भविष्य निधि – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: अगस्त में पापा रिटायर होने वालें हैं।चालीस वर्षों से अनवरत कर्म को पूजा समझकर कड़ी मेहनत की उन्होंने।अपनी पूरी जवानी स्वाहा कर दी उन्होंने परिवार के लिए। अपनी तनख्वाह का अधिकतम हिस्सा जमा करते रहे वे, बच्चों के भविष्य के लिए।

तीन बेटियों-रमा,उमा और श्यामा और बेटे कार्तिक के स्थापित होने का दायित्व संकल्पित होकर निभाया है उन्होंने।मैं रमा उनकी बड़ी और सबसे लाड़ली बेटी हूं।हम भाई -बहनों को हर वह सुख दिलाया पापा ने जिसे खुद भोगने की कल्पना भी नहीं करते थे।पुरखों से वसीयत में कुछ भी नहीं मिला था,जो भी बनाया उन्होंने स्वयं के बलबूते पर बनाया था।अपनी संतानों को अच्छी शिक्षा देना ही उनकी नौकरी का उद्देश्य था।
हम सभी भाई-बहनों को बारहवीं के बाद बाहर रखकर पढ़ाया।बाजार में कुछ भी नया दिखे,चाहे खाने का सामान हो,फल,खिलौने या कोई और चीज,बिना मांगे दिलाया हमें।सीना फुलाकर कहते अपने जान पहचान वालों से”मेरी रमा तो लाखों में एक है।मेरा अभिमान है वह।उसने कभी हमारा सर झुकने नहीं दिया और ना ही देगी।बैंक से लोन ले-लेकर हमें पढ़ाया था पापा ने।सभी बच्चों की शादी से भी निवृत्त हो चुके थे।अपनी बेटियों को औकात से ज्यादा दहेज देकर ब्याहा था।
मेरी बड़ी इच्छा थी कि पापा‌ के रिटायरमेंट पर एक ईजी चेयर उपहार में दूं।विनय(पति)को कुछ खास रुचि नहीं थी।मैंने आर्डर कर दिया था। रिटायरमेंट की खबर पाकर हम सारी बहनें आने की सूचना दे रहीं थीं एक दूसरे को।भाई जो कि आस्ट्रेलिया में बस चुका था,पिछले चार साल से नहीं आया था ,पापा -मम्मी से मिलने।आज अचानक मेल पर देखा वह भी सपरिवार आ रहा है पापा के रिटायरमेंट के जश्न में शामिल होने के लिए।चलो अच्छा है इसी बहाने सभी भाई-बहनों का अपने माता पिता से मिलना हो जाएगा।
रमा ख़ुद के और बच्चों के कपड़े जमाने लगी,कुछ दिन बाद ही‌ तो राखी है ।सालों बीत गए अपने भाई की कलाई पर राखी बांधे,इस बार यह काम भी हो जाएगा।विनय तेजी से आवाज़ लगाया”रमा तैयारी कर ली पूरी।तुम ,मैं और बच्चे चलेंगे पापा के रिटायरमेंट कार्यक्रम में।”रमा को तो अपने‌ कान ही दगाबाज लगे,चिल्लाती हूई बोली”आप भी जा‌रहें हैं!!! ताज्जुब है मेरे बिना बोले ही आप मान गए।आपको तो कब से कह रही थी ,पर आप‌ काम की व्यस्तताओं में टालते रहे।फिर आज कैसे?”
“अरे रमा,तुम तो बाल की खाल निकालने लगी।आखिर मैं दामाद हूं उनका।मेरा भी कोई फर्ज है।चलो!तैयारी कर लो।”रमा की तो खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा।तय समय पर पति और बच्चों के साथ पहुंची।
आते ही देखा बाकी लोग भी आ चुके थे।जिस भाई को देखने आंखें तरस “गई थीं,वह भाई भी आस्ट्रेलिया से छुट्टी पर आ चुका था।मां तो अपनी कोख का बखान करने में लगी थी”देखो,इसे कहतें हैं बच्चे।पापा का सहारा बनने कितनी मुसीबतें उठाकर आ गए अपने घर।बहुत भाग्यशाली हैं आप ,जो ऐसे बच्चों के पिता हैं।”
महीने की आखिरी तारीख को होना है रिटायरमेंट।अभी हम उस दिन को खास बनाने की तैयारी में जुट गए।मजे की बात यह थी कि तीनों दामाद ख़ुद के पैसे खर्च रहे थे। सचमुच पापा मम्मी बहुत खुशनसीब हैं।तीनों दामाद हमेशा साथ रहते।घर में एक गिलास पानी भी लेकर ना पीने वाले ससुर के रिटायरमेंट में अपना पूर्ण श्रमदान दे रहे थे।
टैंट लगवाने में सारा‌दिन निकल गया।शाम को रमा ने सोचा सभी थके-हारे हैं।चाय बना लेती हूं सबके लिए।चाय बनाकर जब कमरे में पहुंचाने गई, तीनों दामाद खुसर-पुसर कर रहे थे।मंझले बहनोई मेरे पति से कह रहे थे”बड़े भाई,हमारा तो बहुत पैसा खर्च हो गया ।आपका भी हुआ होगा नहीं पता नहीं कितना और तामझाम करना पड़ेगा।”
विनय(पति )ने सहजता से कहा”अरे बेटियों को तो एक मोटी रकम मिलेगी ही।बहुत पैसा पाएंगे पापा।दो लोग कितना खाएंगे।मैं तो कहता हूं,अपनी -अपनी बीवियों को समझाना हमारे बच्चों के भविष्य के लिए कुछ  मांग लें।
दूसरे ने हां में हां मिलाया”बिल्कुल सही बोले भैया”′
रमा की आंखें फटी रह गईं ,चेतना शून्य हो गई थी उसकी।इस विडंबना ने माता-पिता के अच्छे संस्कार काम आएंगे। देखते-देखते इकतीस तारीख भी आ गई।सारे रिश्तेदार,पहुंच चुके थे।नाश्ता पानी देकर,एकबड़े से हाल में बैठने की व्यवस्था की गई थी।पापा‌ को शाल‌ओढ़ाया ,उनके कर्मठ व्यक्तित्व का गुणगान किया गया।पापा‌भाव विभोर हो चले थे।मेरी तरफ से पापा को अमूल्य उपहार देगी वह।रात के खाने में समीक्षा चल रही थी।कितना मिलेगा , एकमुश्त मिलेगा या नहीं,पेंशन भी तो अच्छी मिलेगी।इन बातों से बेखबर पापा ने तीनों बेटियों को क्या देना है सोच रखा था।हालांकि उनके‌ हांथ में पैसे नहीं मिलेथे अभी।
रमा ने सोचा लिया कि उसे ही पहल करनी होगी।
रात को खाने की मेज पर जब सभी पापा के मुंह से रहस्योद्घाटन का इंतजार कर रहे थे कि किस को कितना मिलेगा,रमा ने पापा के पास जाकर कहा”पापा,अब हम सभी अपने घर वापस जाएंगे।जिस काम के लिए आए थे,वह तो हो गया।भाई -बहनों से भी मुलाकात हो गई।अब आप और मम्मी अपना रिटायरमेंट खुशी-खुशी साथ में रहकर मनाइये।” सभी को मानो सांप सूंघ गया।पापा भी रमा के इस अप्रत्याशित फैसले से सकते में आ गए।”अरे!!!रमा,अभी कैसे चले जाओगे तुम लोग?कुछ दिन तो रुकना ही होगा  यहां।”पापा हांथ में पैसे ना मिलने की विवशता छिपाकर बोले।
“नहीं पापा।अब हम और नहीं रुक सकते।आप यह मत सोचिएगा कि आपके बच्चे आपके पैसों के लिए आपसे मिलने आएं हैं।आपने इतने अच्छे वर ढूंढ़कर दिए हैं हमें,जो हमारा पूरा ख्याल रखते हैं।आपके दामाद आत्मनिर्भर हैं।उन्हें रुपए देने की ग़लती कभी मत करिएगा।वे अपनी नज़र से गिर जाएंगे।आपका प्यार और आशीर्वाद के भूखें हैं हम,पैसों के नहीं।”रमा ने बड़ी सफाई से सभी के मन में उठ रहे तूफान को शांत कर दिया था।सारे दामाद और बहनें रमा को घूरने लगे।रमा ने आगे कहा”पापा आपका बेटा अपनी पत्नी के साथ अच्छे से रह रहा है विदेश में,उसकी चिंता भी मत करिएगा।जब तक आप और मम्मी हैं,पैसे आपके पास ही रहेंगे।यह आपकी भविष्य निधि है,आपके भविष्य के लिए बचाया हुआ आपका ही पैसा।हमें बांटकर समाज के सामने हमें नीचा नहीं दिखाना आप।आपने हमें जीवन भर दिया है।अब आप अपने पैसों का सुख भोगेंगे।आपको मेरी कसम।”
मम्मी को अच्छा नहीं लगा।ऐसे दामादों के सामने रमा का बोलना उनको पसंद नहीं आया।बोलीं”तू कौन होती है यह बताने वाली कि पापा पैसे देंगे या नहीं और किसको देंगें किसको नहीं।ठीक है तुम लोग मत लेना ,पर हम नाती नातिन को तो दे ही सकतें हैं।”
“मम्मी आपको शायद पता नहीं,पापा के ऊपर बैंक का बहुत कर्ज है।तुमने कभी पूछा नहीं और उन्होंने कुछ बताया नहीं।और हां हमारे बच्चों की जिम्मेदारी हम पर है,पापा पर नहीं।हमारे बच्चों के पापा क्या कम हैं कहीं हमारे पापा से।वे अपने बच्चों के भविष्य को निश्चित ही सुरक्षित करेंगे।आप भरोसा तो रखो‌ इन पर।”रमा बोले जा रही थी।फिर‌ विनय की ओर‌ देखकर बोली”,अब आप ही समझाइये मम्मी को।आपकी बात टालेंगी नहीं।हम क्या अपने बच्चों को अच्छा भविष्य नहीं दे सकते विनय?क्या हमें पापा की भविष्य निधि की बैसाखी का सहारा लेना चाहिए?,जब हम खुद चल‌ सकते हैं।”विनय का तो मन कर रहा था अपने बाल‌नोच लेने का।इस औरत में बुद्धि है ही नहीं।अब मुझे आगे कर दिया ।मैं मांग सकता हूं क्या कुछ?सोचते हुए विनय ने मम्मी पापा के पैर में झुककर प्रणाम किया और बोले”रमा सच ही कहा रही है।पैसा‌हांथ‌की मैल‌है।अब रुकता है किसी के पास।अभी आप अपनी जिंदगी आराम से गुजारिए।हमें जब जरूरत होगी, आपसे मांग लेंगे।”
बाकी के दो दामादों की हिम्मत ही नहीं हुई फिर पापा से कुछ और कहने की।पापा खुशी के मारे रो पड़े।अपनी पीड़ा‌से मुक्ति पाई थी उन्होंने‌ आज।अपनी आर्थिक तंगी किससे कहते?
रमा की पैकिंग होते देख बाकी बहने भी तैयारी करने लगी। नाखुश थी सभी रमा से।पर रमा आज बहुत खुश थी उसने अपने पापा का और अपना सम्मान बचा लिया।
अगले दिन हम बहनें अपने पतियों के साथ रवाना हो रहे थे तो रमा ने पापा को छेड़ा”कब आएंगे हमारे घर रहनेआप?”अब तो छुट्टी ही छुट्टी।पापा‌और मम्मी दोनों रो रहे थे बच्चों के चले जाने से
तभी रमा के पापा एक नोटिफिकेशन देख चौंक गए।पत्नी ने पूछा क्या हुआ?
पापा अविश्वास से देख रहे थे अपने एफ डी का नोटिफिकेशन।रमा ने पूरे पैसे म्यूचुअल फंड में डाल दिया था।पेंशन ४००००, आनी थी।और अभी पूरे पैसे मिले भी नहीं।पापा सचमुच रोते हुए बोले”रमा,तू सच में लाखों में एक‌है।सौ बेटों की बुद्धि तेरे सामने फेल है।अपने पापा को धर्म संकट से बचा‌लिया तूने।मैं बच्चों के चेहरों में मायूसी‌नहीं देखना चाहता था।मुझे बहुत कम रुपए ही मिल पाए थे।मैं कर्जा पटाता या तुम लोगों को देता।तूने मेरे स्वाभिमान को मरने नहीं दिया।सही मायने में तू ही है मेरी” भविष्य निधि।
शुभ्रा बैनर्जी

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