आखिर आपने भी तो हमें अपने स्वार्थ के लिए ही तो पैदा किया हैं – मीनाक्षी सिंह :Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : राजन – माँ ,,पापा से कह दिजियेगा ,मैं  बच्चों और पूजा को लेकर जा रहा हूँ  कुछ दिनों में ! खुद कहूँगा उनसे तो खामखां बहस  हो जायेगी !

सुजाता जी ( राजन की माँ ) – तू ही कह देना ,,जब बाजार से आ जायें तो ! क्या पता तेरा सारा गुस्सा मुझ पर ही उतार दिया तो ! तुम बाप बेटों के बीच में मैं ही पीसती आयी हूँ हमेशा से !

राजन – ठीक हैं आज फैसला हो ही जायेगा ,,बहुत रौब दिखाते हैं अपने इस मकान का ! बच्चों और पूजा को हमेशा डांटते ही रहते हैं ! पानी बंद करो ,,फिजूल बह रहा हैं,,लाईट क्यूँ जला रखी हैं दिन में ,,इतनी जोर से क्यूँ चिल्ला रहे हो ,,टीवी क्यूँ देख रहे हो ,,और भी पता नहीं क्या क्या हिदायत देते रहते हैं सुबह से शाम तक !

बच्चें उनकी बात ना मानें तो पूरा घर सर पर उठा लेते हैं ! जब से रिटायर होकर आये हैं हम सबका जीना हराम कर दिया हैं ! अगर उनकी किसी बात का जवाब दे दो तो कहते हैं – जबान लड़ाते हो ,,शर्म नहीं है आँखों में ! मेरा घर हैं ये,,मेरे हिसाब से चलना होगा ! जैसे हम उनके बच्चें नहीं उनके गुलाम हैं ! इसलिये मैने और पूजा ने फैसला लिया हैं ,,हम बाहर किराये के घर में रहेंगे !

सुजाता जी – जानती हूँ राजन तेरे पापा थोड़े सख्त स्वभाव के हैं ,,फौज की 32 साल की नौकरी करके आये हैं इसलिये दिनचर्या में अचानक से हुए बदलाव को सहज स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं ! और क्या हो गया अगर कह दिया की ये उनका घर हैं ,,बनाया तो तुम लोगों के लिए ही हैं ! कभी कभी मुझसे बताते रहते हैं कि सब कुछ कैसे देना हैं बच्चों को आगे चलकर ! धीरे धीरे समझ जायेंगे तुम लोगों की दिनचर्या को ! मैं तो यहीं कहूँगी कि मत जाओ तुम लोग ! कितने दिनों के मेहमान हैं हम ! हमारे जाने के बाद तो अकेले ही रहना हैं तुम लोगों को ! बच्चों से हमें दूर मत करो ! कड़े स्वभाव  के ज़रूर हैं पर बच्चों को देखते ही मूँछ के बीच में से उनकी खिलती हुई मुस्कुराहट शायद  नहीं देखी तुम लोगों ने ! बाकी तुम लोगों की मर्जी ! सबको अपने मन मुताबिक जीने ,खुश रहने का हक़ हैं !

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राजन – मुझे ज्यादा बहस नहीं करनी माँ  ,चलता हूँ ऑफिस ,शाम को बात करते हैं !

शाम के 8 बजे सब खाने के लिए बैठे होते हैं ! तभी पूजा राजन को टोहनी मारकर शंभू जी ( राजन के पिता)  से बात करने के लिए कहती हैं !

बड़ी हिम्मत करके राजन कहता हैं -पापा वो ,,मेरे ऑफिस की ब्रांच सरोजीनी नगर की तरफ  ट्रांसफर हो रही हैं ,,यहाँ से काफी दूर हैं ,,आने जाने में काफी समय बर्बाद हो जायेगा ,,इसलिये पूजा और बच्चों को लेकर वहीं रहने की सोच रहा हूँ !




शंभू जी – ( गुस्से में ) – सब समझता हूँ मैं ,,जब तक नौकरी पर था तब कोई ब्रांच चेंज नहीं हुई ,मुझे आये छह महीने भी नहीं हुए अब सब हो गया ! जाना हो तो जाओ ,,मैं कौन होता हूँ तुम्हे रोकने वाला ! इसी दिन के लिए पैदा किया था तुझे ,,जब बुढ़ापे में हमें ज़रूरत हो तेरी तो तू हमें छोड़कर चला जाए ! जा,,जा !

शंभू जी कंपकंपाती आवाज में बस इतना ही कह पाये !

राजन – क्या कहा आपने पापा ,,बुढ़ापे में आपको हमारी ज़रूरत हैं ! अगर सच में आपको हमारी ज़रूरत होती तो पूरे दिन हम पर चिल्लाते नहीं ! कभी दो शब्द प्यार के बोले हैं ! बस सुबह से शाम तक आर्डर चलाते हैं हम पर ! माँ बाप भी  बच्चों को अपने स्वार्थ के लिए ही पैदा करते हैं  कि आगे चलकर हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा हमारा बेटा ! कोई भी रिश्ता दुनिया में निहस्वार्थ नहीं हैं ! सबका एक दूसरे से मतलब सिद्ध होता हैं इसलिये ही सब एक दूसरे से जुड़े  हैं ! ये आपका घर हैं ,,संभालिये इसे ! हम चलते हैं !

शंभू जी – प्राईवेट नौकरी में क्या क्या कर लेगा तू ! घर का किराया ,,बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्चा ,घर का राशन पानी ! एक मैं ही हूँ जो तेरे खर्चें उठा सकता हैं ,,सरकारी नौकरी का जो ठहरा !

शंभू जी के चेहरे से अपने बेटें को खुद से कम समझने का घमंड साफ झलक रहा था !

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राजन – पापा अभी तक यहीं सब सोचकर रुका था ,,कि कैसे अकेले घर चलाऊँगा अपना ! इसी स्वार्थ ने हमें  आपकी खरी खोटी सुनने के लिए रोक रखा था ! हर बात सहन  हैं ,,पर आपका ये पैसों का घमंड ,,बीवी बच्चों के सामने मुझे नीचा दिखाना अब बर्दाश्त नहीं !! हर बात सहने की सीमा होती हैं ,वो सीमा पार हो चुकी हैं ,,जानता हूँ मैं कुछ गलत आदतों में पड़ गया था ,,पढ़ाई में इतना ध्यान नहीं दिया मैने ,इसका मतलब ये नहीं कि मैं नाकारा हूँ ! मेरे बीवी बच्चें हैं ,,इनकी तरफ पूरी तरह समर्पित हूँ ,,आपको तो इस बात से खुश होना चाहिए ! पर आपका घमंड हमें तोड़कर रख रहा हैं ! एक हफते में हम चले जायेंगे तब तक शांति बनाये रखियेगा !

शंभू जी कुछ नहीं कह पाये ,,आज उन्हे भी अपने बेटे को खोने का डर लग रहा था ! चुपचाप बिना खाना खाये अपने बिस्तर पर लेट गए ! पर नींद उनकी आँखों से कोसों दूर थी !

अपनी रिटायरमेंट के बाद से अब तक के समय का सारा अतीत चलचित्र की भांति उनकी आँखों के सामने आ गया ! कैसे जब शंभू जी नौकरी खत्म करके पहली बार घर आये थे ,,बहू पूजा और बेटे राजन ने मिलकर उन्हे माला पहनायी उनका तिलक किया ! एक भव्य समारोह का आयोजन किया था ! शंभू जी बस राजन को सुनाने में लगे थे इस नालायक को तो ऐसा सम्मान कभी नसीब नहीं होगा ! उसके बाद से तो हर दिन बहू बेटे पोते पोती को पूरे दिन डांट फटकार लगाते रहते ,अपने पैसों का घमंड दिखाते रहते ! फिर भी पूजा कुछ ना कहती ! हर काम समय पर करती ! चार बजे की चाय ,,खाना पीना ,,शंभू जी सुजाता जी की दवाई ,,बच्चों की देखभाल ! चकरघिन्नी सी घूम जाती ! पर जी पापा जी करती रहती !




शंभू जी पूरी रात रोते रहे ! उन्हे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था ! अगले दिन से एक नए शंभू जी का जन्म हुआ ! जो ना तो चिल्लाते ,,ना किसी को डांटते ,,बच्चों के साथ खेलते ! पूजा से प्यार से बात करते ! वो बस बंशी वाले से रोज यहीं मनाते ,,हे मुरली मनोहर ,,मेरे बाल गोपालों को मुझसे दूर मत करना !कैसे जीयूँगा मैं इनके बिना !

अब अंतिम दिन भी आ गया सप्ताह का ,,बच्चें सुबह से ही तैयार घूम रहे थे  ,,शंभू जी का दिल बैठा जा रहा था !

शंभू जी – तुम लोग कहाँ जा रहे हो तैयार होकर !

अंजू ,सोनू ( शंभू जी के पोती पोता ) – दादू हम तो ,,जा रहे हैं अपने नए घर में ! बहुत अच्छा हैं हमारा घर ,,पापा कह रहे थे !

शंभू जी – तो क्या ये तुम्हारा घर नहीं !

सोनू – ये तो आपका घर हैं ना दादू ,,आप ही कहते हो !

शंभू जी – कब कहा  मैने ,,एक हफते से  तो कुछ भी नहीं कहा मैने ,,अब तो तुम लोगों को डांटता भी नहीं हूँ ! खबरदार कहीं गए तो ,,ये तुम्हारा घर हैं ! कहा हैं तुम्हारा वो समझदार बाप जरा उसके कान खींचू ! बड़ा आया घर से जाने वाला ! शंभू जी लाठी लिए हुए कांप रहे थे ! शायद उनकी कोरों से आंसू भी लुढ़क आये थे उनके झुर्री वाले गालों पर !

पीछे से राजन ने आकर शंभू जी को गले लगा लिया ! वही पूजा और सुजाता जी खड़ी रो रही थी ! शायद ये ख़ुशी के आंसू थे !

राजन – हम कहीं नहीं जा रहे आपको छोड़कर ! आखिर हमारा भी तो स्वार्थ जुड़ा  हैं आपसे ! कौन हमें  आशिर्वाद देगा ! बच्चें किसके साथ खेलेंगे ! हम तो बस आपके स्वभाव को थोड़ा बदलना चाहते थे ! शायद ज़िसमें हम सफल रहे ! हमें माफ कर दिजिये आपका दिल दुखाने के लिए !

शंभू जी स्वार्थ तो मेरा जुड़ा हैं तुम लोगों से ! तूने सही कहा था इस दुनिया में हर इंसान एक दूसरे से स्वार्थ से जुड़ा हैं ,,चाहे उस स्वार्थ का रुप कोई भी हो ! माफी तो मुझे मांगनी चाहिए ! तुम लोगों को बहुत परेशान किया !

राजन और पूजा ने शंभू जी के पैर छूये ! आज निस्वार्थ भाव के स्वार्थ भरे रिश्ते पक्के  हो चुके थे !

स्वरचित

मीनाक्षी सिंह

मौलिक अप्रकाशित

आगरा

 

1 thought on “आखिर आपने भी तो हमें अपने स्वार्थ के लिए ही तो पैदा किया हैं – मीनाक्षी सिंह :Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत ही अच्छी पोस्ट के लिए सादर धन्यवाद जय हिंद जय श्रीराम

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