मायके से प्यारा ससुराल मेरा – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सिया बहुत सोच समझ कर फैसला ले लिया था, अब जितना जल्दी हो सके अपने घर आंगन में लौटना हीं होगा..

                              इस फैसले के बाद उसका मन शांत हो गया और अतीत की सुखद यादों में खो गई.. पापा सीए मम्मी इंजीनियर और भईया एक कंपनी में एचआर, और मैं पीएचडी कर रही थी.. हमलोग दिल्ली के एक पॉश इलाके में रहते हैं.. मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पोस्ट पर कार्यरत संजय पापा को बहुत पसंद आया.. मम्मी से राय विचार किया, सिया दिल्ली से सीधे मुंबई चली जायेगी.. संजय की पोस्टिंग मुंबई में थी.. परिवार बिहार के एक छोटे से शहर में रहता है..संजय के पापा स्कूल में प्रिंसिपल थे, रिटायरमेंट के बाद वहीं घर बना लिए.. संजय का एक छोटा भाई और एक बहन है.. दादी है.. सब लोग एक साथ रहते हैं.. सिया मुंबई रहेगी संजय के साथ..

                     सिया संजय से पहली मुलाकात में हीं बहुत प्रभावित हुई.. खूबसूरत ब्यक्तित्व गंभीर और मृदुभाषी एक नजर में हीं सिया को भा गया..

                धूमधाम से सिया की शादी हो गई.. शादी के बाद सिया ससुराल आई.. हंसमुख स्वभाव की सास चुलबुली सी ननद और शर्मीला देवर सिया का बहुत ख्याल रखते… एक सप्ताह में सिया ने महसूस किया, मां (सासु मां) किसी के आने पर सिया को दुपट्टे से सिर ढकने को कहती वरना शूट पहनने की छूट अगले दिन से हीं मिल गई थी.. जबकि आसपास की बहुएं इस छूट से वंचित थी.. दादी भी सिया को अपने पास बैठाकर खूब बातें करती.. सुबह नहाकर आती तो सास ननद दोनो मिलकर पीले रंग की साड़ी पहनाती और फिर मंडप में बैठाकर नाक से मांग तक पीला सिंदूर लगाती और सिया के पसंद की मिठाई आंचल में देती.. अपना रूप देख सिया खुद हीं लजा जाती..

                  देवर चुपके से कभी पानी पूरी कभी जलेबी समोसे लाकर सिया के कमरे में रख देता..

                       सात दिन कैसे बीते पता हीं नहीं चला.. नम आंखों से सबने जल्दी आने का वादा कर सिया को विदा किया ..

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              मुंबई में रहकर भी सिया को ससुराल बहुत याद आता. अभी चौका छूआई की रस्म भी बाकी थी, जिसे अगली बार आने पर पूरा करने की बात मां ने कहा था…

                छोटी ननद शुभा की शादी नवंबर में थी और शादी के बाद सिया के ससुराल में उसका पहला छठ पर्व था . संजय ने सिया को पहले हीं फ्लाइट से भेज दिया और खुद एक दिन पहले आ कर शुभा की शादी के बाद जाने का प्लान किया था.. शुभा सिया के साथ शादी को शॉपिंग करती.. मां एक दिन उन दोनो के साथ बाजार गई और सिया के पसंद से एक साड़ी और एक लहंगा चोली खरीदी.. सिया ने बहुत मना किया.. मेरी शादी की साड़ियां अभी वैसी हीं नई पड़ी हैं पर मां कहां मानने वाली थी..

              छठ के नहा खा के दिन संजय आ गए.. छठ पर्व को इतने करीब से सिया पहली बार देख रही थी क्योंकि मम्मी करती नही थी और गांव हमलोग जाते नही थे…

                      शुभा और सिया दोनो मां की सहायता कर रही थी.. देवर सुजीत संजय और बाबूजी भी छठ पूजा की तैयारी में लगे थे.. इस बार जोड़ा कोशी भरा रहा था क्योंकि शादी हुई थी.. खरना के बाद पहले अर्घ्य की तैयारी हो रही थी सिया और शुभा ठेकुआ बनाने और दौरा सूप सजाने में मां के साथ लगी थी.. शाम को सिया दुल्हन की तरह सजकर गंगा किनारे सपरिवार शाम के अर्घ्य के लिए गई..

ये अलौकिक अनुभव था सिया के लिए.. फिर कोशी भरा गया गीत हुए.. तीन बजे सुबह हीं फिर सब लोग नहा धोकर गीत गाते गंगा किनारे गए.. मां पानी में खड़ी थी, बिल्कुल देवी जैसा तेज उनके चेहरे से टपक रहा था.. सूर्योदय से कुछ देर पहले सिया मां के हाथों में सिंदूर और एपन लगाया, नाक से सिंदूर लगाया और फिर सूप लाकर सबने बारी बारी से मां को दिया..

पूजा संपन्न होने के  बाद मां ने सिया को नाक से सिंदूर लगा खोइंछा में ठेकुआ देकर दूधो नहाओ पूतों फलों सदा सौभाग्यवती  रहो का आशीर्वाद दिया.. फिर सबको टिका लगा प्रसाद दिया.. कितना खुश हो रही थी सिया कोशी दहाने पटाखे फोड़ने में भी संजय और सुजीत को बाबूजी ने सिया को साथ ले जाने को कहा..

  फिर गरम गरम पकौड़े और अदरक इलायची की चाय सिया और शुभी ने सबको दिया फिर खुद खाया.. गुड़ का ठेकुआ सिया को बहुत पसंद आया.. मिट्टी के चूल्हे पर बना सोंधी खुशबू वाला खीर और ठेकुआ सिया के लिए नई चीज थी.. रात में घर के मर्दों ने मिलकर दुआर पर गोइठा पर लिट्टी और चोखा बनाया.. बहुत मजा आया खा कर..

                 और फिर शुभा की शादी की रस्में शुरू हो गई.. मेहमान आ गए थे.. रोज रात में डांस होता, सिया खूब नाचती दादी और मां निहाल हो उसके सिर से पैसे निवछ बांट देती.. हल्दी मेंहदी सारी रस्में खूब अच्छे से चल रही थी.. हंसी मजाक ठहाके पंगत में बैठकर खाना ये सब सिया के लिए नया और सुखद अनुभव था..

कभी डांस के बीच कोई संजय को खींच कर ले आता और संजय सिया लजाते सकुचाते धीरे धीरे समा बांध देते.. मां और दादी मेहमानों से सिया की तारीफ करते नही थकती..हंसी खुशी शादी का दिन आ गया.. और फिर अगले दिन सबको रुलाकर शुभा ससुराल चली गई

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.. रोती हुई मां दादी और बाबूजी को सिया ने ये कहकर चुप कराया ये बेटी है न आपके पास.. घर उदास हो गया था.

बेटियां घर की रौनक होती हैं..

        मुम्बई जाने से एक दिन पहले संजय के पास मेल आया कंपनी एक साल के लिए दस लोगों को यूएसए भेज रही है जिसमे उसका भी नाम है.. दस दिन बाद जाना है…

संजय को इसका बहुत फायदा मिलने वाला था भविष्य में. सिया खुश भी थी और दुखी भी.. संजय के बिना एक साल कैसे रहेगी… दिन तो कट जायेंगे पर रातें… ओह..

         मम्मी ने सुना तो माथा पीट लिया.

सिया को कहा सीधे दिल्ली आ जाओ.. पीएचडी का बाकी काम पूरा करो.. कोई जरूरत नहीं ससुराल में रहने का.. ना एसी है ना मॉल छोटा शहर क्या कस्बा कहो.. कभी तुझे गांव लेकर नही गई..

   सिया लाख समझाती यहां मुझे बहुत अच्छा लगता है.. अरे सिया तू  बहुत भोली है मीठा मीठा बोलकर तुझ से सारे काम करवाएगी तेरी सास.. शुभा भी नही है… मम्मी रोज ऐसी हीं बातें करती.. एक दिन स्पीकर ऑन कर बात कर रही थी संजय सारी बातें सुन रहे थे.

संजय ने कहा सिया अपनी मम्मी से कम बात किया करो.

किसी को जज करो तो अपना दिमाग लगाओ.. एक तो संजय से जुदाई और मम्मी के खिलाफ संजय की बातें मुझे बर्दाश्त नही हुई.. मैने भी मम्मी की बात दूहरा दी बिना पति का ससुराल और बिना मां का मायका नही होता… एक बिस्तर पर साथ सोए संजय ने पलटकर भी मेरी ओर नही देखा..

            अगले दिन मुझसे कहा मुंबई जाने से पहले तुझे दिल्ली छोड़ते हुए जाऊंगा.. तैयार रहना.. जब तुम्हारी इच्छा हो तब फोन करना टिकट करवा दूंगा, एयर पोर्ट से सुजीत तुम्हे पिक कर लेगा..मैने शुभा से किए वादे मां बाबूजी को मेरी कमी महसूस नही होने देना, कैसे भुल गई..

   मां बाबूजी दादी कितना रो रहे थे मेरे और संजय को विदा करते वक्त.. कभी कभी विवेक कैसे साथ छोड़ देता है बुद्धि पर पर्दा पड़ जाता है…

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अपने -पराये की परिभाषा – संगीता त्रिपाठी

        तीन महीने में हीं मैंने ये महसूस किया कितना अंतर आ जाता है सोच में नजरिया में एक लड़की के.. मम्मी पापा भईया के लिए लड़की फाइनल करने में लगे थे.. उसके कमरे परदे इंटीरियर में व्यस्त थे.. पीएचडी में भी मन नहीं लग रहा था.. मम्मी पापा और भईया तीनो चले जाते.. घर काटने को दौड़ता.. सहेलियों से भी मिलने का मन नहीं करता.. अपराध बोध घर करता जा रहा था.. कितने भोले भाले लोग हैं मेरे ससुराल के.. कितना प्यार दिया है मुझे.. मुझे अपने# घर आंगन # में लौटना हीं होगा.. आज मैं ये महसूस कर रही थी अपने #घर आंगन #से ज्यादा सकूं सुख और खुशी कहीं नहीं है..

    मम्मी पापा मेरे अप्रत्याशित फैसले से हैरान हैं मम्मी अपनी दलीलें दे रही हैं पर मैं अपने फैसले अडिग हूं.. पापा बेमन से एयरपोर्ट छोड़ने जा रहे हैं.. कैब बुक कर घर पहुंच गई.. बाबूजी गाड़ी की आवाज सुन बाहर आए, मुझे देख उनकी आंखें भर आई. मां को आवाज दी.. मां दादी सुजीत सब बाहर आ गए.. मां लिपट गई अब तुझे कहीं जाने नही दूंगी शुभा गई तो संतोष कर लिया तू तो हैं ना.. दादी भी आंखें पोंछ रही थी.. मां आप कमजोर लग रही हैं बीमार थी क्या.. अब तू आ गई है सब हरा भरा हो जायेगा.. मेरा #घर आंगन# मुस्कुरा उठा है.. और रात में सुजीत ने वीडियो कॉल कर के संजय को मुझे दिखाया तो संजय के उदास चेहरे पर मुस्कान खिल उठी..

   #  स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

 

Veena singh

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