Moral stories in hindi:
यदि तुझे भगवान बोलें….. मम्मी और पापा दोनों में से किसी एक को ही लेना हो तो तू किसे लेगी प्रिया…..? अरे यार सोनम ये तो तू बड़ा मुश्किल प्रश्न पूछ ली …..और मुझे उलझा दिया….. दोनों के बिना रहना नामुमकिन है मेरे लिए …..पर दिमाग से कम लेना पड़े तो मैं पापा को ही चुनूंगी…..सोचते सोचते प्रिया ने मन मार कर जवाब दिया…. क्यों …??पापा को ही क्यों….?? मम्मी को क्यों नहीं …?
सोनम आश्चर्य से प्रिया को देखे जा रही थी …प्रिया ने भी अपनी बात स्पष्ट की ….देख सोनम क्या है ना ….मेरी मम्मी होम मेकर है घर का सारा काम तो वही करती हैं… पर पैसे…. पैसे तो पापा ही काम कर लाते हैं ना ….और यदि पापा नहीं रहे तो घर कैसे चलेगा ……? मेरी पढ़ाई लिखाई ….नहीं …नहीं …सोनम ऐसी स्थिति में पापा ही मुझे चाहिए…. प्रिया ने एकदम से एकपक्षीय उत्तर दिया…!
पर प्रिया मेरे लिए तो इस प्रश्न का उत्तर देना बहुत मुश्किल है….. मेरे तो मम्मी पापा दोनों नौकरी करते हैं… फिर मैं किसे बोलूं …..? सोनम ने अपनी परेशानी प्रिया के समक्ष रखी… प्रिया भी कहां चूकने वाली थी उसने तपाक से कहा …..अरे तेरे पास तो विकल्प है तेरी जरूरत पूरी तो किसी एक के भी रहने से हो ही जाएगी ….फिर तुझे क्या तू जिसे ज्यादा पसंद करती है उसे चुन ले …..मेरे पास तो कोई विकल्प ही नहीं है….!
अरे यार ….अपन दोनों मजाक मजाक में इतना सीरियस क्यों हो गए…. सच में ऐसा थोड़ी ना हो होने वाला है ……अपन दोनों भी ना ….सही में पागल है…. ऐसा कह कर प्रिया और सोनम दोनों सहेलियां हंसने लगी…!
इन दोनों सहेलियों की बातें बगल वाले कमरे में बैठी प्रिया की मम्मी वैशाली सुन रही थी…. बातें तो वाकई में हंसी मजाक में शुरू हुई थी…. पर क्या इन बातों में सच्चाई नहीं थी ……? सोनम ने मजाक में ही पूछ लिया था ……पर प्रिया का तर्क कहां गलत था….?
” सवाल तो वाकई उलझाने वाले थे पर प्रिया के नन्हे मस्तिष्क ने सोच समझकर अपने विवेक से बहुत उलझा हुआ जवाब दिया “….!
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प्रिया का तर्क सुनकर वैशाली को पहली बार एहसास हुआ….. सिर्फ पैसे कमाना.. धनार्जन.. ही वास्तव में आत्मनिर्भरता है ….मैंने सारी जिंदगी इस घर में …पति बच्चों में लगा दिया सवेरे से शाम तक घर के हर काम को बखूबी निभाया ….प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पतिदेव की नौकरी …बच्चों की पढ़ाई लिखाई में पूरा सहयोग किया है ….फिर भी मैं आत्मनिर्भरता की श्रेणी में नहीं आती….!
नहीं …नहीं …ऐसा थोड़ी ना होता है… खुद को ढाढस बंधाते हुए वैशाली थोड़ी परेशान तो थी…..
भगवान ना करें इन्हें कुछ हो …पर यदि हो ही गया तो…. सच में जिंदगी की चलने वाली सभी सामान्य कार्यों की निरंतरता थम जाएगी….!
मेरे ही घर में काम करने वाली मेरी सहायिका आत्मनिर्भर है ….वो स्वाभिमान से अपनी कमाई कर अपने घर में मदद करती है ….समय निकला जरूर जा रहा है ….पर समय समाप्त नहीं हुआ है…..।
बस फिर क्या था….. उसी दिन से वैशाली ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कुछ करने की ठानी….. और उसका उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना ही नहीं…
लोगों को पैसा कमाने योग्य बनाने…. व उसकी उपयोगिता…. उसकी जरूरत …..और उसकी अनिवार्यता…. के विषय में जागरूक करना था ….वैशाली सोच ही रही थी शुरुआत कहां से और कैसे करूं…..?
तभी फोन की घंटी बजी ….हेलो भाभी ….शिवांगी की शादी तय हो गई है ….बस आने की तैयारी कीजिए…. पर ननद रानी शिवांगी तो अभी पढ़ रही है ना ….इसी बीच शादी …..??वैशाली अपनी बात पूरी करती इससे पहले ही ननद (तारा) ने कहा….
वो क्या है ना भाभी …अच्छा परिवार …कमाऊ लड़का …मिल गया तो हम लोगों ने सोचा…. पैसे वाले घर में जाएगी तो बिटिया राज करेगी ….और बाकी की पढ़ाई शादी के बाद पूरा करती रहेगी …..तारा ने गर्व से कहा….।
वैशाली ने शंकित होते हुए पूछा…. शिवांगी अभी शादी के लिए तैयार है …..? हां भाभी ….और वैसे भी हर चीज शिवांगी से पूछ कर थोड़ी ना करेंगे….. हम अभिभावक हैं उसका भला बुरा अच्छी तरह समझते हैं …..और वैसे भी हमने अच्छे संस्कार दिए हैं ….वो मां-बाप के खिलाफ विद्रोह नहीं कर सकती …..तारा ने एक सांस में अपनी बखान कर डाली….।
वैशाली सोचने पर मजबूर हो गई….. बिल्कुल यही हालत तो मेरे भी थे …. अच्छा नौकरी वाला लड़का है शादी कर दो…. घर गृहस्थी अच्छे से चलेगी…. और चल भी रही है…..
हालांकि समय-समय पर मुझे नौकरी न करने या कहे कमाई न करने के लिए उलाहने भी मिलते रहते हैं…. और जब मैं अपने सभी दोस्तों को नौकरी करते देखती हूं तो …..दिल में एक टीस….एक कसक …सी उठती है कि काश…….
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अरे ठीक है ननद रानी मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया था….. क्या है ना… आज ही प्रिया और उसकी सहेली सोनम आपस में बात कर रहे थे …अभी हमारे लिए मम्मी और पापा में से ज्यादा जरूरी कौन है…. तो जानती है तारा… प्रिया ने क्या जवाब दिया…… क्या कहा भाभी ….?…प्रिया ने स्पष्ट कहा …अभी पापा का रहना ज्यादा जरूरी है…. वरना मेरी पढ़ाई लिखाई सब कुछ रुक जाएगी ……थोड़ी देर तक सामने से फोन पर कोई आवाज नहीं आई ……हेलो तारा आवाज नहीं आ रही है क्या…..? आपने सुना मैंने क्या कहा…..??
हां भाभी …सुना और समझ भी लिया… मैं आपसे बाद में बात करूंगी कह कर तारा ने फोन कट कर दिया….
इधर वैशाली सोच रही थी… शायद तारा मेरी बातों का बुरा तो नहीं मान ली …..वो सोच रही होगी कहीं मैं उनके लगी शादी से नाखुश तो नहीं…? पर मैंने तो कुछ और ही सोच कर कहा था ….एक-दो दिन के बाद फिर तारा का फोन आया ….
भाभी आपने मेरी आंखें खोल दी… हमने लड़के वाले से बात कर ली है …..जब तक शिवांगी अपने पैर पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर नहीं बनेगी…. तब तक ये शादी स्थगित करते हैं …..और तो और ….लड़के वालों ने भी खुशी जाहिर किया और बोले तब तक हम इंतजार करेंगे….।
वैशाली खुश होते हुए सोची ….लो हो गई शुरुआत नेक काम की ……दकियानूसी सोच और मनः स्थिति बदलने की…..!
अच्छे काम की शुरुआत की है… मंदिर से होकर आता हूं ऐसा सोचकर वैशाली प्रिया के साथ मंदिर गई…. लौटते वक्त रिश्ते की चाची जी मिलीं… वैशाली ने पैर छुए….चाची जी आशीर्वाद देते हुए बोलीं….. प्रिया के लिए खूब अच्छा वर मिले…तुम्हें दामाद के रूप में बेटा मिले… चाची जी कुछ और आशीर्वाद स्वरुप बोलतीं…. वैशाली ने बीच में ही बात काट कर कहा…. बस चाची जी… पहले आशीर्वाद दीजिए ….प्रिया अपने पैर पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर बने ….फिर शादी तो हो ही जाएगी…।
चाची जी भी वैशाली के साथ मुस्कुराते हुए बोलीं …जमाना बदल गया है….. हमें भी समय के अनुरूप व्यवहारिक होना पड़ेगा बहू ……बस वैशाली के नेक काम की धुआंधार शुरुआत हो चुकी थी…..।
( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिक सुरक्षित रचना)
श्रीमती संध्या त्रिपाठी