Moral stories in hindi : अरे जीतू रीना क्या कर रहे हो भाई जल्दी करो तुम्हारी फ़्लाइट का समय हो गया है दो बजे तक एयरपोर्ट पहुँचना है ,यह कहकर वह खुद भी तैयार हो गई थी उनको छोड़ने जाने के लिए।
उनके पति रमेशचंद्र उनकी फुर्ती देख हैरान थे ।क्योंकि शीलाजी के घुटनो में अक्सर दर्द रहता था।इस कारण वो बहुत कम ही काम करती थी ।वैसे भी घर में हर काम करने वाले लगे हुए थे।रमेशचंद्र जी बहुत अच्छी पोस्ट पर थे ,और अब बेटा व बहू दोनो भी बहुत बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करते है ।
घर में किसी बात की कोई कमी नही थी ।
बेटे की शादी को अभी तीन साल ही हुए थे ।वह दोनों आज मॉरीशस जा रहे थे घूमने।
उनकी इस सारी ट्रिप का सारा इंतजाम उनकी पत्नी ने ही किया था टिकिट से लेकर वहाँ पर रुकने तक का बिना बेटे बहू को बताए ।
दीनू कार बाहर निकाल ली। जी मेडम तो जल्दी सामान रखो।ये लोग तो बस , इतने में ही रीना और जीतू भी आ जाते है।
वह उन दोनों के पैर छूते है।
“पापा आप अपना ध्यान रखना ” दवाई समय पर खा लेना। मम्मी आप अकेले पड़ जाओगी ,”नही बेटा अकेले कहाँ है हम ” दीनू रमा लखन सभी तो है हमारा ध्यान रखने।
अब चलो जल्दी करो वैसे भी दिल्ली का ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही रहता है।
रमा तुम साब को खाना दे देना और दवाइयाँ भी । सुनिए आप आराम करना में इन लोगो को छोड़ कर आती हूँ।
अच्छा ठीक है तुम जाओ में भी चलता अगर ठीक होता तो।
इस कहानी को भी पढ़ें:
उन लोगो को छोड़ कर आते समय शीला जी अपने अतीत को याद करने लगती है । उस समय जब उनकी शादी नही हुई थी , उनकी दूसरी सहेलियाँ जिनकी शादी हो गई थी वह अक्सर उनको मिलने के बाद अपने हनीमून के या कही भी घूमकर आने के बाद अपने अनुभव बताती तो उनका मन भी सुहाने सपने बुनने लगता था ।
उनको भी घूमने का बहुत शौक था परंतु बड़ा सम्मिलित परिवार था , पिता क्लर्क थे सरकारी दफ्तर में उनकी सीमित आय में वह कोशिश जरूर करते थे कि बच्चों की इच्छाएँ पूरी कर पर सब कुछ इतना सम्भव नही हो पाता था ।
जब उनकी शादी हुई वह पहली बार घूमने गयी थी कुल्लू मनाली ।
पति के साथ हाथो में हाथ लेकर पहाड़ो पर घूमना कलकल बहती हुई नदी झरनों का शोर लम्बे लम्बे चीड़ के पेड़ हरीभरी लहरदार सडक़ सब कुछ सपने जैसा ही था।
उनके वह दस दिन कैसे निकल गए उनको पता ही नही चला ।
लौटते समय उन्होंने अपने पति से वाद लिया कि हर साल में एक बार वह दोनों समय निकाल कर घूमने जरूर जायेगे चाहे कुछ भी हो।
उस वक्त रमेशचंद्र जी ने भी वादा किया , क्योंकि वह चाहती थी वह समय पल सिर्फ उनके व उनके पति के होंगे ,परन्तु वक्त बीतते बीतते वो वादा सिर्फ वादा ही रहा परिवार की जिम्मेदारी माता पिता की देखभाल रमेश जी की व्यस्तताओं के बीच और फिर उनके माँ बनने के बाद उनका वह समय खोता चला गया और उनके वह सुनहरे सपने सपने ही रह गए थे ।
इसी बीच उन्होंने कितनी ही बार घूमने जाने का प्रोग्राम भी बनाया पर हर बार किसी न किसी कारण वो जा ही नही पाए। बस एक बार रमेशजी ने हाँ भरी वो भी उनके माता पिता की इच्छा चारो धाम करने की थी। बाद में रमेशजी का प्रमोशन होता गया औऱ वह दिन ब दिन व्यस्त होते गए इस कारण उनके वह सपने सपने ही रह गये और उम्र का वह हसीन दौर ऐसे ही बीत गया।
उम्र का वह दौर गुजर जाने के बाद उनकी मन की इच्छाएँ तो बनी रही सपने वह सँजोती रही पर उनको व रमेश जी को उम्रदराज बीमारियों ने जकड़ लिया ,व रमेश जी को अचानक ब्लडप्रेशर बढ़ने से लकवा हो गया । आज लगभग दो सालों से वह व्हीलचेयर पर व दूसरों पर ही निर्भर हो गए,इस कारण अब तो वह कही और तो क्या उनको छोड़कर अपने मायके भी नही जा पाती है।
इस कहानी को भी पढ़ें:
लेकिन पिछले शनिवार को जब वह रात को रमेश जी के लिए दूध लेने रसोईघर में जा रही थी, तो बहू और बेटे के बीच होती बहस सुनी बहू आने वाली छुट्टियों में कही घूमने जाने का बोल रही थी पर जीतू अपने पिताजी की तबियत का बोल कर जाने के लिए मना कर रहा था।
उसी वक्त उनको अपना बीता हुआ समय याद आने लगा साथ उनके धाराशायी सपनो के खंडहर और वह खुशनुमा दिन जब वह कही जाने का सोचती थी वह पल जो रमेशजी के साथ कभी अकेले में जीने का सोचती थी पर वह सब जो उनके लिए एक टूटा सपना बनकर ही रह गया था वह वही दिन अपने बच्चों के जिंदगी में नही देखना चहाती थी। वह नही चहाती थी कि जो दिन समय वह खुद नही जी पाई वही दर्द व टूटे सपने लेकर उनकी बहू भी आगे जिये ,उन्होंने उसी वक्त सोच लिया जो हसीन वक्त उन्होंने यूही घर गृहस्थी में निकाल दिए ,वह खुशनुमा वक्त अपने बेटे बहू की जिंदगी में से नही जाने देगी। आज बच्चों के चेहरे पर खुशी देखकर वह
मानो खुद वही पल जी रही थी । आज उनके चेहरे पर एक तृप्ति भरा भाव था ।
मंगला श्रीवास्तव
इंदौर
स्वरचित मोलिक रचना