Moral stories in hindi :देखते देखते सामने ही गायत्री चक्कर खाकर अचेत हो जमीन पर गिर पड़ी।अचकचा कर महेंद्र बाबू गायत्री की ओर लपके।उसका सिर गोद मे ले गायत्री को होश में लाने का प्रयत्न करने लगे।खुद का चेहरा आँसुओ से सरोबार,पता नही कब खुद भी उसी अवस्था मे पहुंच जाएं, पर जब तक सांस तब तक आस ,गायत्री के माथे को सहला रहे थे। कुछ ही देर में गायत्री की आँखे खुली और अपने को महेंद्र बाबू की गोद मे पाया तो एक बार फिर जोर से दहाड़ मारके रो पड़ी।
रोते रोते बड़बड़ा रही थी,क्यूंजी हमने क्या भगवान को मानने में कोई कसर रखी,क्यूँ उसने हमारे लाल को हमारे मुन्ना को इस तरह हमसे छीन लिया, क्यूँ आखिर क्यूँ? क्या उत्तर दे महेंद्र बाबू,रोते रोते बोले भागवान ईश्वर को भी वो भा गया और उसी ने अपने पास बुला लिया।दोनो अकेलो का प्रलाप दिल दहलाने वाला था।
छोटे से कस्बे में महेंद्र बाबू और उनकी पत्नी गायत्री अपने एकलौते बेटे वैभव के साथ अपने एक छोटे से घर मे रहते थे।वैभव को दोनो मुन्ना ही कहकर बुलाते थे।महेंद्र बाबू की एक छोटी सी परचून की दुकान थी,उसी से घर का काम चल रहा था।बहुत अधिक आमदनी तो नही थी,पर इतनी आय अवश्य थी कि सरलता से घर खर्च भी चल रहा था,और मुन्ना की पढ़ाई भी।बस बचत काफी कम हो पाती थी। महेंद्र बाबू और गायत्री की निगाहें बस अपने मुन्ना पर ही टिकी थी।पढ़ लिखकर बड़ा हो जाये तो उसकी शादी कर दे तो घर मे पोता पोती आ जायेंगे तो उनके साथ ही जीवन पूर्ण हो जायेगा, ये सोच सोच कर ही दोनो का मन उत्साह से भर जाता, जिंदगी आसान लगने लगती,मेहनत और अभाव गौण हो जाते।मुन्ना का हँसता चेहरा सामने आ जाता।
मुन्ना ने भी अपने माता पिता को निराश नही किया,वो मेधावी छात्र निकला, वजीफा मिलता तो उसका नाम मात्र का खर्च ही पिता को वहन करना पड़ता।महेंद्र बाबू भी मुन्ना की शिक्षा के प्रति पूरी तरह चिंतित रहते। इंटरमीडिएट करते ही मुन्ना का चयन इंजीनियरिंग में हो गया।महेंद्र बाबू खूब समझ रहे थे कि मुन्ना की इस उच्च शिक्षा पूर्ण कराने के लिये अब उनकी असली परीक्षा भी है और तपस्या भी।महेंद्र बाबू ने अपनी दुकान के समय से अतिरिक्त समय मे दो प्रतिष्ठानों में मुनीम गिरी का कार्य भी पकड़ लिया ताकि मुन्ना की पढ़ाई में उसकी फीस के कारण कोई बाधा न आने पाये। उनके परिश्रम का प्रतिफल उन्हें तब मिल जाता जब मुन्ना उनके गले मे हाथ डाल बाल सुलभ चेष्टा करते करते कहता बाबूजी बस कुछ ही समय बचा है,आपको कुछ भी नही करने दूंगा।
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धीरे धीरे समय बीतता जा रहा था,मुन्ना का अंतिम वर्ष चल रहा था।यही समय कटना सबके लिये मुश्किल हो रहा था।एक दिन मुन्ना चहकते हुए घर आया और अपनी माँ को गोद मे उठा नाचने लगा।महेंद्र बाबू आश्चर्य से उसे देख बोले अरे मुन्ना इतना खुश क्यों है, कुछ बता तो? मुन्ना बोला पापा आज कॉलेज में कैंपस इंटरव्यू थे,बड़ी बड़ी कंपनी के लोग आये थे।जानते है पापा क्या हुआ,एक मल्टीनेशनल कंपनी ने मुझे चुन लिया है और आफर लेटर भी दे दिया है।बस आखिरी परीक्षा को 6 माह रह गये है,परिणाम आते ही पापा जॉइनिंग हो जायेगी।सुनकर गायत्री तो खुशी से पागल सी हो गयी।महेंद्र बाबू ने भी मुन्ना को गले से लगा लिया।परिवार में इससे बड़ा खुशी का पल भला और क्या हो सकता था।
ये 6 माह भी बीत गये, मुन्ना के फाइनल एग्जाम भी हो गये।कंपनी ने मुन्ना को हैदराबाद की लोकेशन दी थी।कंपनी ने ही मुन्ना को एयर टिकट भी भेजा था।आखिर मुन्ना के हैदराबाद जाने की भी तिथि आ ही गयी।अब जहां घर मे मुन्ना के जॉब लगने की खुशी थी तो वहीं उसके दूर जाने का दुःख भी था।लेकिन जीवन पथ पर बढ़ना तो था ही।मुन्ना मां और पापा से विदा ले एयरपोर्ट चला ही गया।भीगी आंखों से गायत्री और महेंद्र बाबू ने बेटे को विदाई दी।
चार घंटे बाद ही एक ऐसा वज्रपात हो गया,समाचार आया कि मुन्ना वाला हवाईजहाज क्रेश हो गया,समाचार ये भी आ गया कि किसी के भी बचने की संभावनाएं नही है।खोज की जा रही है।आंसुओं का समुन्द्र बह निकला।जीवन भर की कमाई,जीवन भर की ममता,जीवन भर का संघर्ष सबकुछ तो लुट गया था।कोई शब्द सांत्वना के न गायत्री के पास महेंद्र बाबू के लिये थे और न ही महेंद्र बाबू के पास गायत्री के लिये थे।कोई कहे तो क्या कहे?
तीन दिन बीत गये, रिश्तेदार, मित्र सब लौट गये, आंखों से आंसू भी सूख गये।अब चाह कर भी गायत्री की आंखों में आंसू नही थे,जैसे वो पथरा गयी थी।उसके असीम दुख को महेंद्र बाबू समझ रहे थे,वो चाहते थे गायत्री रोये खूब जोर से रोये जिससे उसके सब दुख बह जाये, पर गायत्री तो बस चुपचाप शून्य को ही निहारती रहती।
घंटी बजी तो महेंद्र बाबू ने दरवाजा खोला तो सामने पाया एक अनजान व्यक्ति को। महेंद्र बाबू को देख वो व्यक्ति बोला सर मैं वैभव की कंपनी से आया हूँ, मैं आपको एक खुशखबरी देने आया हूँ।सुनकर महेन्द्रबाबू बोले खुशखबरी, क्या हमारे जले पर नमक छिड़कने आये हो?बेटे को गये चार दिन ही तो हुए हैं।कंपनी से आये व्यक्ति ने कहा सर वैभव बिल्कुल सकुशल है,मैं यही खुशखबरी देने आया हूँ।
क्या कह रहे हो?क्या मैं इतना भाग्यवान हूँ, कहाँ है मेरा बच्चा?कैसे हो गया ये चमत्कार?अरे गायत्री सुन तो अपना वैभव ठीक है,सकुशल है।बदहवास सी गायत्री दरवाजे पर ही भागी चली आयी,कहाँ है मेरा मुन्ना,कहते कहते बेसुध हो गिर पड़ी।महेंद्र बाबू ने उस व्यक्ति की सहायता से गायत्री को उठा पलंग पर लिटाया और पानी को मुंह पर छिड़क उसे होश में लाने का प्रयास करने लगे।
कंपनी से आये व्यक्ति ने बताया प्लेन घने जंगल के ऊपर क्रेश हुआ संयोगवश वैभव एक बड़े विशाल पेड़ पर इस प्रकार गिरे कि वही अटक गये बेहोश तो हुए पर चोट बहुत कम आयी। बचाव कार्य के दौरान वैभव को वहां से उतारा गया और हैदराबाद के हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया है, जहां वो होश में आ गये है,खतरे से बाहर है।मैं आप दोनों को उनके पास ले जाने को आया हूँ।
सब कुछ सुनकर एक बार फिर गायत्री और महेन्द्रबाबू की आंखों से आँसुओ की धार बह रही थी।पहले और अबके आंसुओ में अंतर तो गायत्री और महेन्द्रबाबू ही समझ सकते थे।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक, अप्रकाशित।
#आँसू