Moral stories in hindi : कितनी खूबसूरत सुबह थी, चारों तरफ हरियाली, फूलों का एक छोटा सा खूबसूरत बाग ,ठंडी शुद्ध हवा ,चिड़ियों की चहचहाहट, एक गहरी साँस ली रवि ने , एक अलौकिक आत्मिक आनन्द प्राप्त हो रहा हो जैसे ।
कितना अच्छा लग रहा था दादा जी के गाँव में ।इतना तरो ताजा , इतना खुशनुमा वातावरण शायद पहले कभी नहीं देखा था उसने।
प्रकृति के सौन्दर्य से कितना दूर रहा था न अब तक ।कितनी देर वह मन्त्रमुग्ध सा निहारता रहा उगते सूरज की लालिमा को। अपूर्व अनुभूति से भर गया था मन
उसका ।सामने ही नदी की निर्मल जल धारा में डुबकी लगाकर कितनी ताजगी महसूस की उसने।
दादी ने उसकी पसन्द का नाश्ता बनाकर रखा था ।तृप्त हो गया ।दादी से कहने लगा “, इतने दिन क्यों दूर रखा मुझे इस सब से , क्यों नहीं पहले मुझे बुलाया अपने पास , क्या मेरी याद नहीं आती थी आपको दादी?”
“बहुत आती बच्चे बहुत अधिक आती थी , पर पति के स्वाभिमान के सामने माँ की ममता हार जाती है , माँ का प्यार हार जाता है , कलेजे पर पत्थर रखना पड़ता है । तुझको क्या बताऊँ, अपने बेटे के जन्मदिन पर कितने आँसू पीकर उसकी खुशहाली की प्रार्थना करती थी प्रभु से ।कितनी बार चाहा कि एक बार तुझे देख पाऊँ किसी तरह ।शहर में यहाँ का राजेन्द्र रहता है ,कभी कभी जब वो आता था तो चुपके से खैर खबर सुना जाता था तेरे दादाजी के पीछे।”
” हाँ दादी उन्होंने ही एक बार मुझे बताया था कि दादी तुम सब को कितना याद करती हैं, उनसे ही मैंने आप का पता पूछ लिया था , सोच लिया था एक बार जरूर आऊँगा आपसे मिलने।”
” जुग जुग जियो मेरे बच्चे, मैं एक बार तुम को देख पाई , मुझे तो लगता था कि मैं ऐसे ही अपने बच्चों के लिये तरसते हुये आँखे मूँद लूँगी अपनी।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
‘ नहीं दादी ऐसा मत कहो, इतनी अच्छी, प्यारी दादी
का प्यार बहुत समय तक चाहिये मुझे ।”
दादी के गले लग गया रवि , दादी की आँखों से प्रेमाश्रु की धार बहने लगी।
शहर से डाक्टर बन लौटते समय वह रास्ते में दादा जी के गाँव रुक गया ।
दादा दादी उसे देखकर चकित रह गये , कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह कभी उनसे मिलने आ सकता है। एकदम खुश हो गये , कितने वर्षों बाद आया था वह गाँव, घर का दूध , घी , अपने खेत की सब्जी , सब कुछ शुद्ध , वह बहुत खुश हुआ ।
दादी को कहने लगा ,” कितने समय बाद इतना शुद्ध वातावरण मिला है । शहर में प्रदूषण, धुआँ,शोर इतना होता है कि दम घुटने लगता है ।कितना अच्छा लग रहा है यहाँ ।
जानती हो दादी , हमारे शहरों की धुन्ध में तारे तक नहीं दिखते है रात में और सारे दिन शोर , भीड़ भाड़, ट्रैफिक, कितनी शान्ति है यहाँ ।”
सुबह दादाजी उसे अपने खेत दिखाने ले गये ।
बहुत सारे खेत थे और थोड़ी दूर पर ही बहुत बड़ा फार्म हाउस था ,
इस कहानी को भी पढ़ें:
कहने लगे , ” मैने ये सारी जमीन तेरे पापा के लिये खरीदी थी , कि डाक्टर बन कर आयेगा तो यहाँ अस्पताल बनवा दूँगा ।दूर दूर तक कोई अस्पताल नहीं है,लोगों को बहुत दूर शहर जाना पड़ता है ,
पर उनको तो शहर का जीवन पसन्द था , मेरी एक न सुनी ।शहर में नौकरी मिलते ही पराया हो गया , अपनी मर्ज़ी से शादी कर ली न पूछना न बताना , न कोई सम्पर्क।
तब से ही मेरे और उसके मनों के बीच दीवार खड़ी हो गई , मैने फिर कोई वास्ता नहीं रखा उससे।
गाँव का मुखिया हूँ ,जितना हो सकता है लोगों की सहायता करता हूँ, तन, मन, धन से मदद करने को तैयार रहता हूँ । इन लोगों से ही मिल जाती है परिवार की खुशी, बहुत प्यार , बहुत सम्मान करते है मेरा।”
रवि दादाजी की बातें ध्यान से सुन रहा था और मन ही मन कुछ निश्चय कर रहा था।
घर पहुँच कर उसने पापा को फोन किया ।पापा ने पूछा ” कब आ रहे हो ?काम पूरा हो गया?”
कहने लगा ,” पापा,हाँ मै आ गया हूँ, मै गाँव में दादाजी के पास हूँ, मैं अब लौटकर कभी घर नहीं आने वाला, यहीं अस्पताल खोलना है मुझे, जो सपने उन्होंने आपको लेकर देखे थे उनको मैं पूरा
करूँगा ।”
” ये सब तुम क्या कह रहे हो ?हमने नहीं उन्होंने ही हमसे सम्बन्ध खतम किये हैं।”
” आपने एक बार आकर उनके पैर छूकर अपनी गलतियों की क्षमा मांगी?एक बार उनके गले लगकर मनों में खिंची दीवार को दूर करने का प्रयास किया ।
दादी कितना याद करती हैं आपको , माँ बाप के लिये बच्चों के दूर हो जाने का कष्ट क्या होता है यह तब समझोगे जब अपने बच्चे से दूर हो जाओगे ।”
पापा का मन भर आया जैसे किसी ने दुखती रग को छू दिया हो। कहने लगे,”हम जल्दी ही पहुँच जायेंगे रवि।”
फोन रख दिया उन्होंने ।
अगली सुबह तीनों बैठे बातें कर रहे थे तभी दादाजी ने देखा कि घर के सामने गाड़ी आकर रुकी और उनके बेटा बहू ने आकर एकदम उन दोनों के पैर पकड़ लिये।
दादाजी ने उन को उठाकर आश्चर्य से पूछा , तुम यहाँ क्यों आये? कैसे आये?