Moral stories in hindi : “पूरे दिन मैं ऑफिस और घर के काम में लगी रहती हूं..अपने लिए जरा भी वक़्त नहीं मिलता मां मुझे…ये कोरोना जबसे आया वर्क फ्रॉम होम ने हम औरतों की मुसीबत ही बढ़ा दी है!” नीता अपनी सास आशा जी से फोन पर अपना दर्द बयां कर रही थी।
“सही कहा तुमने बेटा ऐसे में कामवाली भी नहीं आती तो परेशानी और बढ़ जाती है यहां तुम्हारे पापा भी नित नई फरमाइशें करके जीना मुहाल किए रहते हैं पहले ऑफिस जाते थे तो दिन का समय तो मेरा खुद का होता था।” आशा जी बोली।
“मां आदमियों का बढ़िया है सारा दिन हुकुम चलाते रहते बस ऑफिस जाए या घर से काम करे इन्हे कोई टेंशन नहीं है ऊपर से छोटे बच्चो को भी हमी संभालें।” नीता बोली।
” हां बेटा ये तो तू सही बोली…हमारे देश में ये बहुत गलत सिस्टम है सब काम औरतों को करने पड़ते भले औरत कामकाजी हो या घरेलू!” आशा जी बोली।
” मां कभी आपको नहीं लगा की आप पापाजी या सक्षम को घर के काम करने सिखाओ?” अचानक नीता ने पूछा।
” बहुत कोशिश की थी मैने पर तुम्हारी दादी सास थी ना बहुत बवाल करती थी जब भी तुम्हारे ससुर रसोई में आते फिर मैने सोचा चलो सक्षम को तो सक्षम बनाऊं घर के काम में पर उसमें भी तुम्हारी दादी सास ने कलेश करना शुरू कर दिया तुम्हारे ससुर भी उनकी साइड लेते और मैं अकेली पड़ जाती थी इन चक्करों में वो भी काम नहीं सीख पाया!” आशा जी अफसोस करती बोली।
” मैं तो अपने बेटे और बेटी दोनों को घर के काम सिखाऊंगी मां जिससे आने वाली पीढ़ी तो सुखी रहे मेरी आपकी तरह उन्हें तो ना अकेले खटना पड़े!” नीता बोली।
“एक आइडिया है जिससे तेरे पापाजी और मेरे बेटे दोनों को सुधारा जा सकता!” अचानक आशा जी बोली।
” क्या आइडिया है मां!” नीता उतावली हो बोली।
सास ने बहू से कुछ कहा और दोनों ने मुस्कुराते हुए फोन रख दिए।
“नीता मुझे कल सुबह ऑफिस जाना है” तभी सक्षम आवाज़ दे बोला।
” ठीक है!” ये बोल नीता मुस्कुरा दी।
” ये क्या हुआ तुम्हे नीता!” अगले दिन ऑफिस से वापिस आ सक्षम बोला।
” वो बाथरूम में पैर फिसल गया था फ्रैक्चर हुआ है डॉक्टर ने बेड रेस्ट बताया है!” नीता दर्द से कराहती बोली।
“ओह…फिर खाना …बाज़ार से ऑर्डर कर देता हूं!” सक्षम बोला।
” अरे कोरोना में बाहर का खाकर बीमार पड़ना है क्या …आप मुझे सहारा दे रसोई में छोड़ आइए मैं बना देती हूं कुछ बच्चे भी सुबह से भूखे हैं!” नीता कराहती बोली।
” अरे तुम कैसे बनाओगी…रुको मैं देखता हूं कुछ!” सक्षम लाचारी से बोला।
थोड़ी देर बाद जैसे तैसे करके नीता से पूछ पूछ सक्षम खिचड़ी बना लाया। और सबने वही खाई।
” पापा आपको तो खाना बनाना भी नहीं आता!” दोनों बच्चों ने सक्षम को ताना भी दे दिया।
” बेटा सीख जाऊंगा जल्दी ही!” सक्षम बोला।
” सक्षम मुझे सहारा देना मैं बर्तन कर दूं!” नीता खाना खा बोली।
” अरे तुम आराम करो मैं करता हूं!” सक्षम मजबूरी में बोला।
अगले दो दिन ऑफिस से छुट्टी ले सक्षम घर के सब काम नीता से पूछ पूछ करता रहा।
” यार नीता तुम कैसे कर लेती हो सब काम वो भी ऑफिस के साथ मेरी तो खाली काम करने में जान निकल रही है ऐसा करता हूं मम्मी पापा को बुला लेता हूं यहां उनसे थोड़ी मदद हो जाएगी!” सक्षम बोला और फोन मिलाया अपने पापा को।
” पापा कुछ दिन को आप दोनों यही आ जाइए मुझसे घर के काम नहीं होते बिल्कुल” नीता के बारे में सब बता सक्षम अपने पापा से बोला।
” बेटा यहां भी यही हाल है तेरी मम्मी कमर दर्द में पड़ी दो दिन से सब काम मुझे ही करने पड़ रहे हैं।” पापा बोले।
” ओह .. ठीक है पापा आप मम्मी का ध्यान रखिए डॉक्टर से अच्छे से अच्छे इलाज की कहिए फुरसत मिलते ही मैं आता हूं मम्मी को देखने!” ये बोल सक्षम ने फोन रख दिया।
” क्या हुआ जी!” नीता मासूमियत से बोली।
सक्षम ने सारी बात बताई और रसोई में चला गया नाश्ता बनाने।
” नीता तुम्हे डॉक्टर के भी तो जाना होगा एक हफ्ता हो गया प्लास्टर चढ़े तुम्हारे!” एक दिन सक्षम नीता से बोला।
” नहीं…हां वो डॉक्टर ने 15 दिन बाद आने को बोला था!” नीता बोली।
इसी तरह दस दिन बीत गए सक्षम रोज मां से भी बात करता अपनी पर वो अपना दुखड़ा रो असमर्थता जाहिर करती आने में। अब तो सक्षम काफी हद तक काम करना भी सीख ही गया था ।
” वाह पापा आपने तो मटर पनीर की सब्जी मम्मा से भी टेस्टी बनाई है!” खाना खाते में बेटी बोली।
” हां पापा अब रोज आप है खाना बनाया करो!” बेटा कहा पीछे रहता।
” अरे बेटा तुम्हारी मम्मी ठीक हो तो मैं गंगा नहाऊं मुझे पता है मैं कैसे सब कर रहा।” सक्षम एकदम से बोला।
सक्षम खाना खा बर्तन करने चला गया। और नीता ने सास को फोन मिलाया।
” हां मां सब बढ़िया चल रहा अब तो मजे ही मजे हैं आपकी सलाह तो कमाल की निकली इस बहाने आराम भी मिल गया और सक्षम घर के काम भी सीख गया आपने सच कहा था कभी कभी उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है इन पतियों को सिखाने के लिए। मेरा तो मन कर रहा नाचूं और खुशी मनाऊं इस बात की!” नीता सास से फोन पर बोली और सच में बात करते करते खड़ी हो मटकने लगी। तभी उसने पलट कर देखा सक्षम गुस्से में लाल पीला हुआ दरवाजे पर खड़ा उसे घूर रहा है ।
” मां मैं बाद में बात करती हूं आपसे!” नीता ने सहम के बोला और फोन काट दिया।
” ये नाटक क्यों किया तुमने!” सक्षम गुस्से में चिल्लाया!
” वो …वो ये मेरा नहीं मां का आइडिया था जिससे उन्हें और मुझे दोनों को आराम मिल सके क्योंकि ऐसे तो आप और पापा घर के किसी काम में हाथ बंटाते नहीं इधर मैं सारा दिन ऑफिस के और घर के काम अकेले करते थक जाती हूं उधर मां भी इस उम्र में अकेले सब काम नहीं कर सकती तो हमने सोचा…!” नीता डरते डरते इतना बोल चुप हो गई।
तभी सक्षम का फोन बजा उसके पापा का कॉल था।
फोन पर बात करते करते सक्षम अचानक जोर जोर से हंसने लगा ” पापा देखा इन दोनों ने हम दोनों को कैसे इतने दिन बेवकूफ बनाए रखा और हमसे सारे काम भी करवाए।”
” हां बेटा इसकी सजा तो इन्हे मिलनी चाहिए!” सक्षम के पापा आशा जी को देख बोले।
” बिल्कुल पापा मेरा ख्याल है हमे इन दोनों को छुट्टी दे देनी चाहिए!” भेद भरी हंसी हंसते सक्षम नीता को देख बोला।
नीता और ज्यादा डर गई कहीं सक्षम तलाक की बात ना करने लगे।
” हां पापा इन्हे छुट्टी देते हैं थोड़े से घर के काम से अब से मिलकर काम करेंगे हम जिससे किसी एक पर बोझ ना पड़े इन दस दिनों में समझ आ गया ये कि घर की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है जिसे पति पत्नी दोनों को मिलकर निभानी चाहिए!” सक्षम नीता को आंख मारता बोला और फोन रख दिया।
“मुझे माफ़ कर दो सक्षम मुझे झूठ नहीं बोलना चाहिए था पर वो मां ने…!” नीता बोली तभी सक्षम ने उसके मुंह पर हाथ लगा चुप कर दिया।
” माफ़ी इस शर्त पर मिलेगी आज मेरे साथ किचेन में मदद करो तुम भी बहुत हो गया महारानी की तरह हुकुम चलाना!” सक्षम बोला।
” हम भी करेंगे मदद !” दोनों बच्चे चिल्लाए और सभी रसोई की तरफ बढ़ गए।
दोस्तों आज जब छोटे परिवार हो गए हैं तो सिर्फ घर की औरत पर जिम्मेदारी डालना गलत है फिर चाहे वो कामकाजी हो या घरेलू थोड़ा आराम का हक तो वो भी रखती है ना।
कैसी लगी कहानी बताइएगा जरूर
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल