Moral stories in hindi : आज ऑफिस में मीटिंग थी देर तक चली मामला ही ऐसा था जिसमें सबकी सहमति नहीं बन पा रही थी ऑफिस की महिला कर्मियों को साल भर में दस दिनों के अतिरिक्त अवकाश दिए जाने का …. जिसमें सबकी सहमति नहीं बन पा रही थी सो तर्क वितर्क का दौर चला और जब तक सहमति हुई रात हो चली थी.. !
अनुराग जी ने जोर भी दिया था शिखा जी रात हो गई है आपको घर तक छोड़ देता हूं पर शिखा ने भी जोर देकर लेकिन विनम्रता से इंकार कर दिया था …मां की लड़कों से दूरी बना कर चलने की समझाइश को उसने गांठ में बांध कर रख लिया था ऑफिस टाइम में सबसे नपी तुली सामान्य बातचीत ठीक है लेकिन अभी ऑफिस टाइम के बाद ऐसे रात के समय में किसी पुरुष सहकर्मी का साथ चलने का आग्रह उसके दिल में कुशंका पैदा कर देता था नहीं ये ठीक नहीं है जब नौकरी करने अकेली बाहर निकली हूं तो अपने दम पर करो डर कर या किसी पर निर्भर रह कर क्या जिंदगी जीना आज इनके साथ चली जाऊं कल को ये इसे अपनी आदत बना लें …मेरे बारे कोई गलत अवधारणा बना लें…या क्यों मैं जरा सी बात का बतंगड़ बनाने का सुनहरा अवसर स्टाफ वालों या मोहल्ले वालों को दूं..!!
इन्ही सब दिमागी उथल पुथल के साथ कब वो अपनी घर की गली के चौक पर आ गई उसे पता ही नही चला ।अचानक स्ट्रीट लाइट गोल हो गई और उसके सामने दो शोहदे आ खड़े हुए… जिन्हें देखते ही शिखा जो थोड़ी देर पहले अपने दम पर जीने का दावा कर रही थी भीतर से सिहर उठी
वास्तव में सोच तो हम बहुत कुछ लेते हैं लेकिन जब वो प्रत्यक्षत:घटित होता है तब हम क्या कर पाते हैं यही विचारणीय है।
जब तक वो कुछ सोच समझ पाती उन दोनों ने आगे बढ़ कर उसके एक एक हाथ पकड़ लिए और खींच कर वहीं खड़ी बाइक की तरफ ले जाने लगे अब तो शिखा की चीख निकल गई लेकिन उसकी वो चीख मुंह के अंदर ही दबी सी रह गई शायद उसकी आवाज घुट सी गई थी जो उन गुंडों के सामने निकलने का दुस्साहस नहीं कर पा रही थी असहाय सी उसकी आंखें आस पास सहायता और समर्थन ढूंढ रही थीं लेकिन रात की कालिमा और लाइट का गोल हो जाना गुंडों की मन मर्जी का ही साथ दे रहे थे।
विवशता बेबसी से उसकी आंखों में आसूं भर आए …!
जैसे किसी मासूम मेमने को वध के लिए रस्सी बांध कर खींचते हुए परवश कर दिया जाता है वैसा ही शिखा को महसूस हो रहा था … दोनों वहशी आज पशुवत आचरण पर उतारू हो गए थे …उनकी गाड़ी काफी दूर खड़ी थी वहां तक वे दोनों उसे घसीटते हुए ले जा रहे थे…अचानक स्ट्रीट लाइट जल उठीं और उजाला सा हो गया शिखा को उनके चेहरे स्पष्ट दिखने लगे ये तो उसी के मोहल्ले के लड़के थे उसने देखा
वो दोनों भी ये देख कर कि उन्हें पहचान लिया गया है अचानक उसे छोड़ कर अपनी बाइक से भाग निकले।
उनके छोड़ते ही शिखा कटे वृक्ष की तरह जमीन पर गिर पड़ी थी कुछ ही मिनटों में मानो वो मौत से लड़कर वापिस आई थी एक भयानक हादसा मानो उसे छू कर निकल गया था…
जैसे तैसे अपने घर पहुंच पाई …अकेली रहती थी किराए के मकान में…मकान मालकिन उसे और उसकी अस्त व्यस्त हालत देख कर उसी के चरित्र पर शक कर करने लग गईं..अरे ऐसा कौन सा ऑफिस है जो इतनी रात तक चलता है लड़की हो तुम्हें तो अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए मां बाप ने नौकरी करने बाहर भेज दिया है इसका गलत उपयोग क्यों कर रही हो समय से घर वापिस आना चाहिए तुम्हें सुनो मेरे घर में ऐसा नहीं चलेगा!!
आंटी प्लीज आप मेरी सहायता करिए उन गुंडों ने मेरे साथ इतना बुरा व्यवहार किया है वो दोनो यहीं रहते है आप उन्हे जानती हैं प्लीज आप पुलिस को फोन कर दीजिए ..शिखा वैसे ही अपने साथ घटित हादसे से आतंकित थी उबर नहीं पा रही थी ऊपर से मकान मालकिन के एक महिला होकर भी दूसरी मजबूर महिला की समस्या के प्रति असंवेदन शीलता से वो बुरी तरह आहत हो गई ।
पुलिस.!!ना बाबा कोई पुलिस उलिस का लफड़ा मुझे अपने इस मकान में नहीं चाहिए गलती तुम्हारी है तुम्हें इतनी रात को सड़क पर अकेली आना ही नहीं चाहिए गुण्डो को खुला आमंत्रण तुम्हीं ने दिया उनकी क्या गलती है फिर वो तो मेरे इसी मोहल्ले के हैं मैं उनसे कोई दुश्मनी नहीं करना चाहती समझी!!और कान खोल कर सुन लो तुम कल ही मेरा ये घर खाली कर देना ….मुझे नहीं चाहिए ऐसे फसादी किरायेदार…!जोर से कह वो सपाटे से अपने घर में घुस गईं और उतनी ही जोर दरवाजा बंद कर लिया।
सहमी सकुची शिखा थरथराते कदमों से अपने घर तक अपने आपको घसीट कर पहुंचा पाई और निढाल हो गई।समाज भी अपराधियों का साथ देता है सब अपनी अपनी सुरक्षा की चिंता करते हैं ये आंटी भी एक महिला हैं पर एक शब्द सहानुभूति का नहीं बोल पाई सिर्फ इसलिए कि वो गुंडे इनका अहित ना कर दें..!
उल्टा मेरी गलती बता कर मुझे ही मकान खाली करवाने का नादिरशाही आदेश दे दिया …रात को सड़क पर अकेली लड़की या महिला क्यों नही जा सकती … किसी गलत इरादे से जा रही है गुंडों को खुला आमंत्रण दे रही है कैसी वाहियात मानसिकता है आंटी की …!..
अरे आंटी की क्या लगभग सबकी यही सोच है !!इन गुंडों से विवश हो जाते हैं ना इसीलिए मेरी तेरी सबकी गलती बता कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं और अपराध को आगे बढ़ कर समाज की गर्दन पकड़ने का खुला समर्थन देते हैं!!!
शिखा का दिमाग जल रहा था आत्मा ज़ख्मी हो चुकी थी आज का दिन भी कैसा है!!
ऑफिस में भी महिलाओं से सबंधित मुद्दे पर चर्चा तर्क वितर्क फिर गुंडों की आवारा हरकत!!अब ये आंटी की मानसिकता!!किसको किसको सफाई दूं किससे किससे लड़ाई करूं!!सब अपने अपने दायरे में बंधे हैं सबने अपनी हद की रेखा खींच रखी है उससे आगे निकलने की चेष्टा ही नहीं करते!!
लेकिन मैं क्या करूं!!मां पिताजी को बताना मतलब मेरा नौकरी छुड़वाकर घर बिठाने का आदेश !!परेशान हो जायेंगे वे दोनों!!मकान क्यों खाली करूंगी मैं!!मेरी क्या गलती है गलत हरकत को बर्दाश्त करना भी गलत हरकत को बढ़ावा देने जितना ही खतरनाक है!! नहीं मैं कल खुद पुलिस थाने जाऊंगी आंटी नहीं जाती ना जाएं….मैं हिम्मत करने की पहल तो कर ही सकती हूं फिर देखती हूं पुलिस कुछ करती है या नहीं!!
सबेरा होते शिखा भगवान को प्रणाम कर हिम्मत करके थाने पहुंच गई ….रपट लिखवाते लिखवाते अनजाने में ही उसके आंसू बह निकले…
सुनिए सबसे पहले आप ये रोना बंद कर दीजिए महिलाओं की सबसे बड़ी कमजोरी उनका ये जब देखो तब छोटी बड़ी बातों पर रोने बैठ जाना ही रहता है मुझे इस रोने धोने से उतनी ही सख्त नफरत है जितनी अपराधी और गुंडों से रोना कायरता और हिम्मत हारने की निशानी होता है …
किसी की बुलंद सी रौबीली आवाज सुनते ही शिखा के मन मस्तिष्क में अपनी सहेली कालका की स्मृति जीवंत हो उठी..स्कूल के दिनों से ही कालका स्कूल भर में दबंग कालका के नाम से प्रसिद्ध थी लड़कियों को रोते नही देख सकती थी जो रोती थी उसे और रुलाती थी ..
शिखा से उसकी पक्की दोस्ती थी लेकिन शिखा की जल्दी से रो पड़ने की आदत से वो उसे बहुत डांटा करती थी तू अपने को लड़का समझ मैं तुझे शेखू बुलाऊंगी कहती तो शिखा जोर से हंस पड़ती फिर तो मैं भी तुझे काली बुलाऊंगी वो भी कहती क्योंकि दुष्टों के लिए तो तू पूरी काली माई ही बन जाती है। इस बात पर कालका खूब हंसती और उसके दोनों हाथ पकड़ गोल गोल घुमाते कहती हां कोई भी दुष्ट तेरे पास आए तो डरना मत रोना तो बिलकुल भी मत मैं काली माई बन जाऊंगी समझ गई ये रोना धोना तो कायरता की निशानी है …!
रोना धोना भूल चौंक कर उसने सामने देखा तो सच में कालका ही थी पुलिस की वर्दी पहने साहस की प्रतिमूर्ति लग रही थी
अरे काली तू….शिखा के आंसू मानो रुक गए थे।
अरे शेखू ये तू है..!!कालका भी अपनी बचपन की सहेली शिखा जिसे वो हमेशा शेखू कह कर पुकारा करती थी को इस हालत में देख कर सन्नाटे में आ गई थी।
क्या हुआ शिखा तुझे… तू यहां कैसे ….कहती जोर से लिपटा लिया था उसने डरी सी सहमी सी अपनी सहेली शिखा को ।
घोर संकट के समय इतना मजबूत अवलंब पा कर तो शिखा जोरों से रो पड़ी।
रोना मत शिखा अब और एक भी आंसू तेरी आंख से नही गिरना चाहिए तू चिंता मत कर उन दोनों गुंडों को मैं अच्छे से जानती हूं कोई उनकी पहचान करने की उनके विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट कराने की हिम्मत नही करता है इसीलिए वे निर्बाध निरंकुश हो अपने मनमानी करते घूम रहे हैं कोई उनके विरुद्ध गवाही नहीं देता रपट नहीं लिखवाता सब पुलिस से डरते है और गुण्डो से भी!!पुलिस पर अविश्वास करते हैं!!
आज तूने हिम्मत की है उनके विरुद्ध शिकायत दर्ज करने की!मैं यहां की थाना इंचार्ज हूं!!बस अब देखना तेरी ये काली माई क्या करती है ऐसा सब सिखाऊंगी यहां थाने लाकर कि आंख उठाकर किसी लड़की को नहीं देख पाएंगे ।
शिखा की आंखों में आनंद के आसूं झिलमिला उठे थे किसी को हो ना हो उसे अपनी दोस्त अपनी काली माई पर पूरा विश्वास था…… वो अपनी मन की आंखों के सामने उन गुण्डो की पिटाई होते देख रही थी ।
शिखा की रिपोर्ट पर पुलिस ने उन गुण्डो को पकड़ा सबक सिखाया शिखा की हिम्मत से शेष तटस्थ लोगों में भी थोड़ी जागृति आई।उसकी मकान मालकिन भी कालका जैसी दमदार पुलिस अधिकारी की सुरक्षा आश्वासन में खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी और शिखा से ऐसी सहेली होने से प्रभावित दिख रही थी।
एक सुरक्षित भय रहित माहौल जिसमें वो स्वाभिमान और आत्मविश्वास से अपनी नौकरी कर सकती थी और अकेले एक किराए के मकान में भी रह सकती थी उसकी आंखों के समक्ष सजीव हो उठा था।
दोस्तों अपने घर में पड़ोस में अपने आस पास घटित हो रही छोटी बड़ी गलत बातो का गलत हरकतों का विरोध तो हमे करना ही चाहिए निंदनीय हरकतों पर हमारा चुप रहना कहां तक उचित है!!हमारी खामोशी गलत हरकतों के प्रति हमारी स्वीकार्यता समझी जायेगी…रिश्वत लेना देना बुजुर्गो का अपमान महिलाओं के साथ अभद्र हरकतें आदि आदि ढेरों बातें है जिन्हे हम स्वीकार करते जा रहे हैं कि अरे हां आजकल तो ऐसा ही होता है…!सामाजिक दबाव बनाईए…. जो भी कोशिश हम कर सकते हैं हमें करनी तो चाहिए ना!!
मौलिक/अप्रकाशित
#आँसू
लतिका श्रीवास्तव