Moral stories in hindi: वृद्धाश्रम के एक कोने मे बैठी सरिता जी आठ आठ आँसू रो रही थी और विचर रही थी अपने अतीत मे जब शादी होकर ससुराल गई तब सास ने कितना लाड़ लड़ाया था बेटी से भी ज्यादा हर वक्त उनकी जुबान पर सरिता सरिता होता था । सरिता ये खा ले , सरिता ये पहन ले । सरिता देख ये साडी लाई मैं , सरिता ये गहना लाई हूँ । पर उसने क्या किया ससुर के स्वर्गवासी होते ही पहले सब कुछ धोखे से अपने नाम कराया और फिर सास की रोटी तक उसे भारी लगने लगी थी ।
” देखो जी अब मुझसे ना होता तुम्हारी माँ का इन्हे गांव भेज दो वरना मैं चली यहाँ से !” आखिरकार उसने पति राघव को अपना फैसला सुना दिया ।
” पर सरिता गाँव मे माँ की देखभाल कौन करेगा तू खुद सोच फिर तुझे माँ से दिक्कत क्या है अब तो सारी जायदाद भी तेरे नाम है माँ की ?” राघव बेबसी से बोला।
” मैं कुछ ना जानती बस मुझे माँ के साथ ना रहना रही जायदाद की बात वो इस उम्र मे क्या करेंगी उनके खर्चे भर के पैसे हम दे देंगे !” सविता चिल्ला कर बोली। माँ बेचारी आँसू बहाती सब सुन रही थी । उन्होंने बेटे को बुला खुद से कह दिया।
” बेटा इहाँ सहर मे मन कौनी लगता तू मोहे गांव छोर आ !”
बेटा समझ गया माँ सब सुन चुकी है उसने माँ को रोकने का बहुत प्रयास किया पर वो ना रुकी । पोता आरव जाती हुई दादी के कदमो से लिपट रो पड़ा। पर दादी तो मानो निरमोही हो गई या यूँ कहो बेटे की गृहस्थी बचाने को निरमोही बन गई।
माँ गांव जाकर ज्यादा जी ना पाई दो साल बाद ही उनके मरने की खबर आई तबसे राघव खुद आठ आठ आँसू रोता था कि काश माँ को रोक लेता। उसका पश्चाताप उसे बिस्तर पर ले आया और एक दिन वो भी माँ के पास पहुँच गया । इधर आरव भी बड़ा हो गया कुछ समय बाद उसका भी विवाह हो गया और बहू अंकिता घर आई।
अंकिता ने आरव के साथ मिलकर ससुर के व्यापार को संभालना शुरु कर दिया और धीरे धीरे सास से सब अपने नाम कराती चली गई। और एक दिन उसे वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया। बेटा आरव भी पत्नी के साथ था क्योकि उसने अपनी माँ को भी तो यही करते देखा था।
सरिता जी वृद्धाश्रम पहुंची तब उन्हे एहसास हुआ कि उन्होंने खुद अपने लिए बबूल का पेड़ बोया है तो उसपर आम कैसे उग सकते है। यही सोच सोच वो पश्चाताप की आग मे जलती रहती और अपनी दिवंगत सास और पति से माफ़ी मांगती रहती।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#आठ आठ आँसू रोना