Moral stories in hindi : आज मेरे बेटे अनमोल की शादी हुई है सब बहुत खुश है ! कि लड़की वालों ने खूब ख़ातिरदारी करी और सब रिश्तेंदारों का अच्छे से मान किया । अनमोल के फूफा जी तो अपनी अंगूठी देख फूले नहीं समा रहे थे । घर में एक नया सदस्य आया है उसकी फ़िकर छोड़ सब अपने में ही मग्न हैं ।
पर मैं बहू की सोच थोड़ा परेशान हो रही थी । एक तो शादी के बाद लड़की के लिए सब नया और अटपटा सा होता है ।ना चाहते हुए भी हर बात पे हामी भरना , जो पसंद ना हो वो भी करना और सबसे बड़ी बात खाने के लिये भी अपनी पसंद का खाना देते है और फिर पूछते है खाना अच्छा है ! पसंद आया ना !
अब नयी नवेली दुल्हन से क्या उम्मीद रखते है कि वो बोले मुझे अच्छा नहीं लगा । मुझे अकेला छोड़ दो ! थोड़ा आराम करने दो ! यही सोच कामिनी जी अपनी बहू के पास गई …..उन्होंने देखा कि रज्जों पहले से ही खाने की प्लेट लिए बहू के पास खड़ी है । और बहू उस प्लेट को ऐसे देख रही थी मानो जान जाने वाली है । ये देख कामिनी जी बोली रज्जो ये तुम क्या लेकर आयी हो ???
मम्मी जी जो सबके लिए बना है वहीं लायी हूँ । आलू ,पनीर ,करेला पूरी अगर बहू को रोटी खानी है तो मैं रोटी भी लाती हूँ ।
नहीं ,रुको रज्जो !
कामिनी जी बोली बेटी तुम्हें खाने में क्या चाहिए बोलो ! जो पसंद हो वो ही बताना ….
नहीं ,मम्मी जी ! मुझे भूख नहीं है ।
भूख हो या ना हो ख़ाना तो पड़ेगा । हमारी पसंद का ख़ाना है या अपनी पसंद का वो तो बताना पड़ेगा ।
थोड़ी देर में ऋचा हिचकिचाते हुए बोली मम्मी जी ! मैं करेला नहीं खाती आलू की सब्ज़ी ,पनीर खा लेती हूँ ! पर आज अच्छा नहीं लग रहा है तो मैं सिर्फ़ फ्रूट चाट ख़ाना चाहूँगी ।
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कामिनी के साथ खड़ी रज्जो ऋचा को ऐसे टुकुर टुकुर देख रही थी , मानो उसने कोई अजीब चीज माँग ली हो ।
रज्जो बोली “ये भी कोई खाना हैं”।
मम्मी जी कोई गलती हो गई हो तो माफ़ कर दीजिएगा ।
कोई बात नहीं बेटी मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ भी वोही हो जो मेरे साथ हुआ था । क्या हुआ था मम्मी जी ????
तभी रज्जों बोली मैं बताती हूँ ..मम्मी जी ना …..
रज्जो ! जो बोला है वो खाने के लिए लाकर दो
ऋचा को लगा कि उसकी सास थोड़ी सख़्त मिज़ाज की है । थोड़ी देर बाद वो चाट खा सो गई…..
शाम को जब सब रस्में हो गई , तो सब एक साथ बैठे हुए हंसी मज़ाक़ कर रहे थे । तभी पता चला कि जब मम्मी जी की शादी हुई थी , तो उन्हें खाने में कटहल की सब्ज़ी दी गई थी । मम्मी जी शर्म में कुछ बोल नहीं पायी और खाने के बाद मम्मी की तबियत इतनी ख़राब हुई की डॉक्टर को आना पड़ा तब पता चला कि मम्मी जी को कटहल से एलर्जी थी । कामिनी जी हंसते हुए बोली हमारे समय में कौन सा एलर्जी टेस्ट होता था । ना ही कोई नयी नवेली से कुछ पूछता था कि क्या खाना हैं बस जो बना होता था लाकर दे देते थे ।
अच्छा मम्मी जी ! इसीलिए आप पूछ रही थी कि क्या ख़ाना है ??
हाँ बेटा ! मैं नहीं चाहती थी कि मुझे जो तकलीफ़ हुई वो मेरी बहू को भी हो ।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया मम्मी जी । तब ऋचा को एहसास हुआ कि उसकी सास सख़्त दिल नहीं नर्म दिल की मालिक है ।
ऐसे ही प्यार अपनेपन और प्यारी अठखेलियों के साथ ऋचा का इस घर में स्वागत हुआ । आज ऋचा भी मेरी तरह बनना चाहती है । जैसे मैं सब रिश्तों को साथ ले प्यार से बढ़ी वैसे ही वो भी चाहती है । ऐसे ही तो घर आँगन ख़ुशियों से महकता हैं ।
लेकिन मैं जब भी पीछे मुड के देखती हूँ तो समझ नहीं पाती कि जिस घर में मेरा बचपन बीता जिस घर से मैं विदा हुई वो मेरा घर आँगन है । या फिर ये घर जिस में मैं विदा होकर आयी जिसे मैंने अपने हाथों से बनाया । ये मेरा घर आँगन है । दोनों ही घरों के आँगन से मेरी यादे जुड़ी है ।
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बस फर्क इतना है कि उस आँगन में मेरा बचपन बीता था और इस आँगन में मेरा जीवन बीता है । आज मैं और मेरी बहू की पहचान अलग हैं , रुतबा भी अलग हैं । पर आज ये घर हम दोनो का घर आँगन हैं ।
#घर-आँगन
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति