुविधा होगी”।

अनूप – “आ गया तुम्हारा स्कूल।”

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सुधा – “हाँ.. बाई”.. बोल कर सिर झटकते हुए स्कूल में प्रवेश करती है।

सुधा का मानना होता है कि अपने कार्यक्षेत्र पर बाहर के किसी तनाव के साथ नहीं जाना चाहिए। नहीं तो अपने कार्य के प्रति ईमानदार नहीं हो सकेगी और उसका सिर झटकने का मतलब होता है.. सारे तनाव से मुक्ति…और ऐसे वो अपनी ऊर्जा की बचत भी कर लेती है.. साथ ही उसके चेहरे पर हमेशा एक तरोताजा कर देने वाली मुस्कान आ जाती है है… कोई भी खुश हो जाए देखकर। 

“सुप्रभात भैया” ..स्कूल के चौकीदार से कहती है और रुक कर उनका और उनके परिवार का हाल चाल लेती है।

चौकीदार – “खुश रहो बेटी।”

चौकीदार अधेड़ उम्र के होते हैं तो सुधा उन्हें कहती है.. बेटी बोला करे। 

सुधा अपने ऑफिस जाकर उपस्थिति दर्ज कर प्रार्थना सभा की ओर चली जाती है। घड़ी देखती है तो प्रार्थना सभा शुरू होने में दस – पंद्रह मिनट बचे होते हैं तो सोचती है.. स्कूल का एक राउन्ड ही लगा ले।

स्कूल की छुट्टी दोपहर के दो बजे हो जाती है। निकलते निकलते और घर पहुँचते पहुँचते साढ़े तीन हो ही जाते हैं। दिन का खाना बनाने के लिए उसने एक हेल्पर रखी हुई है, जो सास ससुर को दोपहर का खाना खिला कर जाती है। 

घर पहुँच कर सुधा भी खाना खाकर थोड़ी देर आराम करने कमरे में जाती है.. तभी उसके देवर विनय की कॉल आ जाती है। 

“क्या भाभी.. क्या बवाल कर दिया आपने आज.. माँ काफी गुस्से में थी और पापा आपकी तरफदारी में”.. विनय हँसता हुआ कहता है। 

“आज मैंने सूट सलवार डाल लिया था”.. सुधा मायूस होती हुई कह रही होती है। 

“कुछ गलत नहीं किया आपने भाभी.. जो भी आपको आरामदेह लगे…. वो पहने..बस मैं तो ये जानना चाहता था भाभी कि इतनी हिम्मत आपके अंदर आई कैसे..ये रहस्य जानने के लिए कॉल किया है मैंने… भाई के अलावा उस घर में माँ की बात कोई काट नहीं सकता.. पापा भी नहीं” विनय फिर हँसने लगा। 

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“विनय भैया मेरी देवरानी की वज़ह से ये हिम्मत आई मुझमें”.. सुधा भी अब चुहलबाजी के मूड में आ गई। 

“देवरानी कहाँ से आ गई इसमें.. जलेबी मत बनाइए भाभी.. सीधे सीधे बताइए”.. विनय सुधा से अनुनय करता है। 

“ठीक है तो आप टी टाइम पर वीडियो कॉल कीजिए.. आपके भाई और सासु माँ के सामने ही बताऊँगी मैं.. अब थोड़ी देर आराम कर लेती हूँ मैं”… सुधा कहती हुई कॉल कट कर देती है। 

शाम में चाय की ट्रे टेबल पर सुधा ने जैसे ही रखा, उसके मोबाइल की घंटी घनघना उठी और सुधा नाम पढ़ते ही मुस्कुराने लगी। 

“किसने कॉल किया है.. बहुत मुस्कुरा रही हो”.. अनूप मोबाइल की ओर देखता हुआ बोलता है। 

“विनय भैया की कॉल है”… सुधा कॉल लेती है। 

विनय वीडियो कॉल पर होता है… 

“हाँ भाभी बताइए अब आप.. आपके इस दुरूह कार्य के पीछे का कारण”.. सबको प्रणाम बोल कर विनय असल मुद्दे पर आता है। 

“एक बात बताओ विनय.. जब एक बार बात हो गई तो तुमने दुबारा बिना किसी खास कारण के कॉल क्यूँ किया.. सिर्फ वक़्त की बर्बादी है ये”… विनय की माँ गरजती हुई बोली। 

“बच्चे का मन किया सबसे बातें करने का तो कर लिया उसने दुबारा कॉल.. तुम भी ना विमला”… बोल कर विनय के पापा हाल चाल पूछने लगे। 

“हाँ तो भाभी बताइए”.. विनय सुधा से कहता है। 

“क्या बताना है”.. सुधा की तरफ देखते हुए अनूप पूछता है। 

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“दोपहर में विनय भैया ने, मैंने सूट सलवार पहनने का दुस्साहस क्यूँ किया”… ये पूछा था। 

तो मैंने कहा था टी टाइम पर सबके समक्ष बताऊँगी। 

“हाँ तो मैंने रिश्तों की बचत के लिए सूट सलवार पहनने का दुस्साहस किया। अब आप सब पूछेंगे कैसे”.. सुधा कहती है। 

“जब से मैं आई हूँ.. माँ ने जो जो कहा.. सब कुछ करती रही हूं मैं और माँ मुझे मेरे मन का करने देना नहीं चाहती हैं.. उसके पीछे एक ही कारण है.. माँ का पूर्वाग्रह। मेरे अरमान और माॅं का पूर्वाग्रह जैसे अभी टकराते हैं। उसी तरह कल को मैं और मेरी देवरानी टकराएंगे”…सुधा साँस लेने के लिए रूकती है। 

“माँ कुछ भी मना करने से पहले या बाद में कहती हैं.. मेरी सास ने भी मुझे मेरे मन का कभी नहीं करने दिया। अब कल जब मेरी देवरानी आएगी तो बहुत कुछ बदल चुका होगा। हो सकता है जो उसकी इच्छा हो वही पहने.. वही खाए… आए.. जाए और कोई मना ना करे। तब उस स्थिति में मुझे कुढ़न होगी और मैं उसे सुनाऊँगी, जबकि उसकी कोई गलती नहीं होगी। फिर भी मेरे पूर्वाग्रह का निशाना वही होगी और इससे एक नहीं सारे रिश्तों में तनाव आ जाएगा” .. रूपा सासु माँ की तरफ दखते हुए बोलती है। 

इसीलिए मैंने सोचा सीमा के अंदर रहकर जो मेरी इच्छा है.. वो मैं करुँ.. जिसमें आरामदायक कपड़े… गाड़ी ड्राइव करना सीखना… ऐसी ही और भी इच्छाएँ। बस भविष्य के लिए घर के रिश्तों की बचत की एक छोटी सी मुहिम है मेरी ये। ना मैं मेरे अरमान को मारूंगी और तब ना किसी के अरमान देख कर कुढ़न होगी…सुधा बारी बारी से सबको देखती हुई कहती है। 

नाज़ है बेटा तुम पर.. ससुर जी उठकर सुधा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं। 

प्राउड ऑफ यू भाभी… विनय ताली बजाते हुए कहता है। 

सुधा अपने पति और सासु माँ की ओर आशा भरी नजर से देखती है। 

दोनों मंद मंद मुस्कुरा रहे होते हैं.. जिसमें स्वयं के लिए समर्थन का भाव देख सुधा खिल उठती है।

#अरमान 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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