Moral stories in hindi : “ये तुम्हारी शक करने की आदत कब जायेगी? तुम्हें तो हर बात पर ही शक करना है और मेरा समझाना ही बेकार है, मै क्यूं पत्थर से सिर फोड़ रही हूं और वंदना दनदनाती हुई कमरे से बाहर निकल गई, बाहर बॉलकोनी में जाकर आंसू बहाने लगी, पर उसके आंसूओं से रितेश पर कोई असर नहीं होता था, आखिर वो भी तो पूरे दिन ऑफिस में काम करके आती थी, और आते ही घर गृहस्थी संभालती थी,
उसके काम करने पर उस पर शक किया जाता था, और रोज सौ सवाल दागे जाते थे, आज पार्टी में जाकर क्या आ गई? उस पर शक किया जाने लगा, रितेश अकेले ही नहीं उसके घरवाले भी वंदना को हर बात के लिए शक के दायरे में खड़ा कर देते थे, आखिर वो भी इंसान हैं, कब तक अपनी सच्चाई सबके सामने साबित करती रहेगी?
वंदना और रितेश की मुलाकात ऑफिस जाते वक्त बस में हुई थी, दोनों एक ही ऑफिस में काम करते थे, पर एक-दूसरे से बात नहीं करते थे। रोज यूं ही मिलते मिलाते एक बार रितेश ने साथ में कॉफी पीने को कहा तो वंदना ने भी हामी भर दी, धीरे-धीरे दोस्ती हुई और रिशता प्यार में बदल गया।
एक दिन रितेश ने बातों ही बातों में शादी का प्रस्ताव रख दिया, तो वो हैरान रह गई, उसने सोचकर बताने को कहा, अपने घरवालों से बात की और शर्त रखी कि वो शादी के बाद नौकरी नहीं छोड़ेगी, ये नौकरी उसका अभिमान है। रितेश ने भी अपने घरवालों से बात की और दोनों की रजामंदी से शादी हो गई। रितेश के घर में उसके मम्मी -पापा और एक छोटी बहन थी, पापा की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी, तो रितेश अकेले ही घर का खर्च चला रहा था।
वंदना के आने से उसे घर खर्च चलाने में आसानी हो गई थी, लेकिन वंदना पर अब दोहरी जिम्मेदारी आ गई थी, उसे ऑफिस जाने से पहले भी काम करके जाना होता था, और ऑफिस से आकर भी काम पर लगना होता था, इन सबके कारण वो बहुत थक जाती थी, पर नई -नई शादी हुई थी तो वो कुछ बोल भी नहीं पा रही थी, उसकी सास और ननद दोनों उस पर हावी रहते थे।
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एक दिन वो ऑफिस से घर आई तो उसके हाथ में नया पर्स था, ये देखते ही उसकी ननद नेहा जलने लगी और बोली,” भाभी, माना आप कमाते हो, पर अपने ऊपर खर्च करने से पहले आपको भैया से पूछना चाहिए था, अब सारी कमाई खुद पर ही खर्च कर दोगी तो घरवालों का क्या होगा? मम्मी को आपसे कितनी उम्मीदें थीं”।
अपनी बेटी नेहा की आवाज सुनकर भारती जी बाहर आई, वंदना के हाथ में पर्स देखकर बौखला गई,” वाह!, बहू तुम्हारे तो ठाठ है, तुम तो कमा भी रही हो, और लुटा भी रही हो, और मेरा बेटा वहां अकेले मेहनत कर रहा है “।
ये सब सुनकर वंदना बोली,” मम्मी जी, मैंने ये पर्स खुद नहीं खरीदा है, मेरी एक सहेली ने मुझे उपहार में दिया है, उसकी पर्स की दुकान है और वो हर साल दुकान पर अच्छी सेल होने पर मुझे पर्स देती है, ताकि अगले वर्ष भी उसकी अच्छी कमाई हो, उसके ऐसा करने से उसके काम में बरकत होती है, ऐसा उसका मानना है”।
“भाभी, हमें इस तरह से बेवकूफ मत बनाओ, आपने ये पर्स उनकी दुकान से खरीदा होगा, और उनका नाम लगा रही हो, भला इतना महंगा पर्स कोई बिना मतलब के तो उपहार में नहीं देता है “।
उसकी बात सुनकर भारती जी भी बोलती है,” बहू मुझे तो लगता है, तूने अपने ही पैसे खर्च किये होंगे, वरना कोई किसी को कुछ नहीं देता है “।
“मम्मी जी, मै सच कह रही हूं, मै झूठ क्यूं बोलूंगी? अगर मै कोई चीज अपने लिए खरीदूंगी तो आप सबसे छुपाने की क्या जरूरत है “?
“भाभी, रहने दो, नेहा और भारती जी अंदर चले गए , ड्रॉइंग रूम में खड़ी वंदना को बहुत बुरा लग रहा था।
वंदना अपने कमरे में जाकर आराम करने के लिए पलंग पर लेट गई, और उसके पैरों में दर्द हो रहा था, उसे लग आराम कर लेगी तो रात का खाना बना लेगी, रितेश की बॉस के साथ मीटिंग थी, इसलिए उसको देर से आना था।
तभी भारती जी की आवाज आती है,” अरे! बहू खाने की तैयारी कर लें, मेरा बेटा आने वाला है,” तू तो रोज आकर पसर जाती है, फिर खाना बनाने में देरी हो जाती है, और य पैरो में दर्द क झूठा बहाना मत बनाना, तेरी तो रोज की ही आदत हो गई है, तेरा तो पता ही नहीं लगता कि कब झूठ बोलती है और कब सच”?
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भारी कदमों से वंदना उठी, नेहा और भारती जी उसकी जरा भी मदद नहीं करते थे, बस ऑफिस से आते -जाते वक्त उसे तानें सुनने को जरूर मिलते थे। रात को रितेश घर पर आया तो उसके कानों तक भी पर्स वाली बात पहुंचा दी गई।
कमरे में जाते ही रितेश गुस्सा हो गया,” तुम्हें सिर्फ अपनी पड़ी रहती है, तुम तो मेरी मम्मी और बहन को कभी खुश नहीं रख सकती, एक पर्स अपने लिए लाई तो छोटी ननद के लिए भी कुछ ले आती, तुम तो मजे कर रही हो और मेरी बहन तरस रही है “।
“रितेश, ये तुम क्या कह रहे हो? एक पर्स के लिए कितना बवाल हो गया है, और मै ये पर्स नेहा को ही देने वाली थी, पर मुझ पर ये शक गलत है कि मैंने इसे खरीदा है “।
“तुम भी मेरी बात पर विश्वास नहीं करते हो, आखिर तुम भी सब जैसे हो और वंदना रूठकर सो गई”। रितेश ने उसे मनाना भी जरूरी नहीं समझा।
अगले दिन वंदना ने अच्छी सी ड्रेस पहनी और तैयार हो गई, “ये आज सज-धजकर कहां जा रही हो? भारती जी ने पूछा तो वंदना ने कहा,” मेरे फ्रेंड का बर्थडे है तो वो होटल में पार्टी देगा, मै रात को देर से घर आऊंगी, मेरा डिनर भी बाहर ही है”।
“अच्छा, फिर तो रितेश भी बाहर ही खाना खायेगा, वो भी तो जायेगा”, भारती जी बोली।
“नहीं मम्मी जी, वो मेरा फ्रेंड है, रितेश का नहीं है, वो और मैं ऑफिस के अलग-अलग एरिये में काम करते हैं, मै बिल्डिंग नंबर एक मै जाती हूं और रितेश दो नंबर की बिल्डिंग में काम करते हैं, हम दोनों के फ्रेंडस भी अलग है”।
ये सुनते ही भारती जी का शक्की दिमाग दौडने लगा,” वो शादीशुदा है या कुंवारा? और साथ में कितने लोग जा रहे हैं, तुम कब तक आ जाओगी, मेरे विचार से तो जहां तुम्हारा पति नहीं जा रहा है, तुम्हें भी वहां नहीं जाना चाहिए, कल को कोई ऊँच-नीच हो गई तो, लोग और रिश्तेदार क्या कहेंगे? समाज में हमारी बदनामी हो जायेगी।”।
ये सुनते ही वंदना का दिमाग चकरा गया,” मम्मी जी, आप ये क्या सोच रही है, क्यों इतना शक कर रही है? मेरा कलीग है, और मै अकेले नहीं जा रही हूं, रितेश को भी उसके बारे में पता है, और वंदना चली गई।
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उस दिन रितेश शाम को जल्दी घर आ गया था, उसका फोन नहीं लग रहा था तो वंदना ने उसे मैसेज कर दिया और वो पार्टी के लिए निकल गई थी, घर पर आकर रितेश भी गुस्सा हो रहा था,” आखिर अपने आपको क्या समझती है? हमारी इज्जत की तो जरा भी परवाह नहीं है”।
वंदना ने आकर रितेश को समझाया भी कि तुम तो मेरे सभी दोस्तों को जानते हो,और तुम ही शक कर रहे हो कि मेरे उसके साथ कोई सबंध है, तुमको तो मम्मी जी को समझाना चाहिए, एक तो वो शक करती रहती है, दूसरी ओर नेहा भी पढ़ी-लिखी है, फिर भी वो उनके कान भरती रहती है, फिर शादी करने का ये मतलब नहीं है कि सबसे दोस्ती तोड़ ली जाएं?
वंदना को आज भारी धक्का लगा था, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका पति उसके साथ ऐसे कर सकता है, वो तो उसका सबसे अच्छा दोस्त हुआ करता था।
उसने रात को ही अपनी मम्मी को फोन किया और सारी बातें बताई, वंदना की मम्मी ने भी उसे समझाया,” वंदना रिश्तों के बीच में गलतफहमियां आ जाती है तो उन्हें दूर किया जाता है, ना कि रिश्तों से ही दूरियां बना ली जाती है, तुझे वो सब शक के जाले हटाने होंगे, वरना तू उन जालो में फंसकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेगी, मुसीबतों को छोड़कर भागना कमजोरी है पर मुसीबतों से लड़कर ही मजबूत बना जा सकता है।
वंदना के कदम रूक गये, वो सब कुछ छोड़कर मम्मी के घर जाने वाली थी, पर रहना तो इसी घर में था, उसने आंसू पोंछे और तैयार होकर रितेश के साथ ऑफिस चली गई, दिन भर दोनों ने काम किया और शाम को ऑफिस से घर जाने की बजाय वंदना उसे पार्क में ले गई, और घर पर फोन कर दिया कि हम दोनों बाहर ही खाना खाकर आयेंगे।
पार्क में वंदना रितेश से बोली,” रितेश हम दोनों के रिशते में गलतफहमियां और शक आ गया है, ना तुम बदले ना ही मै बदली हूं, पर हमारे हालात बदल गये है। ये वो ही ऑफिस है, वो ही काम-काज है, वो ही मै और तुम है, बस अब रिशते नये जुड़ गये है, तुम तो मेरे दोस्तों को जानते हो और मै तुम्हारे दोस्तों को जानती हूं, फिर तुम मुझ पर शक कैसे कर सकते हो?
तुम अपना दिमाग नहीं चलाते हो, जो मम्मी जी और नेहा ने बोल दिया, वो मान लेते हो, उसकी वजह से हमारे बीच झगड़े बढ़ रहे हैं, तुम अपनी मम्मी और बहन को खुश देखना चाहते हो, तो क्या मुझे खुश नहीं देखना चाहते हो”।
” हम दोनों साथ में समय नहीं बीता पाते हैं, बस ऑफिस के काम में ही उलझे रहते हैं, ऐसे में कोई कुछ कहें तो वो ही हमें सच्चा लगने लगता है “।
” तुम तो पढ़े-लिखे समझदार हो, तुम तो कभी शक्की मिजाज नहीं थे, फिर तुम्हें क्या हो गया है? मै तो तुम्हारी जीवन साथी हूं, जिससे जन्मभर का रिश्ता होता है, ये रिश्ता विश्वास पर टिका होता है, अगर इसमें शक का कीड़ा लग जाएं तो फिर ये रिश्ता बोझ बन जाता है।
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तुम नेहा को क्या शिक्षा दे रहे हो, वो भी कल को दूसरे घर जायेगी, इसी तरह की बातें करेगी, आज मुझ पर शक कर रही है, कल को अपने पति पर शक करेगी तो उसकी जिंदगी भी नरक बन जायेगी, हमें तो उसे विश्वास और प्यार की शिक्षा देनी है, पर वो भी शक्की होती जा रही है “।
पति-पत्नी का क्या परिवार के सभी लोगों का रिश्ता प्यार और विश्वास पर ही टिका रहता है, सभी लोग ऐसे एक-दूसरे पर शक करते रहेंगे, तो अपनी जिंदगी सुखपूर्वक कैसे जीयेंगे?
रितेश सुन रहा था और समझ भी रहा था, दोनों के बीच दूरियां भी इसलिए आ गई थी कि दोनों एक-दूसरे को समय नहीं दे पा रहे थे, रितेश जल्दी ऑफिस से आता था तो वंदना देर से आती थी, और कभी वंदना जल्दी घर आती थी तो रितेश को देर हो जाती थी, बस इसी वजह से रितेश का गुस्सा, कुंठा बनकर निकल रहा था और वो अपनी मम्मी और नेहा पर ही विश्वास करने लगा था।
“सॉरी वंदना, मुझे माफ कर दो, मैंने तुम्हारा बहुत ही दिल दुखाया है, मैंने तुम पर गुस्सा किया, तुम्हें बहुत कुछ सहन कर लिया, पर अब ऐसा नहीं होगा, मै अपनी आंखें और कान खोलकर रखूंगा, और तुम पर कभी शक नहीं करूंगा, एक-दूसरे से बात करने पर ही शक के बादल हटते है, और दोनों ने एक-दूसरे के साथ समय व्यतीत किया और सारे शिकवे गिले दूर करके घर चले गए। घर पहुंचते ही भारती जी चिल्लाकर बोली,” आ गये दोनों ऐश करके खा-पीकर और हम दोनों यहां भूखे मर रहे हैं”तेरी पत्नी को तो हमारी फ्रिक ही नहीं है “।
“मम्मी, क्या आपको अपनी और नेहा की फ्रिक है? आप दोनों ही थी, हम रसोई में ताला लगाकर तो नहीं गये थे, आप दोनों खाना बनाकर खा सकती थी “।
तभी नेहा बोली,” मम्मी भैया-भाभी जरूर फिल्म देखने गये होंगे और हमें नहीं बताया, हम भी चले जाते तो इनका खर्चा हो जाता, बाहर होटल में खाने के पैसे अलग लगते, ये सब भाभी की चालबाजियां है, और इनके बहकावे में आकर अब भैया भी हमसे झूठ बोल रहे हैं “।
अपनी बहन नेहा की बातें सुनकर आज रितेश को लगा, इनकी बातों में आकर बेकार ही वंदना पर शक किया, उसकी मम्मी और नेहा दोनों शक्की मिजाज है और दोनों को पहले वंदना पर विश्वास नहीं था और ये अब मुझ पर भी शक करने लगी है।
” नेहा तू चुप होजा!!! क्या अनाप-शनाप बकबक किये जा रही है, हम लोग पार्क गये थे, वहीं पर बैठकर बातें कर रहे थे, अगर ये बात वंदना तुम्हें बताती तो तुम शक करते पर तूने तो शक के घेरे में मुझे भी ले लिया है, हद करती है, पढ़ी-लिखी होकर ऐसी बातें करती है, अपना दिमाग सही जगह इस्तेमाल कर, इस तरह का व्यवहार रहेगा तो तू अपने ससुराल में कभी खुश नहीं रहेगी, ज़िन्दगी प्यार और विश्वास से चलती है, उसमें शक का दीमक लग जायें तो जीवन बोझिल हो जाता है”।
तभी भारती जी बोलती है,” आज तो बहू पट्टी पढ़ाकर लाई है जो तू उसी की तरफ बोल रहा है, तुझे अपनी मम्मी और बहन झूठे लग रहे हैं “।
“हां, मम्मी आप और नेहा दोनों झूठ ब़ोल रहे हो, नेहा घर में बैठी- बैठी, आपके कान भरती रहती है, क्या इससे हमारी खुशियां देखी नहीं जाती है,?
“मम्मी, बेटी को अच्छा ज्ञान दो और बहू को सम्मान दो तो आपका जीवन सुधर जायेगा और हमारा भी। आप दोनों अपना व्यवहार बदलो, नहीं तो हम ज्यादा दिनों तक साथ में नहीं रह पायेंगे”।
अपने बेटे के मुंह से ये बात सुनकर भारती जी चुप हो गई, उन्हें समझ आ गया कि अब उनकी और नेहा की बातों में रितेश नहीं आयेगा, और वंदना खुश थी उसने मम्मी की शिक्षा से अपना जीवन फिर से संभाल लिया।
दोस्तों, जीवन में प्यार और विश्वास हो तो वो सुन्दर बन जाता है, लेकिन शक आ जायें तो नरक बनते देर नहीं लगती है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
(धा)