क्या बहू खुद बेटी बन पाती है – संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : ” अब ससुराल जा रही हो बेटा वहाँ कुछ भी मायके जैसा नही मिलेगा बहुत सोच समझ कर चलना वहाँ , जल्दी उठना और सबका ध्यान रखना समझी और अपने सास ससुर को ही माँ बाप समझना !” विदाई से पहले निशि जी अपनी बेटी काशवी को समझाते हुए बोली।

” जी मम्मा !” कहने को तो काशवी ने बोल दिया पर मन ही मन सोचने लगी जब सास ससुर मुझे बेटी समझेंगे तभी तो मैं उन्हे माँ बाप समझूंगी।

खैर नम आँखों से काशवी ने विदाई ली और रोते हुए उसके माता पिता ने उसे विदाई दी। काशवी बार बार अपने उस घर आंगन को देख रही थी जो अब उसके लिए पराया हो चला था।

ससुराल मे उसका स्वागत बहुत अच्छे से हुआ । घर मे सास- ससुर और पति कार्तिक थे । दो दिन विवाह की रस्मो मे बीत गये और फिर वो पति कार्तिक के साथ कश्मीर की हसीन वादियों मे निकल गई अपने नये रिश्ते की बुनियाद मजबूत करने। वहाँ एक हफ्ता बिता दोनो वापिस आ गये। 

” मम्मी जी माफ़ करना उठने मे देर हो गई !” अगली सुबह काशवी उठकर आई तो सास माला जी को रसोई मे लगा देख बोली।

” कोई बात नही लो ये चाय पियो और ये कैसी साडी पहनी है तुमने नही आती पहननी तो सीख लो वरना मत पहनो कोई जरूरी तो नही !” माला जी बोली।

” वो मम्मीजी !” काशवी बस इतना बोली हालाँकि उसे सास की ये बात थोड़ी नागवार गुजरी थी पर फिर चुपचाप चाय पीने लगी।

माला जी काशवी को घर ग्रहस्थी के तरीके समझाती ऐसा नही काशवी को कुछ नही आता था पर हर घर के अपने तरीके होते है ये बात माला जी जानती थी इसलिए बहू को कोई दिक्कत ना आये यही सोच उसे आगे बढ़कर सब सीखाती किन्तु धीरे धीरे काशवी को ये सब सास की टोका टाकी लगने लगा।

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सबसे ज्यादा उसे अखरता था कार्तिक का ऑफिस से आ माँ बाप के साथ थोड़ा बैठना। उसने अपनी सहेलियों से सुना था पति को नई नवेली पत्नी के पास लौटने की जल्दी होती है साथ ही फिल्मो मे देखा था पति ऑफिस से आ सीधा पत्नी के पास आते है ऐसा उसके साथ कुछ नही हो रहा था। इस बात से काशवी उखड़ी उखड़ी रहती । माला जी सोचती नए घर मे बसने मे समय लगेगा बहू को इसलिए चुप रह जाती।

काशवी जैसी लड़कियां ये नही समझती की उनका पति किसी का बेटा भी है तो अपने माता पिता के प्रति भी बेटे के फर्ज होते है । रही सही कसर काशवी की वो सहेलियाँ पूरी कर रही थी जो अपने ससुराल से अलग रहती थी जिनके लिए मेरा पति मेरा सब कुछ था

उन्हे सास ससुर से कोई मतलब नही था ऐसी ही जिंदगी काशवी को आकर्षित कर रही थी और वो चाहती थी कार्तिक भी उसे ले अलग रहे वो दबी जुबान मे कार्तिक से कह भी चुकी थी जिसका कार्तिक ने विरोध किया था। काशवी अपने उस घर आंगन मे खुश नही रह पा रही थी जहाँ उसे खुले दिल से अपनाया गया था। जिस घर को उसे अपने प्यार से सजाना चाहिए था उसमे वो अपने स्वार्थ के लिए कलह का बीज बो रही थी । 

” बेटा क्या बात है तुम्हे कोई परेशानी है क्या क्यो सबसे कटी कटी रहती हो ?” एक दिन माला जी ने बहू को पास बैठकर पूछा।

” नही तो मम्मी जी ऐसा कुछ नही बस मुझे ज्यादा बात करने की आदत ही नही !” काशवी निगाह चुराते हुए बोली।

” बेटा ये घर जितना हम सबका है उतना तुम्हारा भी है तो खुल कर जियो । वैसे भी कोई भी घर -आंगन जब तक बहू बेटियों की हंसी खुशी से ना गूंजे वो बेजान रहता है। बेटी तो हमारी कोई है नही जो हो तुम्ही हो तो तुम्हे कोई तकलीफ हो तो हमसे कहो । कार्तिक से कोई बात हुई है क्या ?” माला जी प्यार से बोली।

” नही मम्मी जी वैसे भी कोई बात होगी तो हम खुद ही सुलझा लेंगे ना !” काशवी बोली पर मन ही मन सोचने लगी ये सब दिखावा है एक अच्छी सास बनने का। वो वहाँ से उठकर जाने लगी कि अचानक उसे चक्कर से आ गये और वो सोफे पर बैठ गई।

माला जी ने घबरा कर डॉक्टर को बुलाया साथ ही कार्तिक को भी फोन किया । डॉक्टर ने जब बताया कि काशवी माँ बनने वाली है तो सबकी खुशी का ठिकाना ना रहा। अब माला जी काशवी का और ज्यादा ध्यान रखने लगी।

” मम्मी ये बताओ जब घर मे नया मेहमान आएगा आप उसका क्या नाम रखोगी ?” एक दिन कार्तिक माला जी से बोला।

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” बेटा मैं तो उसका नाम कृष्णा रखूंगी !” माला जी मुस्कुराते हुए बोली जिसे सुन काशवी के मन मे एक बात घर कर गई कि मेरी सास को बेटा चाहिए और अगर बेटी हुई तो वो तो मेरा जीना मुहाल कर देगी। साथ ही उसने सोचा जो ये सब देखभाल हो रही है वो मेरे लिए नही पोते के लिए है। 

खैर वक़्त बीता और काशवी ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। 

” कितनी प्यारी है ये धन्यवाद बेटा मुझे दादी बनाने के लिए !” माला जी पोती को गोद मे ले काशवी से बोली।

” हां माला सच मे बहुत प्यारी है लगता है ईश्वर ने तुम्हारी बेटी की चाह पूरी कर दी !” पति रजत जी बोले।

” पर मम्मीजी आपको तो पोता चाहिए था !” काशवी अचानक से बोल उठी।

” क्या …ये तुमसे किसने कहा कि मुझे पोता चाहिए ?” माला जी हैरानी से बोली।

” वो उस दिन आप कार्तिक से कह रही थी कि आप आने वाले बच्चे का नाम कृष्णा रखेंगी वो मैने सुन लिया था!” काशवी धीरे से बोली ।

” पगली क्या लड़की का नाम कृष्णा नही होता !” माला जी प्यार से बोली।

” हां बहू तुम्हारी सास को एक बेटी की बहुत चाह थी और इसने तो पहले से उसका नाम कृष्णा सोचा था पर किन्ही कारणों से ये दुबारा माँ नही बन पाई इसलिए तबसे पोती के रूप मे बेटी के ख्वाब सजा रही थी जो आज पूरा हुआ !” रजत जी बोले।

” हां और अब तुम बस आराम करोगी अपनी कृष्णा की सारी जिम्मेदारी मैं उठाउंगी उसको नहलाने से लेकर सुलाने तक समझी तुम !” बहू का माथा चूमती माला जी बोली। 

काशवी की आँख मे आँसू आ गये और वो सास से लिपट गई साथ ही मन ही मन सोचने लगी हर लड़की चाहती है उसे सास के रूप मे माँ मिले पर कितनी लड़कियां है जो खुद बेटी बन पाती है । सास के लिए मन मे एक पूर्वाग्रह पाले रहती है कुछ लड़कियां जो उन्हे बेटी बनने ही नही देता। 

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अस्पताल से घर आने के बाद काशवी मे बहुत परिवर्तन आया इधर माला जी ने पोती की सब जिम्मेदारी उठा ली इस उम्र मे भी उनमे गजब का जोश भर गया था । काशवी भी दादी पोती का प्यार देख निहाल हो जाती । जो घर आंगन कल तक काशवी के मन पर पड़ी धूल के कारण सूना सूना रहता था वो अब धूल हटते ही बच्ची की किलकारी और सास बहू की हंसी से गूँज उठा। 

दोस्तों कुछ लड़कियां सास के प्रति शादी से पहले ही एक पूर्वाग्रह पाले बैठी होती है कि सास अच्छी नही होती रही सही कसर कुछ सहेलियाँ या टीवी सीरियल पूरी कर देते है जबकि ऐसा नही है अगर बहू खुले दिल से ससुराल को अपनाये तो सास मे ही माँ की छवि नज़र आएगी ऐसे मे हर घर आंगन एक मंदिर बन जायेगा। 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#घर-आँगन 

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