एक ऐसा भी सौदा –   बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  Moral Stories in Hindi : अब रजनीश ठीक हो जायेगा ना,फुसफुसाते अर्ध बेहोसी में बार बार रमेश के मुँह से यही शब्द निकल रहे थे।  अस्पताल के बिस्तर पर पड़े रमेश को अब धीरे धीरे होश आ रहा था।उसी अवस्था में रमेश का मन मष्तिष्क भी अतीत की ओर दौड़ लगाने लगा था।रजनीश एक जमीदार परिवार का लड़का, जिसके आगे पीछे नौकर और शाही जिन्दगी।

रजनीश के यूं तो ढेर सारे मित्र थे, पर उसकी पटती केवल रमेश से थी।अपने दिल की,घर की सब बातों में दोनों एक दूसरे के राजदार थे।रमेश एक साधारण परिवार से था, पर स्वभानी रमेश ने कभी भी रजनीश से लाभ उठाने की नीयत नही रखी।रजनीश भी उसके आत्म सम्मान की कदर करता था।

     एक बार कॉलेज में ग्रुप फोटो होना था, सब विद्यार्थी अपने कोट पेण्ट पहन कर आये थे,पर रमेश के पास तो कोट था ही नही, वो अपना स्वेटर ही पहनकर आया था।कुछ हीन भावना मन मे थी, पर किया ही क्या जा सकता है,यह सोच रमेश रजनीश के आने पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करने लगा।

इतने मे ही रजनीश नये सूट में आता दिखायी दिया,बिल्कुल राजकुमार सा लग रहा था। रमेश लपक कर रजनीश के पास आ गया।बडी ही गर्मजोशी में बोला अरे रमेश बता तो ये सूट मुझ पर कैसा लग रहा है, अभी खरीदा है?अरे रजनीश तुम इस सूट मे खूब जंच रहे हो बिल्कुल हीरो लग रहे हो।

     तभी रजनीश ने दूसरा लिफाफा रमेश की तरफ बढ़ा कर बोला अरे भाई मैं एक ओर कोट लाया था, मुझे अच्छा लग रहा था, देख जरा, रमेश बता ये कैसा लग रहा है।रमेश ने लिफाफा खोलकर कोट देखा और कहा रजनीश ये भी सुंदर है।तभी रजनीश बोला अरे जरा पहन कर तो दिखा।झिझकते हुए रमेश ने कोट पहन लिया।इसी समय रजनीश बोला अरे रमेश चलो चलो फोटो ग्रुप के लिये फोटोग्राफर बुला रहा है,और रजनीश रमेश को खींचता हुआ ले गया।फोटो ग्रुप हो गया।रमेश का फोटो कोट पहने ही खिंच गया।फ़ोटो ग्रुप होने पर रमेश ने कोट रजनीश को वापस कर दिया।

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    ऐसे ही कई बार इत्तफाक होता था, जो पुस्तक मेरे पास नहीं होती थी, उसी पुस्तक को रजनीश मेरे डेस्क पर छोड़ देता, बोलता कुछ नहीं,अगले दिन मैं पुस्तक वापस करता और वो चुप चाप वापस ले लेता।

    बाद में समझ आया कि वो मेरे स्वाभिमान की रक्षा करते हुए मेरी सहायता कर रहा था,बिल्कुल निःशब्द।हमारी यारी दोस्ती और प्रगाढ़ होती गई।अचानक पता लगा कि रजनीश की दोनो किड़नी खराब हो गई है।उसके घर वालो ने खूब इलाज कराया पर रजनीश रिकवर नहीं कर पा रहा था।अब केवल किड़नी बदल का रास्ता ही शेष रह गया था। किड़नी उपलब्ध नहीं हो पा रही थी, रजनीश की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही थी।

   रमेश ने एक कठोर निर्णय लिया   और रजनीश के पिता को विश्वास में लेकर और रजनीश को बिना बताए अपनी एक किडनी रजनीश को दान कर दी।

     रमेश को सोचते सोचते अब होश आ गया था, उसे संतुष्टि थी कि वो अपने यार के काम आ गया।दस दिन बाद हॉस्पिटल से वापस आने पर रजनीश को पता लगा कि उसकी जान रमेश ने बचाई है।वो अभीभूत था, उसकी आँखों मे आँसू थे, तभी रमेश आता दिखायी दिया ,दौड़ता हुआ रजनीश आगे बढ़कर रमेश को बाहो में भरकर बोला दोस्त आखिर मेरी जिंदगी तूने खरीद ही ली——।

         बालेश्वर गुप्ता

                 पुणे( महाराष्ट्र)

   मौलिक ,अप्रकाशित

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